विलुप्त हो चला है घंसौर के दिवारी पंचायत का दिवारी तालाब | New India Times

पीयूष मिश्रा, सिवनी ( मप्र ), NIT; ​​
विलुप्त हो चला है घंसौर के दिवारी पंचायत का दिवारी तालाब | New India Timesबदलते दौर में जहां जल, जंगल और जमीन बचाने की होड़ लगी हुई है, वहीं जनपद पंचायत घंसौर के अंतर्गत आने वाली दिवारी पंचायत स्थित दिवारी का तालाब अपने अस्तित्व को दिनों दिन खोता जा रहा है। लगभग 70 एकड़ में फैले इस तालाब को किसी जमाने में जिले के सबसे बड़े तालाब का स्थान प्राप्त था। दिवारी का तालाब आज अंदर ही अंदर सिमटता सा जा रहा है। कारण जो भी हो मगर आने वाले दिनों में यह बड़े जल संकट की और प्रकृति का इशारा है। अगर दिवारी तालाब को देखा जाये तो यह तालाब घंसौर जबलपुर मार्ग में सड़क के किनारे पड़ता जिले का सबसे बड़ा तालाब होने के कारण इसकी देख रेख जिला पंचायत के जिम्मे दी गई है। मगर इसे रखरखाव का आभाव कहें या फिर जिले के अधिकारियों की उदासिनता इस तालाब को अपनी नियति पर रोना रोकर दूसरों को सुनाना पड़ रहा है। गांव वालों की मानें तो समय के साथ साथ दिवारी के तालाब के आस पास के खेत मालिकों के रकबे बढ़ते गये और यह तालाब खुद में सिमटता गया। आज की स्थिति में यह आधे से भी कम बचा है जो की एक चिंता का गहन विषय है।

पिछले दिनों कलेक्टर भरत यादव से लेकर वर्तमान में जिला कलेक्टर धनराजू एस. ने जल बचाओ मुहिम के अंतर्गत मुख्यालय के तमाम तालाबों का जिस प्रकार भागीरथ की तरह जीर्ण उद्धार कराया उससे जिले में जीर्ण शीर्ण स्थिति में पड़े अन्य तालाबों ने भी बाट जोहनी चालूरकर दी, मगर इसे जानकारी का आभाव कहें या फिर अधिकारियों की मुख्यालय से बढ़ता प्रेम क्योंकि जो अच्छे कार्य किये जाते हैं। वह जिले तक सिमट कर रह जाते हैं। दिवारी के मासूम ग्रामीणों ने जल आवर्धन के इस मुद्दे पर कलेक्टर धनराजू एस . से हस्तक्षेप की अपील है।

मत्स्य विभाग करता है मछली उत्पादन

गांव वालों की मानें तो दिवारी के इस ऐतिहासिक तालाब का रखरखाव जहाँ जिला पंचायत करता है वहीं इस तालाब में मछली उत्पादन का कार्य मत्स्य विभाग द्वारा किया जाता है। मुनाफे के इस दौर में जहाँ इस तालाब ने मत्स्य विभाग को मालामाल कर दिया है। वह विभाग भी आज इसकी स्थिति देखने तक नही झांक रहा है, आलम यह है कि दिनों दिन इस तालाब का जलस्तर घटता ही जा रहा है। गांव के शिक्षित वर्ग इस तालाब के जीर्ण उद्धार में मत्स्य विभाग से आसा लगाए हुए हैं। अब देखना है कि मत्स्य विभाग इस दिशा में क्या उचित कदम उठाता है?

सौ बात की एक बात यह कि शासन को भी इस मसले को गंभीरता से लेना चाहिये जब कहीँ जाकर पुरानी धरोहर की हिफाजत हो सकेगी।


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts to your email.

By nit

This website uses cookies. By continuing to use this site, you accept our use of cookies. 

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading