नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
स्वच्छ भारत अभियान SBM (ग्रामीण) के नारे एक कदम स्वच्छता की ओर को पार्टी विशेष के ठेकेदार कम कार्यकर्ताओ ने एक कदम भ्रष्टाचार की ओर में बदल दिया है। 2014 में महात्मा गांधी की 145 वीं जयंती पर शुरू की गई इस योजना के दूसरे चरण में अधिकारी और ठेकेदारों की मिलीभगत ने महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में कमाल की लूट मचा रखी है। जलगांव जिले के दो मंत्रियों के विभाग सीधे इस योजना से जुड़े हुए हैं। ग्रामविकास मंत्री गिरीश महाजन के गृह निर्वाचन क्षेत्र जामनेर में इस योजना के नियमों को इस लिए ताक पर रख दिया गया है ताकि ठेकेदारों को सीधा लाभ मिल सके। इसका जीता जागता नमूना देवपिंप्री ग्राम पंचायत में आप देख सकते हैं, यहां सब कुछ गोलमाल है।
हर घर के लिए व्यक्तिगत शौचालय के उपलब्धि के पैमाने पर सार्वजनिक शौचालयों के यूनिट (जिसमें तीन या चार सीट का शौचालय होता है) मंजूर किए जाने चाहिए। जिले में देवपिंप्री जैसे सैकड़ों गांव हैं जिनमें व्यक्तिगत शौचालयों की संख्या के पैमाने को दरकिनार कर अनावश्यक रूप से सार्वजनिक शौचालय यूनिट के लाखों रूपयों के टेंडर जारी किए गए हैं। इन यूनिट में तीन जनरल और एक कमोड सीट के साथ पानी की टंकी, दैनिक साफ-सफाई का प्रावधान है। नेताओं के दबाव में प्रशासन की ओर से कमीशन की लालच में चॉकलेट की तरह बांटे जा रहे इन तमाम सार्वजनिक शौचालयों का सारा का सारा निर्माण काम बेहद घटिया है। SBM ग्रामीण को लेकर आए दिन लगने वाले आरटीआई और उनके निपटारे की प्रक्रिया एक पूरक व्यवस्था को जन्म दे चुकी है। किसी भी आरटीआई से आज तक SBM से जुड़ा कोई स्कैम उजागर नहीं हो पाया है। आखिर आरटीआई का हासिल क्या इस पर अलग से बहस होनी चाहिए। राज्य में संविधान के मूल्यों को खारीज कर विधायकों का संगठित गिरोह सरकार के नाम पर एक ऐसा सिस्टम चला रहा है जिसमें हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्री बनाए गए हैं। इस परिस्थिति में SBM में लिप्त महाभ्रष्टाचार को लेकर कर्तव्य परायण एजेंसियों से किसी भी किस्म की जांच की गारंटी की उम्मीद करना भारत के खिलाफ साजिश करार दी जा सकती है। वैसे भी ब्लू बुक के कवर का रंग अब ऑरेंज हो गया है आशा करते है कि वह 2024 में फिर से ब्लू हो सके।
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