नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
भारत के महान नेताओं ने राजनीति को आम नागरिक के जीवन का अभिन्न अंग बना दिया है। जन्म से लेकर मृत्यु तक और उसके बाद प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तौर पर राजनीति हमारी जिंदगी में झांकती है। जामनेर शहर में कल 25 मई के दिन अलग अलग इलाकों में आठ नागरीकों की मौत हो गई। मुख्य शमशान भूमि की क्षमता पांच शवों का अंतिम संस्कार करने की है। तीन शवों का दाह संस्कार शमशान भूमि के खुले मैदान में करना पड़ा। मराठी अखबारों ने इस खबर को एक हि दिन में इतनी तादात मे मरने वालों की संख्या के रूप में मृतकों के नाम के साथ प्रमुखता से छापा है।
किसी भी अखबार ने किसी ज़िम्मेदार को कठघरे में खड़ा करने की हिम्मत नहीं करी। इन मौतों में कइयों का कारण “लू” बताया जा रहा है लेकिन उपजिला अस्पताल के वरिष्ठ परामर्शदाता इस पर सटीक बयान देने से बचते नज़र आ रहे हैं। लू कारण हुआ तो सरकार में बैठे मंत्री गिरीश महाजन को सदन में जवाब देना पड़ेगा। कोरोना काल में कुछ ऐसा हि हुआ था एक हि दिन में दर्जनों मौतों के बाद प्रशासन द्वारा पार्थिवों को कांग नदी की गोद में जलाया गया था। मृतकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए नेता मरघट पर आते हैं अपने भाषण में मृतक के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए गहरा नाता होने का दावा करते हैं।
अगर कोई किसी पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता है तो वो माइक लपककर नेता बनने का प्रशिक्षण लेता है। मरघट की आवश्यकता – जामनेर की आबादी 50 हजार है भुसावल सड़क का शमशान घाट एकमात्र है जिसे एक निजी बैंक ने सुशोभित किया बाद में नगर परिषद ने लितापोती कर विकास का डंका बजाया कितना पैसा खाया वो हमे पता नहीं। जलगांव श, वाकी और पाचोरा सड़क से विस्तार पा रहे जामनेर को इन्ही में से किसी एक इलाके में नए शमशान भूमि की आवश्यकता है। तीस सालों से MIDC, कारखाने, कृषि पूरक उद्योगों तथा रोज़गार का अभाव रहते हुए भी पेयजल की माकूल उपलब्धता और शिक्षा की गुणवत्ता के कारण लोग जामनेर में अपना आशियाना बनाना पसंद करते हैं। आने वाले दस सालों में जामनेर की आबादी एक लाख का आंकड़ा छू सकती है जिसके चलते अगले 25 साल के लिए विकास के विजन डॉक्यूमेंट को सेट किया जाना चाहिए।
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