अबरार अली, ब्यूरो चीफ, सिद्धार्थ नगर (यूपी), NIT:

महात्मा गांधी राट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अनिनियम 2005 में सरकार ने मजदूरों को गारंटी के साथ रोजगार की व्यवस्था किया है लेकिन धीरे धीरे यह श्रमिकों की गांरटी के साथ ग्राम प्रधानों के रोजगार की गांरटी बन गया था। मनरेगा कमाऊ पूत बन गया था। गांव के ऐसे लोग जो कभी अपने खेत में कुदाल नहीं चलाते थे वह भी मनरेगा मजदूर बन गए थे। उनका काम सिर्फ इतना था कि खाते में पैसा आने पर बैंक से निकाल कर प्रधान जी को दे दें और पैसा निकालने के बदले प्रधान जी से कुछ पारिश्रमिक मिल जाता था बाकी पैसा प्रधान जी के जेब में चला जाता था। केन्द्र सरकार ने इस भ्रष्टाचार को रोकने के लिए वर्ष 2021 में राष्ट्रीय मोबाइल मॉनिटरिंग सेवा का एप्स लांच किया। जिससे मनरेगा मजदूरों की मौके पर वास्तविक स्थिति, समय आदि की निगरानी किया जा सके। योजनाओं की बेहतर निगरानी और पारदर्शिता लाने के लिए इसको लांच किया गया। इसका मकसद है कि मौके पर जियोटैग किए गए तस्वीरों में श्रमिकों की संख्या, फोटो खींचने और अपलोड करने का समय आदि को देखा जा सके। गांव के लोग काम का निरीक्षण कर सकें। सरकार का मकसद है कि गांव के लोग अपने गांव में हो रहे कार्य की निगरानी कर सकें। परन्तु जानकारी के अभाव में लोग यहां तक नहीं पहुंच पाते हैं।आपको बताते चलें कि राष्ट्रीय मोबाइल मॉनिटरिंग सेवा को वापस लेने के लिए जनवरी 2023 की कडाके की ठंढ़क में एक सप्ताह तक जोरदार धरना प्रदर्शन चला था। ब्लाक मुख्यालय से प्रदेश मुख्यालय तक प्रार्थना पत्रों को दौडाया गया। एकता की आवाज बुलंद की गयी लेकिन हुआ वही कि बधी मुट्ठी खुली तो हाथ खाली मिला। मतलब नतीजा सिफर निकला लेकिन कहा गया है कि आवश्यकता अविष्कार की जननी है। हम भारतीय लोगों की गाडी जुगाड से ज्यादा चलती है। अब मनरेगा मजदूरों की हाजिरी में भी जुगाड चलने लगा है। तू डाल डाल तो मैं पात पात की तरह राष्ट्रीय मोबाइल मॉनिटरिंग सेवा में भी एक ही फोटो जो ब्लर या धुंधला हो, दोनों साइड से कटिंग कर, खडा व पट्ट, सुबह का फोटो शाम को अपलोड करके काम चलाया जाता है। सवाल यह है कि इसकी निरानी करने वालों पर नजर क्यों नहीं पड़ती है।

ताजा मामला इटवा विकास खण्ड के ग्राम पंचायत रसूलपुर का है। जहां पहली दिसम्बर 2024 को तीन वर्क पर कार्य हो रहा है। 12 मस्टरोल पर 110 लेबर कार्य करते साइट पर दिख रहे हैं। पहला कार्य रसूलपुर में संतोषी के खेत से एगडेंगवा सरहद तक चकरोड पर मिट्टी पटाई कार्य है जिसमें साइट पर ऑनलाइन अवलोकन करने पर फोटो लेने का समय 1 दिसंबर 4ः28 दिख रहा है और फोटो अपलोड करने का समय 1 दिसंबर 5ः00 बजे दिख रहा है। सवाल यह है कि यहां कार्य सुबह से हो रहा है तो सुबह का फोटो शाम के समय अपलोड किया गया है। इसके अलावा शाम का फोटो अपलोड नहीं किया गया है। एनएमएमएसएस साइट पर देखने पर सेकंड फोटो इस नॉट अपलोडेड शो कर रहा है।अब अगर फोटो को गौर से देखा जाए तो यह धुंधला दिख रहा है। यह फोटो लो क्वालिटी का है। फोटो में कार्य स्पष्ट नहीं हो रहा है। फोटो में मजदूरों की संख्या लगभग 13 के दिख रही है। इसमें श्रमिकों महिला व पुरूष का अनुपात 60ः40 भी पूरा नहीं दिख रहा है।
गौरतलब है कि मस्टरोल संख्या 5691 से 5697 तक एक ही फोटो अपलोड किया हुआ प्रतीत हो रहा है। जिसमे तेरह के लगभग श्रमिक दिख रहे हैं। जबकि मास्टरोल में श्रमिक 65 हैं। वह सभी श्रमिक अलग-अलग नाम के हैं। मौके पर एक ही फोटो विभिन्न कोण से जैसे खड़ा व पट्ट अपलोड किया गया है। इसके साथ फोटो को दाहिने व बाएं तरफ से काटकर भी अपलोड किया गया है।इसी प्रकार ग्राम पंचायत जमोहना में कब्रिस्तान से चूही सरहद तक चकरोड पर मिट्टी पटाई कार्य, मस्टरोल संख्या 5794 से 9794 पर कार्य चल रहा है। जहां एक ही फोटो को कटिंग कर अपलोड किया हुआ प्रतीत हो रहा है। सुबह के फोटो में कोहरा तथा शाम के फोटो में भी कोहरा दिख रहा है। इन सबकी जांच होनी चाहिए। यह तो एक बानगी मात्र है। इसी तरीके से अन्य गांव में भी कार्य हो रहा है। सरकार को चाहिए कि फोटो अपलोड करने के लिए फोटो की मेगापिक्सल गुणवत्ता भी निर्धारित की जाए। जिससे कि फोटो को देखकर के मजदूरों का चेहरा भी पहचान में आए।
सूत्र बताते हैं की मौके पर ग्राम प्रधान रसूलपुर रामनिवास मुंबई में हैं और यहां मौके पर मास्टरोल फील्डिंग भी किया गया है। इसके साथ मनरेगा साइट पर फाइनेंशियल स्टेटमेंट का अवलोकन करने पर मस्टरोल संख्या 53 29 से लेकर 5331 तक प्रधान जी की गैर मौजूदगी में पेमेंट भी कराया गया है। इस सम्बंध में खण्ड विकास अधिकारी अनिशि मणि पाण्डेय के मोबाइल नम्बर पर सम्पर्क करने पर सम्पर्क नहीं हुआ तो मनरेगा एपीओ अमित कुमार से सम्पर्क करने पर उन्होंने बताया कि फोटो अगर धुंधला है तो यह कैमरा की कमी होगी लेकिन यदि फोटो से फोटो अपलोड किया गया है, तो गलत है इसकी जांच की जाएगी।
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