हिन्दुस्तान और नवराष्ट्रवाद......! | New India Times

Edited by Arshad Aabdi, NIT:

हिन्दुस्तान और नवराष्ट्रवाद......! | New India Times

लेखक: सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी

हम, पुलवामा और उसके बाद के आतंकी हमले के बाद बैंगलुरु से पालक्कड़ के लिये बैंगलुरू – कन्याकुमारी एक्सप्रेस से सफर कर रहा थे, तीन नवराष्ट्रवादी नौजवान भी हमारे साथ की तीन शायिकाओं पर आ गये। बातचीत से मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर के छात्र लग रहे थे। बातों से शब्द कम, देश भक्ति का ज्वार ज़्यादा निकल रहा था। पुलवामा और उसके बाद के हमले को लेकर बेहद फिक्रमंद थे।

चाहते थे, बस सेना टैंक लेके घुसे, और सब पाकिस्तानियों को ख़त्म कर दे। रातों रात सेना इज़राइल मोड (भले ही लोग इसका मतलब न जानते हों) में आ जाये।

वो हमसे भी मुख़ातिब हूऐ,’अंकल आप क्या सोचते हैं?’

बग़ैर एक दूसरे का परिचय लिये हम भी उनकी बातचीत में सम्मिलित हो गये। यूं भी हम अपने डील डौल और पहनावे से पंजाबी ज़्यादा लगते हैं।

दरअसल आज जब एक हिन्दु और एक मुसलमान साथ सफर कर रहे होंगे या साथ होंगे तो उनसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष, सर्वधर्म समभाव, आपसी विश्वास और भाई चारा रखने वाला, मिलजुलकर रहने वाला व्यक्ति, इनसे अच्छा दोस्त आपको नहीं मिलेगा।

लेकिन जैसे ही सिर्फ हिन्दु या मुसलमान दो लोग या समूह में एकत्र हुऐ। ज़्यादातर क्या बाते करेंगे? बताने की आवश्यकता नहीं। ऐसा लगेगा कि सामने आने पर एक दूसरे की हत्या करने से भी बाज़ नहीं आयेंगे।

यह आज के हिन्दुस्तान की हक़ीक़त है। पहले यह दोग़लापन नहीं था। यक़ीन मानिये अगर समय रहते इसे नहीं रोका गया तो यह धीरे – धीरे बढ़कर देश के लिये नासूर बनने वाला है।

बहरहाल, बातचीत चल पड़ी। कश्मीर से शूरु होकर पूरी दुनिया पर पहुंच गई। उनमें एक लड़के ने कहा,”सारी दुनिया इस्लामी आतंकवाद से पीड़ित है।”

हमने पूछा दुनिया में कितने मुस्लिम देश हैं?

उनमें से एक बोला,” आई थिंक आलमोस्ट 56।”

हमने पूछा,”उनमें कितने देश आतंकवाद से पीड़ित हैं?”

अब वही लड़का कुछ सोचने लगा,” फिर बोला, ऊं……..आई थिंक फाइव आॅर सिक्स।”

हमने कहा,” ओके. देन टेल मी, रिमेंनिंग 50 टू 51 मुस्लिम कंटरीज़ आर नोट द पार्ट आफ दिस वर्ल्ड? आर दे नौट द पीसफुल कंट्रीज़?”

तीनों नौजवान कुछ सीरियस हो गये। उनमें एक बोला,”यार अंकल की बात में दम है।”

हमने आगे कहा,” दरअसल 56 मुस्लिम देशों में से जिन 4-5 देशों में जो राजनैतिक हिंसा है वैसे ही राजनैतिक है जैसे हिन्दुस्तान की नक्सल हिंसा। अधिकांश तेल का खेल है। पर कुछ लोगों को इन 4-5 मुस्लिम देश ही पूरी दुनिया लगते हैं और शेष 51-52 शांत मुस्लिम देश इस दुनिया के बाहर लगते हैं।

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आज कल सबसे ज़्यादा हिन्दुस्तान से घूमने और छुट्टियों में आराम करने परिवार के परिवार दुबई, शारजाह, आबूधाबी जा रहे हैं और आकर वहां की व्यवस्था, सफाई, मेहमाननवाज़ी, ईमानदारी और अनुशासन की प्रशंसा करते नहीं थकते। यह देश क्या इस्लामी राष्ट्र नहीं?

इस पर दो लड़के एक साथ बोले, “और अंकल कश्मीर में जो हो रहा है?”

हमने जवाब दिया,” समस्या यह है कि हममें से कुछ कश्मीर को हिन्दुस्तान का अभिन्न अंग मानते हैं पर कश्मीरियों को नहीं।

कुछ लोग और संगठन, जो अपने आपको आज कल ज़्यादा देशभक्त प्रदर्शित कर रहे हैं, चाहते हैं कि पूरी दुनिया में जो कुछ ग़लत हो रहा है उसकी ज़िम्मेदारी हिन्दुस्तान के मुसलमान लें और जो हिन्दुस्तान में तथाकथित राष्ट्रवाद के नाम पर ग़लत हो रहा है उस पर चुप रहें।

नफ़रत ने इनको इतना अंधा कर दिया है कि इसी देश के एक हिस्से के लोगों को यह एक एक कर के मार डालना चाहते हैं, उस हिस्से के लोगों का ना कोई मानवाधिकार है ना कोई आरटीआई ना कोई संवेदना पाने का अधिकार।

हमने बताया कि हम ख़ुद कश्मीर में 3X110 मेगावाट किशनगंगा हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट, नेशनल हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट अजर-सोनारवानी रोड बांदीपोरा में ट्रांसफोरमर इरेक्शन और कमीशनिंग के काम के लिये गये हैं। वहां के लोगों के साथ काम किया है।

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बताईये, कभी कोई राष्ट्रीय परियोजना रोकने, उसमें हड़ताल या बंद की ख़बर आई? इन परियोजनाओं में अड़ंगे लगाने के समाचार आये? जबकि सभी परियोजनाओं में 90% मज़दूर और ड्राइवर स्थानीय कश्मीरी और मुसलमान हैं।

कुल बाईस ज़िलों में से चार या पांच ज़िले आतंकवाद से प्रभावित हैं। दुष्प्रचार ऐसा जैसे कि पूरा कश्मीर ही आतंकवादी हो।

अधिकतर संख्या आज भी हिन्दुस्तान के साथ है। पर क्या हो रहा है उनके साथ ? वहाँ किसे मारा जा रहा है ? किसके साथ अत्याचार किया जा रहा है ? यह सब दुनिया तो छोड़िए, शेष हिन्दुस्तान के ही सामने नहीं आ पाता।

ना वहाँ प्रेस जाती है, ना वहाँ मीडिया के कैमरे, ना वहाँ आरटीआई ऐक्टिविस्ट और ना ही वहाँ जाते हैं मानवाधिकार संगठनों के बड़े नाम। जो सूरक्षाबलों और सरकार ने कह दिया वही सच है, वही तथ्य है, वही प्रमाण है और वही परिणाम।

आपने सवाल किया तो सूरक्षाबलों के तथाकथित राष्ट्रवादी चीयरलीडर आप पर पिल पड़ेंगे, जबकि सुरक्षाबल भी एक ज़िम्मेदार और जवाबदेह संस्था है। उसके साथ ग़लत हो तो उसकी निंदा करनी चाहिए, उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना चाहिए। यदि वह ग़लत करें तो उसकी निंदा करनी चाहिए, उनसे सवाल पूछा जाना चाहिए।

पुलवामा हो, ऊरी हो या पठानकोट, सुरक्षाबलों के ऊपर हमला, हम क्या, इस देश के किसी भी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं है। सेना, सुरक्षाबल हमारे रक्षक हैं।

सूरक्षाबलों पर पुलवामा में हमला हो तो उसकी निंदा करना चाहिए, दोषियों पर सख़्त कार्यवाही होना चाहिए। पाकिस्तान से सारे रिश्ते, व्यापारिक भी ख़त्म कर देने चाहिए। क्या किसी हिन्दुस्तानी मुसलमान ने इससे रोका?

परन्तु सेना या सुरक्षा बल कोनोन पोशपोरा करे तो उसकी भी निंदा करनी चाहिए। फिर क्यूं नहीं होती निंदा? देश की कितनी महिला संगठनों ने इसके विरुद्ध आंदोलन किया?

योगी सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश में जितने इनकाउंटर हुए सब पर मानवाधिकार संगठनों या अदालत की नज़र है और धीरे धीरे एक एक फर्ज़ी मुठभेड़ सामने भी आ रही है पर क्या ऐसा कश्मीर के सम्बंध में होता है?

क्या कश्मीर में वहाँ जो सरकार और सेना या सुरक्षाबल कह दे वही सच है? क्या जब पूरे देश में फर्ज़ी इनकाउंटर और फर्ज़ी मुठभेड़ होती हैं तो क्या कश्मीर में नहीं हो सकतीं और होतीं है तो देश की किन संस्थाओं ने उन कश्मीरियों के लिए आवाज़ उठाई?

उनमें से एक ने पूछा कि फिर “कश्मीर” में क्या होना चाहिए ?

हमने कहा कि सिर्फ़ दो काम:

1- पहला यह कि “सेना” को सिर्फ़ बार्डर पर लगाओ और वार्निंग जारी दो कि LOC के एक किलोमीटर के अंदर कोई दिखा तो सीधे गोली मार दी जाएगी।

2- दूसरे “मुस्लिम रेजीमेन्ट” बना कर कश्मीर के अंदर तैनात करो, कुछ महीनों या अधिकतम एक से दो साल में कश्मीर समस्या ख़त्म।

उनमें से फिर एक बोला “मुस्लिम रेजीमेन्ट?” विद्रोह कर दे तब?

तब हमने कहा कि तीसरा काम, जो देशहित में सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि देश के मुसलमानों पर यक़ीन करो।

देश में रहने वाले किसी भी मज़हब, ज़ात, भाषा और क्षेत्र के लोगों से जो भी संगठन और व्यक्ति नफरत करना सिखाये, उसे इस अज़ीम मुल्क का हमदर्द मत समझो। जो भी इस महान देश में रहकर इस देश के तिरंगे झण्डे को एक रंगा करने की मंशा रखता है, वो देश का हमदर्द हरगिज़ नहीं। बल्कि इस देश और समाज के लिये जोंक है।

ऐसा करने पर न सिर्फ कश्मीर बल्कि देश की बहुत सी समस्याओं का हल मिल जाएगा और हर कश्मीरी हिन्दुस्तान का हो जाएगा।

अब तीनों ने मिलकर पूछा,”अंकल, आपका नाम क्या है?”

नाम सुनते ही माहौल में एक दम ख़ामोशी छा गई और तीनों अपना बेड रोल बिछाने लगे क्योंकि अब उन्हें तेज़ नींद आ रही थी।

सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी,
समाजवादी चिंतक, झांसी उत्तर प्रदेश।


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