सुदूर वनवासी क्षेत्र ग्राम जामठी में पूर्व मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस ने मनाई बिरसा मुण्डा की जयंती | New India Times

मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:

सुदूर वनवासी क्षेत्र ग्राम जामठी में पूर्व मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस ने मनाई बिरसा मुण्डा की जयंती | New India Times

ज़िले के सुदूर वनवासी क्षेत्र ग्राम जामठी में भगवान बिरसा मुण्डा की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम प्रदेश प्रवक्ता व पूर्व मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस की उपस्थिति में संपन्न हुआ। इस दौरान ग्राम जम्बूपानी, मालवीर, चौंडी, गढ़ी, भावसा सहित आदि गांव के वनवासी उपस्थित रहे। इस अवसर पर जनपद पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि प्रदीप पाटिल, पूर्व जिला पंचायत सदस्य गुलचंद्रसिंह बर्ने, जिला पंचायत सदस्य किशोर पाटील, वरिष्ठ नेता रामभाऊ पाटील, मंसूरी समाज के जिलाध्यक्ष गफ्फार मंसूरी, पूर्व जनपद सदस्य कैलाश भाई, सरपंच गुरसिंग भाई, शांतिलाल पाटील, मोहद के सरपंच रफ़ीक तड़वी, मालवीर के उपसरपंच बलवंत भाई, संजय चौधरी, नवनीत तायड़े, ग्राम के रामलाल भाई, रुमालसिंग भाई, जगदीश पटेल, नाहरसिंह भाई, मिश्रीलाल भाई, विजय राठौड़ एवं सभी देवतुल्य कार्यकर्तागण व ग्रामीणजन उपस्थित रहे।

इस अवसर पर श्रीमती अर्चना चिटनिस ने कहा कि बिरसा मुण्डा अपनी संस्कृति सम्मान व अंग्रेजों के आतंक एवं ईसाई मिशनरीज के घातक षडयंत्रों के विरोध में संघर्ष का शंखनाद करने वाले जनजाति गौरव थे। आज सारा देश, जनजातीय गौरव दिवस मना रहा है, कारण धरती आबा, बिरसा मुंडा जी का जन्मदिवस है। बिरसा मुंडा यह अद्भुत व्यक्तित्व हैं। कुल जमा पच्चीस वर्ष का ही छोटासा जीवन उन्हें मिला। किन्तु इस अल्पकालीन जीवन में उन्होंने जो कर दिखाया, वह अतुलनीय है। अंग्रेज़ उनके नाम से कांपते और थर्राते थे।
बिरसा मुंडा के पिताजी जागरूक और समझदार थे। बिरसा मुंडा की होशियारी देखकर उन्होंने उनका दाखला, अंग्रेजी पढ़ाने वाली, रांची की, ‘जर्मन मिशनरी स्कूल’ में कर दिया। जहां स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही बिरसा जी को समाज में चल रहे, अंग्रेजों के दमनकारी काम भी दिख रहे थे। अभी सारा देश 1857 के क्रांति युद्ध से उबर ही रहा था। अंग्रेजों का पाशविक दमनचक्र सारे देश में चल रहा था। यह सब देखकर बिरसा जी ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। ’वे पुनः हिन्दू बने और अपने वनवासी भाईयों को, इन ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण की कुटिल चालों के विरोध में जागृत करने लगे। 1894 में छोटा नागपुर क्षेत्र में पड़े भीषण अकाल के समय बिरसा मुंडा जी की आयु मात्र 18 वर्ष थी, लेकिन उन्होंने अपने वनवासी भाईयों की अत्यंत समर्पित भाव से सेवा की। इस दौरान वें अंग्रेजों के शोषण के विरोध में जनमत जागृत करने लगे। वनवासियों को हिन्दू बने रहने के लिए उन्होंने एक जबरदस्त अभियान छेड़ा। अंग्रेजों ने जेल के अंदर बंद बिरसा मुंडा पर विषप्रयोग किया, जिसके कारण, 6 जून 1900 को रांची के जेल में, वनवासियों के प्यारे, ‘धरती आबा’, बिरसा मुंडा जी ने अंतिम सांस ली। वनवासियों की हिन्दू अस्मिता की आवाज को बुलंद करने वाले, उनको धर्मांतरण के दुष्ट चक्र से सावधान करने वाले और राष्ट्र के लिए अपने प्राण देने वाले बिरसा मुंडा जी का स्मरण करना याने राष्ट्रीय चेतना के स्वर को बुलंद करना है।


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