अशफाक कायमखानी, ब्यूरो चीफ, जयपुर (राजस्थान), NIT:
प्रदेश को मुख्यमंत्री व देश को उप प्रधानमंत्री एवं लोकसभा अध्यक्ष देने वाले सीकर की राजनीति में इसी हफ्ते घटे घटनाक्रमों से लगता है कि अब जिले की राजनीति में काफी कुछ नया होने वाला है। छः माह में होने वाले आम विधानसभा चुनाव की चौसर अब बिछने लगी है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुभाष महरिया के कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने व सचिन पायलट की सभा में दिग्गज कांग्रेस नेता एवं पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी नारायण सिंह का जाना जिले की राजनीति में करवटे बदलने के साफ संकेत माना जा रहा है। चौधरी नारायण का इस साढे चार साल में राजनीतिक मंच साझा करने का पहला अवसर था।
1996 में भाजपा के कमल के निशान पर अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़कर सक्रीय राजनीति में कदम रखने वाले राजनीतिक घराने से तालूक रखने वाले सुभाष महरिया 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस में रहकर जिले की आठों विधानसभा सीटों से इतिहास में पहली दफा भाजपा का सफाया करने में अहम किरदार अदा किया। पर उन्हें कांग्रेस में वो सम्मान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था। आखिरकार वो 19 मई को फिर से भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा का दामन थामने को भाजपा को फिर एक कद्दावर व जमीन से जूड़ा नेता मिलना माना जा रहा है। चर्चा है कि महरिया को भाजपा अब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा के सामने विधानसभा चुनाव लड़ाना चाहती है।
सचिन पायलट की अजमेर से जयपुर की जनसंघर्ष यात्रा के अंतिम दिन हुई जनसभा में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व दिग्गज नेता चौधरी नारायण सिह के अपने विधायक पूत्र व जिले के अन्य विधायकों के साथ पहुंचने से जिले की बदलती राजनीति की तरफ साफ इशारा करता है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री का करीबी होने के चलते प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डोटासरा ने जिले के कांग्रेस नेताओं को साईड लाइन करने में काफी हदतक सफलता पाई। बताते हैं कि पिछले दिनों चौधरी नारायण सिंह के जन्मदिन के दिन मुख्यमंत्री गहलोत की सीकर शहर में मौजूदगी व उनके चौधरी को घर जाकर मुबारकबाद देने के कार्यक्रम को आखिरी समय रद्द करवाने के पीछे भी डोटासरा का हाथ बताते हैं। आज डोटासरा व चौधरी यानि गुरु व शिष्य का अलग अलग धड़ों में होना देखा जा रहा है।
कुल मिलाकर यह है कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुभाष महरिया का कांग्रेस छोड़कर फिर से भाजपा का दामन थामने व चौधरी नारायण सिंह का सचिन पायलट की जनसभा में जाना आगे चलकर राजनीतिक समीकरण बनते-बिगड़ते नजर आयेंगे। यह सबकुछ छः माह में धीरे धीरे साफ होने के साथ भाजपा में महरिया व बाजौर की जोड़ी एक दफा फिर नजर आयेगी।
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