अतिश दीपंकर,नई दिल्ली, NIT;
मेरे प्यारे देश वासियो, नमस्कार। मनुष्य का मन ही ऐसा है कि वर्षाकाल मन के लिये बड़ा लुभावना काल होता है। पशु, पक्षी, पौधे, प्रकृति – हर कोई वर्षा के आगमन पर प्रफुल्लित हो जाते हैं। लेकिन कभी-कभी वर्षा जब विकराल रूप लेती है, तब पता चलता है कि पानी की विनाश करने की भी कितनी बड़ी ताक़त होती है। प्रकृति हमें जीवन देती है, हमें पालती है, लेकिन कभी-कभी बाढ़, भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदायें, उसका भीषण स्वरूप, बहुत विनाश कर देता है। बदलते हुए मौसम-चक्र और पर्यावरण में जो बदलाव आ रहा है, उसका बड़ा ही Negative impact भी हो रहा है।
पिछले कुछ दिनों से भारत के कुछ हिस्सों में विशेषकर असम, North-East, गुजरात, राजस्थान, बंगाल के कुछ हिस्से, अति-वर्षा के कारण प्राकृतिक आपदा झेलनी पड़ी है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की पूरी Monitoring हो रही है। व्यापक स्तर पर राहत कार्य किए जा रहे हैं। जहाँ हो सके, वहाँ मंत्रिपरिषद के मेरे साथी भी पहुँच रहे हैं। राज्य सरकारें भी अपने-अपने तरीक़े से बाढ़ पीड़ितों को मदद करने के लिए भरसक प्रयास कर रही हैं। सामाजिक संगठन भी, सांस्कृतिक संगठन भी, सेवा-भाव से काम करने वाले नागरिक भी, ऐसी परिस्थिति में लोगों को मदद पहुँचाने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। भारत सरकार की तरफ़ से, सेना के जवान हों, वायु सेना के लोग हों, NDRF के लोग हों, Paramilitary forces हों, हर कोई ऐसे समय आपदा पीड़ितों की सेवा करने में जी-जान से जुड़ जाते हैं। बाढ़ से जन-जीवन काफी अस्त-व्यस्त हो जाता है। फसलों, पशुधन, Infrastructure, Roads, Electricity, Communication links सब कुछ प्रभावित हो जाता है। खास कर के हमारे किसान भाइयों को, फ़सलों को, खेतों को जो नुकसान होता है, तो इन दिनों तो हमने Insurance कंपनियों को और विशेष करके Crop Insurance कंपनियों को भी Proactive है।
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