साबिर खान/सुहेल फारुकी, वसई-विरार (महाराष्ट्र), NIT;
कुल मिलाकर सवाल यह उठता है कि जिस गरीब फ्लैट खरीदने के लिए 25-50 लाख रुपये नहीं है वह अपना आशियाना कैसे बनाए? एक तरफ सरकार प्रधानमंत्री आवास व दिगर योजना गरीबों के लिए चला रही है वही वसई-विरार में बिना सरकारी मदद के कोई गरीब घर बनाता है तो उसे अवैध निर्माण की आड लेकर धराशाई कर दिया जाता है। तो क्या गरीब को यहां रोटी, कपडा और मकान का अधिकार नहीं है। यदि मनपा को तोडक कारवाई करनी है तो पहले इन गरीबों के पुनर्वास का बंदोबस्त करना चाहिए।
लखनऊ नगर निगम में 1000 वर्ग फुट घर बनाने के लिए एलडीए से कोई प्रमीशन लेने की जरूरत नहीं है बल्कि वह अपनी मर्जी से घर बना सकता है जो वहां कानूनी है, तो फिर वह कानून यहां लागू क्यों नहीं किया जाता जिससे गरीबों को राहत मिले???
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