संदीप शुक्ला, ग्वालियर ( मप्र ), NIT;युगों-युगों से एकात्म चिन्तन के आधार पर पल्लवित – पुष्पित भारतीय संस्कृति में वह्य अक्रमणों व अन्य करणों से उत्पन्न विसंगतियों को संत समाज के नेतृत्व में दूर करने के लिए कृत संकल्पित जीवन जीने वाले, बनवासी, गिरीवसी, धनी, निर्धन, परित्यक्त,अस्पृश्य, जाति,क्षेत्र,भाषा आदि भेदों को मिटाकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के आदर्शों पर चलने वाले एकात्म समरस समाज रचना के लिए आजन्म कटिबद्ध, हिन्दू समाज के सामाजिक समरसता व रंगो का महापर्व होली व फाग महोत्सव की बधाई एंव अनन्त शुभकामनाएं।
होली भारतीय संस्कृति का एक महान पर्व है। होली सामाजिक समरसता, भाईचारे , प्रेम व एकता का संदेश देने वाला पर्व है। कहा जाता है कि होली के अवसर पर लोग अपनी पुरानी से पुरानी शत्रुता को भी समाप्त कर होली का आनंद उठाते हैं। होली कई प्रकार से आनंददायक पर्व है। होली लगभग पूरे भारत में तो मनायी जाती है साथ ही विदेशों में बसे भारतीय भी अपने पारम्परिक रीति रिवाजों के साथ होली का आनंद उठाते हैं।
होली वसंत ऋतु में फाल्गुन मास की पूणिर्मा को मनाया जाने वाला पर्व है।यह पर्व वसंत का संदेशवाहक है। इस पर्व के प्रमुख अंग हैं राग और संगीत। होली पर्व एक प्रकार से बसंत पंचमी से प्रारम्भ हो जाता है और शीतला अष्टमी के साथ संपन्न होता है। वसंत ऋतु होते ही सामाजिक वातावरण होलीमय होने लग जाता है। चूंकिं राग और संगीत होली के प्रमुख अंग हैं अतः इस समय प्रकृति भी रंग- बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था में होती है। होली पर्व के उमंग पर स्त्री हो या फिर पुरूश, या फिर बच्चे सभी पर होली का कुछ अलग ही प्रकार का खुमार चढ़ जाता है। अतिप्राचीन भारतीय परम्परा में होली को काम महोसव के रूप में भी मनाया जाता है। वसंत ऋतु व होली के चलते कामुकता चरम पर होती है। लेकिन आज के युग में इसमें अश्लीलता व फूहड़पन भी आ गया है। लोग होली के इस पावन उमंग को गलत नजरिये से भी देखने लग गये हैं।
प्राचीनकाल में होली का पर्व होलिका या होलाका के नाम से भी मनाया जाता था। होली का पर्व विभिन्न तरीकों से मनाने की प्रथा का उल्लेख विभिन्न साहित्यों में भी मिलता है। इस पर्व का वर्णन जिन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है उनमें जैमिनी के पूर्व मीमांसा सूत्र और गाहय सूत्र में। नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भीइस पर्व का उल्लेख मिलता है। विन्ध्यक्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से 3000 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। संस्कृत साहित्य में वसंत ऋतु और वसंतोत्सव अनेक कवियों के प्रिय विशय रहे हैं। महान कवि कालिदास की रचनाओं में पर्व का व्यापक उल्लेख मिलता है। कालिदास रचित ऋतुसंहार में तो पूरा एक सर्ग वसंतोत्सव को अर्पित है। भारति, माघ और कई अन्य संस्कृत कवियों ने भी वसंत ऋतु की खूब चर्चा की है। आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्तिकालीन कवि सूर, रहीम, रसखान, पदमाकर, जायसी, मीराबाई , कबीर और रीतिकालीन बिहारी, केशव, घनानंद आदि अनेक कवियों के प्रिय विशय रहे हैं। वास्तव में होली अबीर, गुलाल और गीले रंगों सहित पिचकारी का पर्व तो है ही यह पर्व गीत- संगीत, कविता, हंसी, मजाक का भी पर्व हैं।
