अशफ़ाक क़ायमखानी, ब्यूरो चीफ, जयपुर (राजस्थान), NIT:
जनचर्चा अनुसार कांग्रेस के एक दिग्गज नेता द्वारा अपने आपको ईडी कार्यवाही से बचाने के लिये प्रदेश में सात जगह होने वाले उपचुनावों में इंडिया गठबंधन तोड़कर भाजपा को सीधे तौर पर फायदा पहुंचाने व कांग्रेस को नुकसान होने की राह हमवार कर दी है। यदि गठबंधन होता तो कांग्रेस की मदद से बाप व रालोपा जीतती और बाप व रालोपा की मदद से कांग्रेस जीतती।
2023 के आम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर झूंझुनू से विजेंदर ओला, दौसा से मुरारी मीणा, देवली- उनियारा से हरिश मीणा के विधायक से सांसद बनने व रामगढ़ से विधायक जुबेर खान के देहांत होने से उनकी जगह उपचुनाव हो रहे हैं। इनके अलावा चौरासी से बाप विधायक राजकुमार रोत व खींवसर से हनुमान बेनिवाल के सांसद बनने व सलम्बूर से भाजपा विधायक अमृत लाल मीणा के देहांत के कारण उपचुनाव हो रहे हैं।
भाजपा को अपनी एक सीट बचाते हुए एक से अधिक सीट जीतनी होगी तब ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का दबदबा कायम हो पायेगा। वहीं कांग्रेस को अपनी सभी चारों सीटों को बचाये रखने में मुश्किलात का सामना करना पड़ेगा। चौरासी-सलम्बूर व खींवसर में कांग्रेस उम्मीदवारों को अपनी जमानत बचाने के लिये संघर्ष करना पड़ सकता है। जबकि खींवसर में हनुमान बेनीवाल को अपनी पत्नी को जीताने के लिये बहुत कुछ करना होगा। कांग्रेस स्वयं तो खींवसर मे काफी कमजोर है पर रालोपा व भाजपा उम्मीदवारों में जबरदस्त टक्कर है। पहली दफा लगने लगा है कि पर्दे के पीछे जारी राजनीति के चलते कांग्रेस का कुछ वोट भाजपा की तरफ गया तो रालोपा वहां हार भी सकती है। चौरासी व सलम्बूर में बाप पार्टी उम्मीदवार काफी मजबूत है। वो दोनों सीटों पर जीत भी सकते हैं। कांग्रेस अपनी सभी चारों सीटों पर कांटे की टक्कर में रहेगी। परिणाम कुछ भी आ सकते हैं।
कुल मिलाकर यह है कि कांग्रेस द्वारा इंडिया गठबंधन बनाये रखने की बजाए गठबंधन तोड़ने से कांग्रेस व रालोपा को नुकसान हो सकता है। वहीं बाप पार्टी व भाजपा को फायदा होगा। इससे अलग बात यह है कि गठबंधन टूटने का असर पंचायत व स्थानीय निकाय चुनाव सहित कोपरेटिव चुनाव पर भी पड़ेगा। उन चुनावों में गठबंधन नहीं होने से इंडिया गठबंधन फिर काफी कमजोर हो जायेगा। गठबंधन के दलों में आये अविश्वास से सभी घटक दलों को नुकसान होगा।इसके अतिरिक्त सचिन पायलट व अशोक गहलोत को पार्टी द्वारा महाराष्ट्र के अलग अलग क्षेत्रों का चुनाव प्रभारी बनाने से वो राजस्थान के उप चुनावों मे प्रचार के लिए अधिक समय दे नहीं पायेंगे।
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