Edited by Mukesh Kumar Rawat, NIT:
लेखक: मनीष कुमार दूबे, प्रधानाचार्य, गुरु गोरखनाथ विद्यापीठ, पीपीगंज, गोरखपुर

कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो समय के क्षणिक प्रवाह में खोते नहीं, बल्कि युगों तक स्मृति और प्रेरणा बनकर जीवित रहते हैं। उनका जीवन केवल सांसों का क्रम नहीं होता बल्कि शिक्षा, सेवा और साधना का अद्भुत समन्वय होता है। प्रो. उदय प्रताप सिंह ऐसे ही तेजस्वी व्यक्तित्व थे। शिक्षा जगत के अजातशत्रु जिन्होंने अपने जीवन को समाज, संगठन और संस्कार के दीपक के रूप में जलाए रखा।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
01 सितम्बर 1933 को गाजीपुर की पुण्यभूमि पर जन्मे प्रो.उदय प्रताप सिंह ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से गणित विषय में उच्च शिक्षा प्राप्त की। 1955 में ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज ने उन्हें महाराणा प्रताप महाविद्यालय, गोरखपुर में गणित विषय का प्रवक्ता नियुक्त किया। 1958 में जब यह महाविद्यालय गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु समर्पित किया गया तब प्रो. सिंह उसकी प्रथम पीढ़ी के प्राध्यापकों में सम्मिलित हुए। वे केवल अध्यापक नहीं रहे बल्कि गोरखपुर विश्वविद्यालय की जड़ों में रचे-बसे आधार स्तंभ बने।
गोरक्षपीठ से गहरा नाता
उनका जीवन गोरक्षपीठ की परंपरा और साधना से गहराई से जुड़ा रहा। यह उनका सौभाग्य था कि उन्हें तीन पीठाधीश्वरों का सान्निध्य प्राप्त हुआ:
१. महंत दिग्विजयनाथ महाराज
२. राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ महाराज
३. वर्तमान पीठाधीश्वर एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ महाराज।
इन तीनों के सान्निध्य में रहते हुए उन्होंने शिक्षा को सेवा और संगठन को साधना का स्वरूप दिया।
संघ और संगठन में योगदान
प्रो. सिंह केवल शिक्षक या प्रशासक नहीं थे, वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गोरक्ष प्रांत के प्रांत संघचालक भी रहे। वे पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र की कार्यकारिणी में सक्रिय भूमिका निभाते रहे।
विद्या भारती में उन्होंने अनेक दायित्वों का निर्वहन किया।
संघ का अनुशासन, शिक्षा की सौम्यता और संगठन की दृढ़ता उनके व्यक्तित्व की पहचान थी।
शिक्षा के क्षेत्र में यात्रा
उनकी शिक्षा यात्रा समाज की चेतना का उत्कर्ष थी।
गोरखपुर विश्वविद्यालय में गणित विभाग के आचार्य रहे।
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के कुलपति के रूप में नई दिशा दी।
2018 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष बने और संगठन को नई ऊर्जा दी।
महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय की स्थापना के समय प्रति-कुलाधिपति रहे और उसकी नींव को सुदृढ़ किया।
उनका योगदान शिक्षा के भवन में ईंट भरने का नहीं बल्कि नींव गढ़ने का था।
अध्यापन और व्यक्तित्व
उनका अध्यापन केवल गणितीय सूत्रों तक सीमित नहीं था।
उनके कक्ष में संख्याओं के समीकरणों के साथ-साथ जीवन के प्रश्नों के उत्तर भी मिलते थे।
वे विद्यार्थियों को धैर्य, तर्क और आत्मविश्वास का पाठ पढ़ाते थे।
उनके लिए शिक्षा का अर्थ था विद्या से विवेक और विवेक से सेवा।
वे गणना में जितने दक्ष थे, संगठन-निर्माण में उतने ही कुशल। उन्होंने केवल कक्षा नहीं पढ़ाई बल्कि पीढ़ियों को गढ़ा।
मेरा व्यक्तिगत अनुभव (2015–2025)
मुझे 2015 से 2025 तक उनके साथ कार्य करने का सौभाग्य मिला। इन दस वर्षों में मैंने उन्हें एक मार्गदर्शक और संरक्षक के रूप में अनुभव किया।
वे हमेशा कहते थे, “शिक्षा का अर्थ केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि समाज का निर्माण करना है।”
उनकी कार्यशैली से मैंने सीखा कि संगठन को मजबूती केवल नियमों से नहीं बल्कि विश्वास और आत्मीयता से मिलती है।
विद्यालय के कार्यक्रमों में उनका आगमन हम सबके लिए प्रेरणा होता था। उनकी मुस्कान, सादगी और स्नेहिल वाणी सभी को प्रभावित करती थी।
उनके साथ बिताए गए ये दस वर्ष मेरे जीवन की सबसे बड़ी धरोहर हैं।
प्रेरणा के स्रोत
महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रदीप कुमार राव ने सही कहा:-
प्रो. उदय प्रताप सिंह दीपक की तरह थे जो अंधकार को चीरकर दूसरों को दिशा देते रहे। वे वटवृक्ष की भांति थे जिसकी छाया में पीढ़ियां पनपीं और जिसकी जड़ों से नई शिक्षा और संस्कृति अंकुरित हुई।
वे सचमुच निर्मल नदी की तरह थे, निरंतर प्रवाहित और जीवनदायिनी।
अंतिम विदाई और शाश्वत स्मृति
27 सितम्बर 2025 की भोर ने उन्हें चिरनिद्रा में सुला दिया। उनका जाना केवल एक विद्वान, प्रशासक या संगठनकर्ता का जाना नहीं बल्कि उस दीपस्तंभ का बुझना है जो पीढ़ियों को मार्ग दिखाता रहा। किन्तु दीपक भले ही बुझ जाए, उसकी रोशनी स्मृति में सदैव बनी रहती है। आज वे हमारे बीच शरीर से नहीं हैं पर उनका जीवन, उनके संस्कार और उनके आदर्श हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे।
प्रो. सिंह का जीवन यह संदेश देता है:-
शिक्षा का लक्ष्य केवल करियर बनाना नहीं बल्कि चरित्र गढ़ना है।
संगठन का अर्थ केवल पद प्राप्त करना नहीं बल्कि समाज को जोड़ना है।
सेवा का अर्थ केवल कर्मकांड नहीं बल्कि आत्मा की निष्ठा है।
वे अब स्मृति नहीं, प्रेरणा हैं। सचमुच “एक जीवन में अनेक प्रेरणाओं” के प्रतीक बनकर वे युगों तक हमारे हृदय में अमर रहेंगे।
ॐ शांति शांति शांति