16 वीं शताब्दी की मेवाड़ की एक कलाकृति में महाराणा को अपने दरबारियों के साथ होली खेलते चित्रित किया गया है।जिसमें राजा कुछ लोगों को उपहार दे रहे हैं नृत्यागनायें मनोहारी नृत्य कर रही हैं और इन सबके बीच रंग का एक कुंड है। बूंदी से प्राप्त एक लघुचित्र में राजा को हाथीदांत के सिंहासन पर बैठा दिखया गया है। जिसके गालों पर महिलायें गुलाल लगा रही हैं।
होली के पर्व को लेकर कई तरह की कहानियां भी प्रचलित हैं। जिसमें हिरण्यकषिपु और प्रहलाद की कहानी सर्वाधिक प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि अतिप्राचीन समय में हिरण्यकषिपु नामक एक राक्षसराज का राज था। वह बहुत ही अभिमानी तथा ईश्वर के प्रति बेहद घृणा का भाव रखता था। अहंकार के चलते उसने अपने राज्य में ईश्वरभक्ति पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी थी। जिसके चलते वह ईश्वर भक्तों पर अत्याचार करता था। जनमाननस उससे पूरी तरह से त्रस्त था। लेकिन स्वयं उसका पुत्र प्रहलाद परम ईष्वर भक्त निकला। जिसके कारण हिरण्यकषिपु ने प्रहलाद को कठोर यातनायें भी दीं। लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। अंत में हर प्रकार से पराजित व लज्जित होकर हिरण्यकषिपु ने उसे मृत्युदंड देने का कठोर फैसला ले लिया। उसकी एक बहिन थी जिसका नाम होलिका था उसे कुछ आशीर्वाद प्राप्त था। जिसके चलते उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ जाये। होलिका ने बिलकुल वैसा ही किया। वह प्रहलाद को लेकर अग्निकुंड में बैठ तो गयी लेकिन प्रहलाद को तो कुछ नहीं हुआ वह पूरी तरह से जलकर समाप्त हो गयी। मान्यता है कि इसी घटना के चलते होली पर्व का प्रारम्भ हुआ। एक प्रकार से यह पर्व यह बात भी याद दिलाता है कि ईश्वर उसी का साथ देता है जो सत्य व ईश्वर भक्ति में पूरी तरह से तल्लीन रहता है। होलिका का दहन समाज व मनुष्यगत बुराईयों के दहन का भी प्रतीक है।
होली पर्व उत्तर प्रदेश सहित लगभग पूरे भारत में विभिन्न तरीकों से मनाया जाने वाला पर्व है। उत्तर प्रदेश में ब्रज की होली का अपना एक अलग ही रंग है। मथुरा आदि में लठमार होली का अपनाएक अलग ही आनंद है।यहां पर होली का आनंद होलाष्टक से ही प्रारम्भ हो जाता है। मथुरा क्षेत्र की होली का आनंद उठाने के लिये विदेषी अतिथि भी खूब आते हैं। पूरा का पूरा क्षेत्र अबीर, गुलाल से सराबोर हो जाता क्षेत्र है।मथुरा और वृंदावन क्षेत्र में होली का पर्व 15 दिनों तक मनाया जाता है। प्रदेश के कानपुर व उन्नाव आदि जिलों में तो होली का पर्व एक सप्ताह तक मनाया जाता है। अवध क्षेत्र में होली का गजब उत्साह देखने को मिलते है। होलीपर लखनऊ में कई प्रकार के रंग देखने को मिलते हैं। चौक की होली की अपनी अनूठी परम्परा है। कुमांऊ की गीतबैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियां होती हैं। हरियाणा के धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताये जाने की परम्परा है। बंगाल की ढोलयात्रा चैतन्य महाप्रभु की जयन्ती के रूप में मनायी जाती है।जुलूस भी निकाला जाता है।
महाराष्ट्र की रंगपंचमी में सूखा गुलाल खेलने की परम्परा है। जबकि गोवा के शिमोगा में जुलूस निकलने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। पंजाब के होला मोहल्ला में सिखों द्वारा शक्ति प्रदर्शन किया जाता है। तमिलनाडु व मणिपुर में भी होली का पर्व मनाने की अनोखी परम्परा है। छत्तीसगढ़ में होली पर लोकगीतों की अपनी परम्परा है। मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में होली का पर्व बेहद धूमधाम से मनाया जाता है।बिहार में फागुआ नाम से होली का पर्व मनाया जाता है।
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