जब तब जीव में अभिमान आता है भगवान से दुर हो जाता है: आचार्य श्री देवेंद्र शास्त्री | New India Times

रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:

झाबुआ जिले के आदिवासी अंचल पेटलावद तहसील के ग्राम रायपुरिया में आयोजित श्री मद भगवत भक्ति महोत्सव में अंचल के हजारों संख्या में श्रोताजन भाग लेने पहुँचे। श्री हरिहर आश्रम बनी के पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. देवेन्द्र शास्त्री व्यास पीठ पर विराजमान होकर कथा श्रवण करा रहे हैं। छठें दिन कृष्ण व रुक्मणी के विवाह पर पूरा पांडाल झूम उठा। आचार्य श्री ने कहा कि ब्रजमंडल में भगवान श्रीकृष्ण अपनी लीला माधुरी से सभी को दर्शन कराते हैं। भगवान श्री कृष्ण सर्वकालिक, सार्वभौमिक, सर्वान्तर्यामी होकर ब्रज के कण कण में व्याप्त है। भगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम लीला रास लीला है। यह काम को बढ़ाने की नहीं काम पर विजय प्राप्त करने की कथा है। इस कथा में कामदेव ने भगवान पर खुले मैदान में अपने पूर्व सामर्थ्य के साथ आक्रमण किया लेकिन वह भगवान को पराजित नहीं कर पाया। उसे ही परास्त होना पड़ा। रास लीला में जीव को शंका करना या काम को देखना ही पाप है।

गोपी गीत पर बोलते हुए आचार्य श्री ने कहा जब तब जीव में अभिमान आता है भगवान उनसे दूर हो जाता है

लेकिन जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते है उसे दर्शन देते है।

शरीर की एकता समान राष्ट्र की एकता आवश्यक

श्री शास्त्री ने बताया कि जो एकता शरीर में है, वैसी ही एकता देश में लानी होगी। हमें कुछ सीखना है तो अपने शरीर से सीखना चाहिए। परमात्मा ने सभी को सभी शक्तियां नहीं दी है। एक के पास ज्ञान है, दूसरे के पास शक्ति, तीसरे के पास धन और चौथे के पास श्रम। सभी के बिना मिले कुछ नहीं हो सकता। आचार्य श्री ने कहा कि हम मूर्ति की पूजा करते हैं। उसका समाधान करते हुए उन्होंने कहा कि चंचल मन को स्थिर करने के लिए कोई अधिष्ठान चाहिए और यह अधिष्ठान मूर्ति है। उन्होंने कहा कि नर्सरी में पढ़ने वाले बच्चे को शब्द के अर्थ समझाने के लिए चित्र का सहारा लेना पड़ता है।

पैसा जीवन के लिए जरुरी यह भावना मन में रखें

आचार्य ने कहा कि पैसा जीवन के लिए जरूरी है, लेकिन जीवन के लिए पैसा जरूरी नहीं। सत्य मार्ग पर चलकर पैसा कमाओ, अधर्म के रास्ते नहीं। अधर्म के रास्ते कमाए धन से शांति नहीं मिलती। कोई भी कार्य शुरू करने से पहले संकल्प कराया जाता है। संकल्प का अर्थ होता है सम्यक कल्पना अर्थात् कार्य करने से पहले हमें यह विचार करना चाहिए कि उससे लाभ होगा या नुकसान। यह सोचकर हम कार्य करेंगे तो हमें नुकसान नहीं होगा और हमारे कार्य हमें शांति देगी। यदि संकल्प जल की तरह पवित्र होगा तो कार्य सफल होगा।

चारों वर्णों में एकता आने से बन सकती है बड़ी शक्ति

आचार्य श्री ने कहा कि मां दुर्गा अष्ट भुजा वाली होती है क्योंकि माताओं का ध्यान सब जगह होता है। उनमें एक साथ अनेक कार्य करने की क्षमता होती है। वर्ण चार होते है, यदि चारों वर्णों में एका हो जाए तो यह अष्ट भुजा हो जाती है इसीलिए मां दुर्गा अष्टभुजा है। ब्रम्हा जी के चार मुख एवं विष्णु जी की चार भुजाएं होती है, वर्ण चार होते हैं, यदि इन चारों वर्णों में एकता आ जाये तो यह एक बड़ी शक्ति हो जाती है, यहीं विराट स्वरूप परमात्मा है। हम इस विराट स्वरूप परमात्मा को प्रणाम करते हैं।

ये पब्लिक सब जानती है इसमें बड़ी शक्ति निहित

कथा के दौरान पुज्य आचार्य श्री ने कहा कि जनता जनार्दन है। सत्ता पर जनता ही बिठाती है एवं वहीं नीचे भी उतारती है, जनता में बड़ी शक्ति है, यदि जनता जागती है तो कितना भी बड़ा तानाशाह क्यों न हो, जनता उसे उखाड़ फेंकती है। जनता ने जिसको शासन करने का आदेश दिया, वह निष्पक्ष शासन करें और जनता के हित में कार्य करे, जिसे प्रतिपक्ष बनाया गया है वह प्रबल प्रतिपक्ष का कार्य करते हुए प्रजातंत्र को मजबूत करें।


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