राजस्थान विधानसभा उपचुनाव: राजस्थान के खींवसर से बेनीवाल व मंडावा से रीटा ने लहराया परचम | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:राजस्थान विधानसभा उपचुनाव: राजस्थान के खींवसर से बेनीवाल व मंडावा से रीटा ने लहराया परचम | New India Times

तकरीबन एक साल पहले राजस्थान के आम विधानसभा चुनाव मे भाजपा को पीछे धकेलते हुये बहुमत से एक सीट कम आने पर कांग्रेस की अशोक गहलोत के नेतृत्व में सरकार बनने के कुछ माह बाद हुये लोकसभा चुनाव में खीवसर से रालोपा विधायक हनुमान बेनीवाल व मंडावा से भाजपा विधायक नरेन्द्र खीचड़ के नागौर व झूंझुनू से सांसद चुने जाने से रिक्त हुई सीटों पर हुये उपचुनाव के आज आये परिणाम में मंडावा की सीट भाजपा से कांग्रेस ने छीन ली है एवं खीवंसर सीट पर रालोपा का कब्जा बरकरार रहा है।
खीवंसर सीट के 2008 में गठन होने से पहले यह मुंडवा सीट कहलाती थी जहां से 1980 में हरेन्द्र मिर्धा ने हनुमान बेनीवाल के पिता रामदेव चौधरी को हराया था। फिर 1985 में रामदेव चौधरी ने हरेन्द्र मिर्धा को हराकर अपनी हार का बदला लिया था। उसके बाद अब खीवंसर के हुये उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार हरेन्द्र मिर्धा का मुकाबला एक दफा फिर चाहे रामदेव चोधरी से ना सही पर रालोपा उम्मीदवार उनके पूत्र नारायण बेनीवाल से हुवा जिसमें मिर्धा को हार का मजा चखना पड़ा है। खीवंसर सीट रालोपा नेता हनुमान बेनीवाल की परम्परागत सीट मानी जाती है जहां से हनुमान भाजपा, निर्दलीय व रालोपा के निशान पर चुनाव जीत चुके हैं। इस दफा हनुमान के सांसद बनने से रिक्त हुई सीट के उपचुनाव में उनके भाई नारायण ने जीत दर्ज कर अपनी पारिवारिक सीट पर कब्जा बरकरार रखा है। नारायण बेनीवाल के अपने भाई का पूरा चुनावी मैनेजमेंट व पूरा ग्राऊंड वर्क करते रहने के कारण उनके मतदाताओं से खास जुड़ाव होने का उनको फायदा मिला है।
मंडावा सीट से पहली दफा भाजपा का परचम लहराने वाले नरेन्द्र खीचड़ के सांसद बनने से खाली हुये सीट के उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रीटा चौधरी ने 33 हजार से अधिक मतों के अंतर से भाजपा उम्मीदवार सुशीला सीगड़ा पर जीत दर्ज की है। इससे पहले रीटा 2008 में कांग्रेस की टिकट पर मंडावा से चुनाव जीत कर विधायक बनने के बाद 2013 में टिकट ना मिलने पर बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़ा और हार गई। फिर 2018 में कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा और चुनाव हार जाने के बाद अब उपचुनाव में एक दफा फिर जीत दर्ज की है।
झूंझुनू की कांग्रेस राजनीति में हमेशा से शीशराम ओला व चौधरी रामनारायण के अलग-अलग पोल रहे हैं। शीशराम ओला के देहांत के बाद उनके विधायक पूत्र विजेंदर ओला ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढाया जो वर्तमान में झूंझुनू से विधायक होने के अलावा पहले से विधायक का चुनाव जीतते आ रहे हैं। वह राजस्थान सरकार में मंत्री रहने के अलावा जिला प्रमुख भी रहे हैं। रीटा के इस चुनाव में नामांकन से लेकर चुनाव प्रचार के अतिरिक्त 18-अक्टूबर को झूंझुनू शहर में रीटा के समर्थन में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व प्रदेशाध्यक्ष पायलट की हुई चुनावी सभा से भी अपने आपको पूरी तरह दूर रखा था। नरेन्द्र खीचड़ के बाद भाजपा को रीटा के सामने जब मजबूत उम्मीदवार पार्टी में नजर नहीं आया तो उन्होंने ओला खेमे की नेता व तीन दफा मंडावा की प्रधान रहने वाली सुशीला सीगड़ा को टिकट देकर भाजपा उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा लेकिन सीगड़ा को रीटा के मुकाबले बडे अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा।

कुल मिलाकर यह है कि दिग्गज जाट नेता हनुमान बेनीवाल की ताकत के सामने वर्तमान कांग्रेस सरकार के चुनाव जीतने के सारे प्रयास धाराशायी हो गये हैं। नागौर के दिग्गज राजनीतिक जाट घराने से कांग्रेस उम्मीदवार हरेन्द्र मिर्धा को रालोपा उम्मीदवार व सांसद हनुमान बेनीवाल के छोटे भाई नारायण बेनीवाल के सामने करीब 4600 से अधिक मतों से हार का मुहं देखना पड़ा है। दूसरी तरफ पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रामनारायण की पूत्री रीटा चौधरी ने भाजपा उम्मीदवार सुशीला सीगड़ा को करीब 33 हजार से अधिक मतों से हराकर मंडावा से दूसरी दफा विधायक बनने का अवसर पा लिया है।


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