नरेंद्र इंगले, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
भाजपा की महाजनादेश यत्रा के महीने बाद बारामती जैसे विकास की चाह रखने वाले जामनेर शहर की मुख्य सड़कें फ़िर से चमक रही हैं। निगम के अस्थायी सफ़ाई कर्मी दिवाली के बोनस और दिहाड़ी में कुछ रुपयों की बढ़ोतरी के आस में दिन रात शहर की साफ-सफाई में जुट गए हैं। सभी कालोनियों में एलइडी लाइट्स लगाने का काम जोरों पर है, सरकार का प्लास्टिक निरोधी आदेश अचानक से शहर में लागू हो गया है। दुकानदारों ने प्रशासन द्वारा जारी की गयी प्लास्टिक बैन वाली नोटिस को अपने दुकानों में चिपका दिया है, बैन से मंझौले दुकानदारों के व्यापार पर बुरा असर हुआ है जो GDP की गिरावट और मार्केट में छाई व्यापक मंदी की तुलना में यकीनन कोई खास मायने नहीं रखता होगा। इस बार जामनेर की सड़कों की चमक की वजह बनी है केंद्र सरकार से पधारी स्वास्थ विभाग की औचक निरीक्षण टीम की मौजदूगी। वैसे इसी तरह की टीम इससे पहले कब आई थी इसके बारे में लोगों को ठीक ठीक याद नहीं होगा तब कुछेक अखबारों में प्रकाशित खबरों से टीम के शाहीठाठ और टीम की रिपोर्ट के बाद मिलने वाले फंड का महिमामंडन जरुर किया गया था मगर इस बार खबर यह आ रही है कि प्रोटोकाल के हवाले से मीडिया को निरीक्षण टीम की अगवानी का मौका नहीं मिल सका है। पत्रकारों ने प्रशासन के इस पक्षपात पर मौनव्रत रख लिया, असहमती का यह तरीका इस लिए नायाब है क्योंकि इसमें असहमति तो है लेकिन किसी के प्रति सम्मानजनक प्रेम से सनी हुयी। राज्य विधानसभा के चुनाव घोषित हो चुके हैं ऐसे में इस इवेंट को लेकर स्पेस गंवा चुके माध्यम आचारसंहिता के नियमों को ध्यान में रखकर आने वाले दिनों में करोड़ों रुपयों के निधि के संभावनाओ को लेकर जनता का मनोरंजन कर सकते हैं जैसा कि हमेशा से होता आया है। कमेटी के विषय में मुख्याधिकारी से आधिकारिक रुप में संपर्क किया गया जो असफ़ल रहा। स्वच्छता अभियान या अन्य सार्वजनिक विषयों के निरीक्षण के लिए आते रहे उच्च अधिकारियों की आंखों में प्रशासन की ओर से किस तरह विकास का काजल लगाया जाता है इसे विस्तार से बताने की आवश्यकता नहीं है। सुरंगी नालियों के निर्माण के लिए उखाड़ी गयी पूरे शहर की सड़कें बारिश से दलदल बन चुकी हैं अब बारिश रुक गयी है तो दलदल की जगह सड़कों पर गड्ढे हैं। कचरा प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने से डंपिंग ग्राऊँड मच्छर पैदावार केंद्र बने हैं। इसी ग्राऊँड के बगल में गरीबी के नाम पर झुग्गी झोपड़ियां बन चुकी है जो कैसे बनी यह भी सर्वपरीचित है। पीने का पानी फिल्टर है भी या नहीं इसे लेकर नागरिकों में संदेह इस लिए बना है क्योंकि अस्पताल मरीजों से पटे पडे हैं, सड़कों पर आवारा पशुओं की लामबंदी किसी आंदोलन से कम नहीं आंकी जा सकती। कमेटी की मौजदूगी में इतना सब कुछ हो रहा है लेकिन प्रोटोकाल के कारण कमेटी जनता तक नहीं पहुंच रही या जनता कमेटी तक जहा देश की न्याय पालिका अपने कामकाज को जनताभिमुख बनाने के लिए लाइव कवरेज जैसी पहल के विचाराधीन है वहां सार्वजनिक योजनाओं की गुणवत्ता नापने वाली सरकार की कमेटियां आखिर मीडिया से क्यों बच रही है? क्या ऐसी कमेटियां किसी विशेष सिवील कोड कंडक्ट के दायरे में आती हैं? कवरेज के कथित मनाही से मीडिया के अधिकारों के हुए हनन की भावना इतनी कमजोर क्यों है जो इस विषय पर चंद सच्ची लाईनें भी न लिख सके? इन जैसे तमाम सवालों के जवाब की जवाबदेही मुकम्मल होगी या नहीं यह भी एक सवाल है। सूत्रों के मुताबिक कमेटी ने तीन दिन तक शहर में ठहरकर वर्तमान स्थिति का जायजा लिया जिसके बाद कमेटी जामनेर से निकल गयी है। अब अदभुद विकास नगरी जामनेर के लिए सरकारी कमेटी ने कौनसे पैमाने लगाए हैं यह तो कमेटी की रिपोर्ट में ही छिपा है जो हो सकता है विधानसभा चुनाव के बाद सीधे किसी फंड की घोषणा के रुप में उजागर हो जाए।
