मेहलक़ा अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:
प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के पदाधिकारियों और सदस्यों ने 3 सितंबर 2020 को एक पत्रकार वार्ता का आयोजन कर मीडिया के माध्यम से अपनी समस्याओं से अवगत कराया था। उसका निष्कर्ष यह कहा जा सकता है कि हाई कोर्ट जाने के पश्चात प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन को रिलीफ नहीं मिलने की वजह से उसके दोनों हाथ खाली हैं। निजी स्कूल संचालक अब असमंजस की स्थिति में हैं और स्थिति यह बन गई है कि अब उससे उगला जा रहा है ना निगला जा रहा है। ऐसी स्थिति में निजी स्कूल संचालकों को केवल शासन से ही उम्मीद बची है। निजी स्कूल संचालकों की ओर से एसडीएम को आज एक ज्ञापन दिया गया। एसोसिएशन का कहना है कि हाई कोर्ट ने प्राइवेट स्कूलों को ट्यूशन फीस वसूल करने का आदेश दे दिया है लेकिन विद्यार्थियों के पालको द्वारा ट्यूशन फीस देने में आनाकानी की जा रही है। सरकार के निर्देशानुसार कक्षा 9वीं से 12वीं तक के विद्यार्थियों को ऑनलाइन पढ़ाई करवाई जा रही है, जिसके लिए विषय शिक्षकों की आवश्यकता होती है। जिन्हें वेतन स्कूल को देना अनिवार्य है। ऐसे में यदि पालक ट्यूशन फीस नहीं भरेंगे तो निजी स्कूल कैसे शिक्षकों को वेतन देगी? कई प्राइवेट स्कूल तो किराए की बिल्डिंग में संचालित हो रहे हैं। कई प्राइवेट स्कूलों ने बैंकों से लोन ले रखे हैं जिसमें लॉकडाउन के अवधि की कोई राहत नहीं दी गई है ।ऐसे में कई प्राइवेट स्कूल बंद होने के कगार पर आ गए हैं।ऐसी ही कई समस्याओं के साथ राज्यपाल, मुख्यमंत्री और स्कूल शिक्षा विभाग से अपेक्षा की गई है कि, निजी स्कूल संचालकों की व्यवहारिक कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए इस आशय का एक आदेश पारित करें कि पालकों को प्राइवेट स्कूलों को ट्यूशन फीस देना अनिवार्य है।इस आदेश के पारित होने से निजी स्कूल संचालकों को आक्सीजन मिल सकती है। लेकिन सवाल यह भी है कि जब मामला कोर्ट में विचाराधीन हो तो एसा रिस्क कोन लेगा ? बड़ा सवाल यह भी है कि कोरोना काल को देखते हुए बीच का रास्ता निकालने पर विचार करना ज़रूरी है।
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