रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:
दुनिया में कौन शख्स ऐसा होगा जिसको महसर के हौलनाक मंजर में हुजूर सल्ल० की शफ़ाअत की जरूरत न हो और कितना खुश किस्मत है वह शख्स जिस के मुताल्लिक हजूर सल्ल० यह फ़रमा दें कि उस की शफ़ाअत मेरे जिम्मे जरूरी है। इन सारी रहमतों व नेमतों को देखते हुए झाबुआ के मेघनगर से उमर: के लिए कल मुम्बई से जेद्दा के किये उड़ान भरेंगे। उमरा के लिए रवाना होने वालों में मेघनगर के युवा उद्योगपति जनाब हाजी यूसुफ शेरानी, अब्दुल समद शेरानी, अब्दुल रेहमान शेरानी, अमन, आशिफ, मोहम्मद सअद, हाफिज शादाब व इतनी ही ख़वातीन मेहरम बहनें भी उमरः के लिए मोअज़्ज़िज सफर में साथ रहेंगी ये सब ही एक ही परिवार का जत्था होगा साथ ही मेघनगर के ही हाजी जनाब नानू भाई मंसूरी साहब व उनकी अहलिया, यामीन भाई व उनकी अहलिया मोहतरमा कुल 20 के करीब अफ़राद उमरः के लिए रवाना हुए।
मक्का व मदीना शरीफ़ में हाजरी की फ़ज़ीलत
वहां पर हाजरी देने वालों को बेशुमार नेकियां मिलती हैं।
ये मान्यता है कि धर्म गुरु हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है हज करने वाले और उमरः करने वाले अल्लाह जल्ल शानुहू का वफ्द हैं। अगर वे लोग दुआ मांगें तो अल्लाह जल्ल शानुह उनकी दुआ कुबूल करता है और अगर वे मरिफ़रत चाहें तो उन के गुनाहों की मग्फिरत फ़रमाता है। आगे फरमाया की हज़रत उम्मे सुलेम रज़ियल्लाहु अन्हा हुजूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुईं और अर्ज किया कि (मेरे खाविंद) अबू तलहा और उन के बेटे हज को चले गये और मुझे छोड़ गये। हुजूर सल्ल० ने फ़रमाया कि रमजान में उमरः करना मेरे साथ हज करने के बराबर है।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का इर्शाद है कि जिसने मेरी वफ़ात के बाद मेरी जियारत की तो ऐसा है गोया कि मेरी ज़िंदगी में जियारत की।
मिश्कात शरीफ़ में इर्शाद नक़ल किया गया कि जिस शख्स ने हज किया, फिर मेरी क़ब्र की जियारत की, वह मिस्ल उस शख्स के है जिसने कि मेरी जिंदगी में जियारत की हो।
इश्के खुदा व मोहब्बते रसूल पर अशआर
हक ताला व तक़द्दस के साथ दूसरा ताल्लुक मुहब्बत और इश्क़ का है कि वह मुरब्बी है, मुनइम है, मुहिसन है और जमाल व कमाल के जितने औसाफ हो सकते हैं, उन सब के साथ मुनसिक है। इधर हर आदमी में फ़ित्री तौर पर इश्क़ व मुहब्बत का माद्दा मोजूद है। शायर ने अपने अंदाज में चंद अशआर खुदा की इश्क मोहब्बत में पेश किए की..
अज़ल से हुस्न परस्ती लिखी थी क़िस्मत में,
मेरा मिज़ाज लड़कपन से आशिकाना था। पैदा हुए तो हाथ जिगर पर धरे हुए, क्या जानें हम हैं कब से किसी पर मरे हुए। चमन के तख्त पर जिस दम शहे गुल का तजम्मुल था, हजारो बुलबुलों की फ़ौज थी, एक शोर था, गुल था। जब आए दिन खिजां के कुछ न था जुज़ खार गुलशन में, बताता बाग़बां रो-रो यहां गुरुंचा, यहां गुल था।
मेघनगर रेलवे स्टेशन पर उमरा के लिए जाने वालों को मुबारकबाद देने वालों की लगी भीड़
मेघनगर स्टेशन पर काफी तादाद में हिन्दू मुस्लिम समाज के गणमान्य लोग मुबारकबाद देने के लिए शामिल हुए जिनमें खासतौर से मुफ़्ती अशफ़ाक़ साहब, हाफ़िज़ रिजवान हाफिज समद, हाजी इरफान, डॉ अय्युब, हाजी न्याज़ मोहम्मद इशहाक शीशगर, पत्रकार रहीम शेरानी, मोहमद हुसैन, हाजी सलीम सेठ, अनवर भाई, निसार शेरानी, राजु कादरी टेलर, सा., राजू भाई मराठा, राजेश सोलंकी, सुमित ब्रजवासी, राजेंद्र आदि गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे व
मुबारकबाद दी। मुबारकबाद देने में मुस्लिम ही नहीं बल्कि हमारे हिन्दू समाज के मोअज़्ज़िज़ हज़रात भी शामिल हुए और खुदा हाफिज कहा।
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