धान क्रेय केन्द्रों पर किसानों को टोकन लेने के लिए करना पड रहा लम्बा इंतजार | New India Times

सलमान चिश्ती, रायबरेली (यूपी), NIT; ​धान क्रेय केन्द्रों पर किसानों को टोकन लेने के लिए करना पड रहा लम्बा इंतजार | New India Timesरायबरेली जिला में सरकारी धान क्रेय केन्द्रों में किसानों को धान तौल करवाने के लिये टोकन लेने में लम्बा इंतजार करना पड रहा है। इसी का इंतजार करते-करते किसान अपनी फसल बिचैलियों के हाथों बेचने को मजबूर हैं।

 महराजगंज क्षेत्र के किसान विजय यादव व दिनेश ने NIT संवाददाता को बताया कि दर्जनों बार खरीद केन्द्र पर जाने के बाद उनको अभी तौलाई की भीड ज्यादा बताकर बैंरग वापस कर दिया जाता है। बाद में उन्होंने अपनी धान की फसल को औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर है। जबकि प्रदेश सरकार ने किसान की फसल बिचौलियों व दलालों के चंगूल से बचाकर उनके उत्पाद का उचित मूल्य दिलाने के लिए धान की सरकारी खरीद मूल्य निर्धारित करके विभिन्न सरकारी व अर्द्वसरकारी संस्थाओं से करवाती है। सरकारी खरीद मूल्य व खुले बजार के मूल्य से थोडा अधिक मंहगा होता है लेकिन वह अंतर कभी-कभी कष्टदायक होने लगता है।​धान क्रेय केन्द्रों पर किसानों को टोकन लेने के लिए करना पड रहा लम्बा इंतजार | New India Timesसरकार की दुकान यनि खरीद केन्द्र पर धान दोबारा सफाई-छनाई होती है, जबकि खुले बाजार में ऐसा कुछ नहीं होता है। सरकारी खरीद केन्द्र पर आप जब चाहें तब अपनी फसल बेचकर पैसा लेकर अपनी जरूरत पूरी नहीं कर सकते हैं, जबकि खुले बाजार में टोकन नही जारी होते है बल्कि तत्काल धान तौल करके भुगतान दे दिया जाता है। इस बार हो रही धान की खरीद सरकार के तमाम दबाव के बावजूद पारदर्शी भ्रष्टाचार रहित नहीं हो पा रही है। कुछ खरीद ऐजेन्सियों ने बिचैलियों के नाम का टोकन सूची में शामिल कर लिया है। उनके डेढ सौ से दो सौ रूपये प्रति कुन्तल लिया जा रहा है। जिसके कारण किसान को अपनी धन की फसल को बेचने के लिए दर-दर भटना पड रहा है। सरकारी खरीद केन्द्र किसानों के लिए मजाक साबित हो रहे हैं। महराजगंज क्षेत्र के किसानों के पास अधिकतर महीन धान की उपज ज्यादा हुई है, जो मोटे धान से मंहगा बिकने वाला धान है। सरकारी खरीद केन्द्र पर जो पूछा भी नहीं जा रहा है, मजबूर होकर किसान को एसएमआई के सेटिंग-गेटिंग वाले दलालों के हाथ 13 से 14 सौ रूपये प्रति कुंतल बेचने को मजबूर हैं। किसानों की मजबूरी को कोई अधिकारी व सरकार देखने वाला कोई जिम्मेदार प्रतिनिधि नहीं है, जिससे कि देश के अन्नदाता किसान अपनी फसल की उपज को औने पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर हैं।


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