अविनाश द्विवेदी/विजय भदौरिया, भिंड (मप्र), NIT:
बरसात का मौसम आते ही वृक्षारोपण का कार्य शासकीय एवं अशासकीय व्यक्तियों द्वारा प्रारंभ कर दिया गया है और कई पर्यावरण प्रेमी और संस्थाएं बढ़-चढ़कर वृक्षारोपण के इस महान कार्य में सहयोग कर रही हैं लेकिन इन लगाए हुए पौधों में से ज्यादातर ठीक से देखभाल न होने के कारण पूर्ण विकसित होने से पहले ही मर जाते हैं। इस समस्या से निजात पाने के लिए कुछ ऐसे युवा भी हैं जो न केवल बरसात के मौसम में बल्कि वर्षभर अपने घरों में छोटे-छोटे पौधों को लगाकर और उनकी रोजाना देखभाल करके उनको बड़ा वृक्ष बनाकर पालन पोषण करने के बाद लगभग 1 वर्ष बाद उन्हें ले जाकर किसी बेहतर स्थान पर पुनर्स्थापित कर देते हैं। मुख्य बात यह है कि यह युवा सिर्फ बरगद और पीपल के पेड़ों को ही अपने घरों में पाल पोस कर बड़ा करके और फिर बेहतर स्थान पर पूरे सुरक्षा के साथ लगाते हैं और लगातार देख-रेख कर बड़े वृक्ष के रूप में परिवर्तित करते हैं।
इस काम में प्रमुख रूप से अमित सिरोठिया, थान सिंह भदोरिया, अभिषेक जैन, चंद्रजीत अवस्थी, जीतू
श्रीवास, ऋषि जैन एवं उनके मित्र शिक्षक गगन शर्मा सहयोग कर रहे हैं। ये युवा अपने घरों में पौधों को बढ़ाकर किला परिसर में पुनर्स्थापित कर देते हैं।
ऐसा ही एक बरगद का वृक्ष कुछ दिन पूर्व ही अमित सिरोठिया द्वारा किला परिसर में स्थापित किया गया। इनका मानना है कि पीपल और बरगद धार्मिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही यह हमें सबसे ज्यादा ऑक्सीजन भी देते हैं। फल तो हमें बाजारों में भी मिल जाते हैं लेकिन ऑक्सीजन हमें इन बड़े पेड़ों से भरपूर मिलती है इसीलिए हम बरगद और पीपल के वृक्षों को घर में स्थापित कर फिर मैदानों में पुनर्स्थापित कर देते हैं।
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