तारिक खान, रायसेन ( मप्र ), NIT; एशियाई फिलोसॉफी कॉन्फ्रेंस का शुभांरभ सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय आज में किया गया है। म.प्र. के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री सुरेंद्र पटवा ने कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन करते हुए कहा कि वैदिक एवं बौद्ध परंपराएं एशियाई और विश्व एकता के लिए आदर्श है। उन्होने कहा कि मौजूदा दौर में भारतीय दर्शन के तत्वों को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। श्री पटवा ने एशियाई फिलोसॉफिकल कॉन्फ्रेंस से मिलने वाले बिंदुओं को क्रियान्वित कराने में संस्कृति मंत्रालय की मदद का आश्वासन भी दिया। विदित हो कि मध्य प्रदेश में इस प्रकार का आयोजन पहली बार हुआ है।उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए श्रीलंकाई महाबोधि सोसायटी के बनागला उपतिस्स नायक थैरो ने कहा कि पश्चिमी दर्शन बहस करने की चीज है, जबकि पूर्वी दर्शन व्यवहार में उतारने की। श्री थैरो ने कहा कि प्रवासी दिवस की शुरुआत सर्वप्रथम सांची से ही हुई थी और सांची ने ही एशिया को एक नया दर्शन और जीवन व्यवहार दिया। एशियाई फिलोसॉफी कांग्रेस के चेयरमैन प्रो. एस. आर. भट्ट ने उद्घाटन सत्र में कहा कि पश्चिमी दर्शन में बुद्धि पर ज़ोर होता है जबकि पूर्वी दर्शन में बुद्धि के साथ जीवन जीने और जीवन स्तर को ऊंचा उठाने पर खासा ध्यान दिया जाता है। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन विश्वमानव की अवधारणा पर कार्य करता है जो मौजूदा दौर में और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गया है। उद्घाटन वक्तव्य देते हुए सांची विश्व विद्यालय के कुलपति आचार्य प्रो. यज्ञेश्वर शास्त्री ने कहा कि एशियाई कॉन्फ्रेंस के जरिये सांची विवि दर्शन विश्व को अपनी गंभीरता और दर्शन के प्रति निष्ठा बताना चाहता है। उन्होंने कहा कि सांची विवि वैदिक एवं बौद्ध दर्शन के सूत्रों को एकीकृत करने, भारतीय दर्शन को मौजूदा परिप्रेक्ष्य में पुनः परिभाषित करने और नए ज्ञान के सृजन के प्रति प्रतिबद्ध है।
एशियाई पहचान के सर्वसम्मत सिद्धांतों को प्रतिपादित करने और अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले दार्शनिकों का एक वैश्विक मंच तैयार करने के उद्देश्य से हो रही एशियाई फिलोसॉफी कॉन्फ्रेंस के मुख्य सत्र में एशियाई परिप्रेक्ष्य में पर्यावरण प्रबंधन के माध्यम से शांति कायम रखने में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर विचार हुआ। गोलमेज बैठक में बहुसांस्कृतिक समाज में न्याय और समानता की चुनौती के एशियाई समाधान पर बात हुई। इसी दौरान समकालीन एशियाई परिप्रेक्ष्य में स्वास्थ्य की अवधारणा को पुनर्भाषित करने पर भी विचारको-चिंतकों ने बहुमूल्य सुझाव एवं विचार दिए।
एशियाई फिलोसॉफी कॉन्फ्रेंस में सन मून यूनिवर्सिटी, दक्षिण कोरिया से प्रो. जियो लियांग ली, श्रीलंका के आधिकारिक भाषा आयोग के चेयरमैन प्रो दया इदीरिसिंघे, वियतनाम बुद्धिस्ट यूनिवर्सिटी होची मिन्ह सिटी के प्रो ली मॉन थेट, मियामी विवि अमेरिका के प्रो रामाराव पप्पू, श्रीलंका के परास्नातक पाली एवं बौद्ध संस्थान के निदेशक प्रो सुमनपाला, आचार्य सभा के महासचिव स्वामी परमात्मानंदजी, कनाडा में एशियाई अध्ययन के एमिरेट्स प्रोफेसर अशोक अकलुज़कर, शंघाई विवि चीन की प्रो हयान शेन, शिवानंद आश्रम एमदाबाद के स्वामी अध्यात्मानंदजी, इलाहाबाद विवि के दर्शन विभाग के पूर्व प्रमुख प्रो. जटाशंकर तिवारी, चेन्नई से प्रो. वेंकटचारी चतुर्वेदी स्वामी, कॉलेज ऑफ ऑर्ट एंव साइंस विभाग कनाडा में धार्मिक शिक्षा विभाग के प्रो बृज सिन्हा और जैन विश्व भारती विवि के कुलपति प्रो बी आर दुग्गड़ जैसे विशिष्ट विद्वान पहुंचे है।
4 दिन के इस आयोजन में करीब 250 वैश्विक एवं एशियाई चिंतक-विचारक, दार्शनिक एवं शोधार्थी मानवकल्याण के निमित्त ज्ञान, बुद्धि और प्रायोगिक पक्ष के विभिन्न आयामों पर अपने विचार एक दूसरे से साझा करेंगे। 12 फरवरी को 91वीं भारती दर्शन कॉग्रेंस का शुभारंभ मशहूर स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी और दार्शनिक प्रो रामजी सिंह करेंगे। इस कार्यकर्म की अध्यक्षता इलाहाबाद विवि में दर्शनशास्त्र विभाग के प्रमुख रहे प्रो डी. एन. द्विवेदी करेंगे।
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