मस्जिद गूंगे शाह, पुष्पक बस स्टैंड बुरहानपुर में 10 दिवसीय शबीना का हुआ समापन | New India Times

मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:

पवित्र रमज़ान का चांद दिखने के साथ मस्जिद हज़रत गूंगे शाह, पुष्पक बस स्टैंड बरहानपुर में दस रोज़ा शबीने का आयोजन मस्जिद इंतज़ामिया कमेटी द्वारा किया गया जिसमें नौजवान हाफ़िज़ क़ारी मोहम्मद अबुज़र पिता हाफ़िज़ नासिर शहज़ाद (ख़तीब और इमाम मस्जिद हज़रत गूंगे शाह) ने दस रोज़ में मुक़द्दस क़ुरआन पाक को बहुत ही ठहर कर, उम्दा और नफ़ीस अंदाज़ में सभी मुसल्ली हज़रात को सुनाया। इसका समापन सत्र बुधवार 20 मार्च 2024 को संपन्न हुआ। समापन सत्र में मस्जिद के पेश इमाम हाफ़िज़ अलहाज नासिर शहज़ाद ने मुल्क के अमन ओ अमान और इसकी तरक़्क़ी ओ कामयाबी के हक़ में दुआएँ की। इसके साथ ही शाही जामा मस्जिद बुरहानपुर के पेश इमाम हज़रत सैयद ईकराम उल्लाह बुख़ारी की सेहत ओ तंदुरुस्ती और लम्बी उम्र के लिए, आप की अहलिया मरहूमा के लिए भी दुआए मगफिरत, मरहूम हज़रत सैयद तलत तम्जीद उर्फ़ बाबा मियां, सैयद लाइक अली उर्फ़ ज़िया भाई टायर वाले के भाई सैयद आशिक़ अली, मुन्ना भाई आदर्श लाज वाले, मरहूम हाजी हुमायूं उर्फ़ अच्चू भाई बारबर के लिए भी दुआए मगफिरत की गई। इस बाबरक़त मजलिस में बरहानपुर की मशहूर और मारूफ़ दीनी दरसगाह दारुल उलूम शेख अली मुतक़ी, आदिलपुरा बुरहानपुर का संक्षिप्त परिचय  पेश करते हुए बताया गया कि मुफ्ती रहमत क़ासमी की कोशिश और जद्दोजहद से दीनी दर्स गाहें आबाद हो कर मिल्लत इस्लामिया की ख़िदमत अंजाम दे रही है और अलहाज हाफ़िज़ डॉक्टर मौलाना सलीम गिन्नौरी और हाफ़िज़ नूर मुहम्मद और शहर के सभी मुफ्तियान कराम, उलमा ए कराम और   हफ्फाज कराम की कोशिशों से अब बुरहानपुर शहर की गली गली में हाफ़िज़ कुरान मौजूद हैं। एक ज़माना था कि रमज़ान में क़ुरान पाक सुनने के लिए हम बाहर से हाफ़िज़ कराम का इंतज़ाम करते थे। लेकिन अब हमारे शहर की दरसगाहों से भी बड़ी संख्या में हाफ़िज़ कराम तैयार हो कर फ़ैज़ियाब कर रहे हैं। ख़त्म-ए-क़ुरान की इस मुबारक महफ़िल में शहर की सरकरदा सामाजिक शख़्सियतें और रहनुमाओं ने क़सीर तादाद में शिरकत की और दुआओं पर अमीन की सदाएँ बुलंद कीं।आख़िर में सभी हाज़िरीन का शुक्रिया अदा किया गया और ख़िदमत करने वाले तमाम हाज़िरीन और मस्जिद के मूतवल्ली इंतज़ामिया को दिल की गहराइयों के साथ दुआओं में याद किया गया। इल्म की अफ़ादियत पर काफ़ी ज़ोर दिया गया। दुआईया क़लमात पर इस का समापन संपन्न हुआ।


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