आल इंडिया पयामे इंसानियत फोरम ने दिया गया इंसानियत का पैगाम | New India Times

शाहनवाज़ खान, भोपाल (मप्र), NIT:

आल इंडिया पयामे इंसानियत फोरम ने दिया गया इंसानियत का पैगाम | New India Times

आल इंडिया पयामे इंसानियत फोरम की जानिब से एक प्रोग्राम का आयोजन कर इंसानियत का पैगाम दिया गया।

अखिल भारतीय मानवता सन्देश अभियान 28, 29, और 30 दिसम्बर सन् 1974 ई. को इलाहाबाद से एक नये अनुभव का शुभारम्भ हुआ। देश की दिन प्रतिदिन बिगड़ती हुई परिस्थिति और यहाँ मानवता तथा नैतिक मान्यताओं के पतन से प्रभावित होकर मौलाना सैय्यद अबुल हसन अली नदवी रह. (अली मियाँ) ने धर्म तथा सम्प्रदाय में भेद-भाव किये बिना समाज के प्रत्येक वर्ग से सम्पर्क स्थापित करने तथा प्रवचनों द्वारा मानवोत्थान के लिए एक संघर्ष का आरम्भ किया। ऐसे पवित्र, महत्वपूर्ण, समयानुकूल एवं शुभ कार्य का प्रारम्भ इलाहाबाद नगर से किया गया, जिसके नामकरण का उल्लेख मौलाना के शब्दों में इस प्रकार वर्णित है-
‘इलाहाबाद से हमने इस कार्य का शुभारम्भ किया है क्योंकि इसका नाम ही इलाहाबाद’ अर्थात ईश्वर की नगरी
है। अतः यहीं से ईश्वर भक्ति का आन्दोलन एवं मानवता के उत्थान का आह्वान होना चाहिए। खुदा के बन्दों का
सत्कार करने, मानवता को नया जीवन प्रदान करने तथा इन्सानों को मानवता एवं नैतिकता का भूला हुआ पाठ
स्मरण कराने का कार्य वास्तव में इसी नगर से होना चाहिए था, जो ईश्वर के नाम से बसा हुआ है।
मौलाना के इसी आह्वान को समस्त देश में मानवता तथा नैतिकता के आन्दोलन एवं संघर्ष का रूप देने के लिए
लखनऊ में अखिल भारतीय मानवता सन्देश अभियान’ की स्थापना हुई है। यह कोई नयी संस्था, राजनीतिक दल
अथवा पार्टी नहीं है, बल्कि यह एक नयी एवं अपरिचित पुकार लगाने वालों का सार्वजनिक प्लेटफॉर्म है।
यदि आप इस आह्वान एवं आन्दोलन को देश के लिए आवश्यक समझते हों, तो सत्यता एवं मानवता के इस नवीन काफिले में सम्मिलित हो जाइये।

नफरत की आग बुझाइये, हज़रत अली मियाँ का सदुपदेश:

‘सज्जनों! यदि दिल चीर कर या आंसुओं को बहाकर देश के पर्वतों, वृक्षों और नदियों के ज़रिये हम आपको इस देश की कराह सुनवा सकते तो अवश्य इस कराह को आप तक पहुंचाते। यदि वृक्ष और पशु बोलते तो वे आपको बताते कि इस देश की अन्तरात्मा घायल हो चुकी है। उसकी प्रतिष्ठा और ख्याति का बट्टा लगाया जा चुका है और पतन की ओर बढ़ने से वह अग्नि-परीक्षा के एक बड़े ख़तरे में पड़ गया है। आज सन्तों, धर्मनिष्ठों, दार्शनिकों, लेखकों और आचार्यों के मैदान में आने, नफ़रत की आग बुझाने और प्रेम का दीप जलाने की आवश्यकता है। इस देश की नदियां, पर्वत और देश के कण-कण तक आपसे अनुरोध कर रहे हैं कि आप इंसानों का रक्तपात न कीजिये, नफ़रत के बीज मत बोइये, मासूम बच्चों को अनाथ होने और महिलाओं को विधवा होने से बचाइये। भारत को जिन विभूतियों ने स्वाधीन कराया था, उन्होंने अहिंसा, सद्व्यवहार और जनतंत्र के पौधों की सुरक्षा का दायित्व हमें सौंपा था और निर्देश दिया था कि इन पौधों को हाथ न लगाया जाये, किन्तु हम उनकी सुरक्षा में असफल रहे। इसके फलस्वरूप आज हिंसा और टकराव का दानव हमारे सामने मुंह खोले खड़ा है। नफ़रत और हिंसा की आग हमारी उन समस्त परम्पराओं को जला देने पर तत्पर है, जिनके लिए हम समस्त संसार में विख्यात थे और आदर एवं प्रतिष्ठा की दृष्टि से देखे जाते थे।
हमारी गलतियों ने बाहरी देशों में हमारा सिर नीचा कर दिया और हमारी स्थिति यह हो गयी है कि हम मुंह दिखाने योग्य नहीं रह गये हैं।

आप नफ़रत की इस आग को बुझाइये और याद रखिये! जब यह हिंसा किसी देश या क़ौम में आ जाती है तो फिर दूसरे धर्म वाले ही नहीं, अपनी ही क़ौम और धर्म की
जातियां और बिरादरियां, परिवार, मुहल्ले, कमज़ोर और मोहताज इंसान, जिनसे लेशमात्र भी विरोध हो, उसका निशाना बनते।


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts to your email.

By nit

This website uses cookies. By continuing to use this site, you accept our use of cookies. 

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading