वी.के.त्रिवेदी, लखीमपुर खीरी/लखनऊ (यूपी), NIT:
एक तरफ यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ स्वास्थ्य को लेकर जहां बडे – बडे आदेश जारी कर रहे हैं, वहीं जिम्मेदार अधिकारी इन आदेशों को दरकिनार करके आदेशों को ठण्डे बस्ते में डाल रहे हैं जिसके चलते धड़ल्ले से चलाये जा रहे हैं प्राइवेट हॉस्पिटल, जिसमें बैठे डॉक्टरों को यमराज भी कहा जाये तो भी कम है, वहीं झोला छाप डॉक्टर अपने कमीशन के चक्कर में गरीबो को बड़े बड़े प्राइवेट अस्पतालों में फंसा देते हैं जिसमें से गरीब को अपनों की लाश निकलना तक मुश्किल हो जाता है और अन्दर बैठे डॉक्टरों द्वारा मुर्दे का भी इलाज कर गरीबों से मोटी रकम वसूली जाती है।
जहां गरीबों को तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है वहीं सरकार के तमाम दावे करने में पीछे नहीं हट रही है। दूसरी तरफ उन दावों को दरकिनार करती हुई तस्वीर उत्तर प्रदेश के लखनऊ के चंद्रा हॉस्पिटल से आई है जहां एक गरीब पिता के बेटे के मरने के बाद भी मोटी रकम वसूली गई। बेटे की मौत के बाद एक मां की दर्द भरी चीखें सामने आयी हैं, जिसे अपने बच्चे के शव को अस्पताल से बाहर निकलवाने के लिए पुलिस का सहारा लेना पड़ा। जब मामला मीडिया के द्वारा उच्च अधिकारियों के संज्ञान में लाया जाता है तो वो अधिकारी वही रटा रटाया जबाब दिया करते हैं कि जांच कर कार्रवाई की जायेगी। उत्तर प्रदेश के चंद्रा हॉस्पिटल में इंसानियत के साथ ही सरकारी दावे भी तार तार हो रहे हैं जहां लम्बी बीमारी से मरे बेटे की लाश को लेकर मां बाप को भीख मांगने की नौबत आ सकती है क्योंकि बाप ने सब कुछ बेचकर अपने बेटे के इलाज में लगा दिया और बेटा भी नहीं रहा।
आपको बताते चलें कि लखीमपुर खीरी के थाना भीरा के क्षेत्र ग्राम दीवान टाण्डा के रहने वाले दैनिक जागरण के पत्रकार देवेन्द्र सिंह पुत्र नन्दलाल सिंह की लखनऊ में इलाज के दौरान मौत हो गयी। परिजनों ने बताया कि मैं अपने बेटे के इलाज में फसल ,जमीन,घर सब बेचकर लगभग आठ लाख रूपये लगा दिया है,फिर भी बेटे को नहीं बचा सके। मृतक के पिता ने बताया कि बेटे का इलाज निघासन के एक झोला छाप डॉक्टर योगेश से करवाते थे जहाँ से राहत थी फिर निघासन के डॉक्टर ने अपने कमीशन के लालच में आकर इस गरीब को लखनऊ रेफर कर दिया और वहाँ इलाज करते हुए मौत हो गयी। डॉक्टर पैसे वसूलने के चक्कर में मरे व्यक्ति का इलाज करते हुए पैसे खींचते रहे और एक गरीब को रोड पर लाकर छोड़ा। जब देवेन्द्र के माँ बाप व ड्राइवर उसको बाहर निकालने के लिए कहते तो डॉक्टर मना कर देते और जब बार बार कहने पर देवेन्द्र को हॉस्पिटल से बाहर नहीं किया तो पुलिस की सहायता ली तब डॉक्टर द्वारा कहा गया कि हम लाश को तभी ले जाने देंगे जब देवेन्द्र के परिजन स्टाम्प पर लिखकर दें कि हम बाकी के एक लाख चौबीस हजार रूपये चुका देंगे। मृतक के पिता की मानें तो एक लाख में ठेका हुआ था कि हम आपके लड़के को ठीक कर देंगे, लेकिन एक लाख बीस हजार रूपये देने के बाद भी एक लाख चौबीस हजार रूपये बाकी किये गये। स्टाम्प पर लिखवा लेने के बाद डॉक्टरों ने देवेन्द्र की बॉडी बाहर निकालने दिया और परिजनों ने घर लाकर अन्तिम संस्कार किया। इस प्रकार दो मासूम बच्चों के सिर से उठा बाप का साया उठ गया। परिजनों का रो रोकर बुरा हाल है।
सोचनीय विषय यह है अब इस गरीब परिवार को दो वक्त की रोटी को भी लाले लगे हुए हैं वही 2 लाख 24 हजार रु0 के लिए मृतक के पिता को बराबर फोन किया जा रहा है। कैसे देगा ये गरीब परिवार यमराज बने डॉक्टर को पैसे मृतक के पिता ने शासन प्रसासन से न्याय की गुहार लगाई है।
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