नरेंद्र इंगले, जामनेर/जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
राज्य सरकार के स्वास्थ मंत्रालय द्वारा सूबे के सभी जिला, उपजिला तथा ग्रामीण अस्पतालों में उपचाररत इनडोर यानी इलाज के लिए दाखिला ले चुके गरीब मरीजों को दो वक्त का भोजन और सुबह का चाय नाश्ता मुफ़्त में दिया जाता है. इस योजना का पैसा सरकार की ओर से सीधे जिला शल्य चिकित्सक को ट्रांसफर किया जाता है. शल्य चिकित्सक की ओर से संबंधित ठेकेदार को बिल के रूप में महीने के अंत में भोजन का पैसा अदा किया जाता है. इस योजना में कमाल की गड़बड़ियां सामने आ रही हैं. मेन्युकार्ड के अनुसार मरीजों को खाना नहीं दिया जा रहा है. मेन्युकार्ड जो सरकार की ओर से निर्धारित किया गया है उसके मुताबिक मरीजों को दाल, चावल, रोटी, सब्जी देनी होती है लेकिन ठेकेदार की ओर से इन सब की जगह खिचड़ी और कढ़ी देकर रोटी, सब्जी, दाल डिश से गायब कर गेंहू, दाल, हरी सब्जी का पैसा बचाया जाता है जबकि सरकार की ओर से ठेकेदार को दाल चावल रोटी सब्जी का पूरा पैसा बहाल किया जाता है. ठेकेदार इस चालाकी को हर रोज दोहराकर हफ्तेभर के मेन्युकार्ड की धज्जियां उड़ाकर कम लागत में लाखो रुपया कमा रहा है. महीने के आखिर में अस्पतालों के बाबू लोग ठेकेदार से रिश्वत में मिले रुपयों से अपनी जेब गर्म करके भोजन बिलों का ब्यौरा बनाकर वरिष्ठ स्तर पर भेज देते हैं जहाँ ऊपर बैठे अधिकारी भी अपना कमीशन लेकर ठेकेदार के भोजन बिल सरकारी तिजोरी से पास करवा देते हैं. जानकारी के मुताबिक नासिक की किसी NGO को भोजन प्रबंधन तथा वितरण का ठेका दिया गया है. NGO ने जिला और ब्लाक स्तर पर सह ठेकेदारों का जाल बिछा रखा है जो भोजन प्रबंधन का कामकाज संभालते हैं. इस पूरे मामले की अगर जांच की गई तो करोड़ों रुपयों के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होगा. NCP के एक पदाधिकारी ने नाम ना प्रकाशित करने की शर्त पर इस भोजन घपले के मामले की जानकारी दी है. प्रदेश का प्रत्येक टैक्स पेयर्स सिटीजन सूबे के सबसे बड़े विपक्षी दल बीजेपी से यह उम्मीद कर सकता है कि वो राज्यपाल बनाम सरकार इस झमेले में पड़ने के बजाये लोकहित मे इस योजना मे लिप्त भ्रष्टाचार की जड़ तक पहुंचे.
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