नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने प्याज पर 40% निर्यात टैक्स बिठा दिया। नतीजा महाराष्ट्र मे बीजेपी के सुफडे में सिर्फ़ 09 सीटें आ सकी। चाटूकारीता की कलम से पैदा किए गए नेता पीट गए। पांच महीने बाद किसान सम्मान निधि, फ़सल बीमा योजना, कृषि बिजली बिल मुक्ति, लाडली बहन योजना के साथ साथ धन संसाधन के प्रभाव ने बीजेपी कि सत्ता में वापसी करवाई। कपास उत्पादक किसान की कोई सूद लेने को तैयार नहीं है। CCI के साथ मिलकर कार्पोरेट ने पूरे महाराष्ट्र में कट प्रैक्टिस का खेल चला रखा है। पिछली रिपोर्ट में हमने इसका कच्चा चिट्ठा बताया है। अब बात करते हैं व्यवहार की माइक्रो बिंदुओं की तो सेठ लॉबी 6500-6800 से किसानों से जो कपास खरीद रहे हैं उसकी प्रति क्विंटल हमाली का 10-20 रुपया किसानों को देना पड़ रहा है। 50 क्विंटल को 500-1000 रुपए की चोट व्यापारी के गल्ले को नहीं किसान की जेब को पड़ रही है। किसी भी पार्टी का कोई नेता इस लूट के खिलाफ़ बोलने को इस लिए राजी नहीं क्यों कि सभी को सेठ से मिलने वाला चुनावी चंदा प्यारा है।

घटिया विदेश निति: देश के भीतर कपास होने के बाद मोदी सरकार ने यूरोप से आयात की। ठीक इसी तरह से तुवर के दाम 7200 से 6200 तक गिरने को है। खुदरा मार्केट में तुवर की दाल 140 के नीचे उतरने को तैयार नहीं। कृषि उपजों को लेकर मोदी सरकार की विदेश निति पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली और किसानों को बर्बाद करने वाली साबित हो रही है। दुनिया का कोई धर्म महिलाओं और गरीबों को न्याय नहीं दे सकता। टैक्स के जरिये जनता का आर्थिक शोषण जरूर कर सकता है।
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