लद्दाख को छठी अनुसूची और राज्य का दर्जा प्राप्त करने के लिए चल रहे स्थानीय आंदोलन के साथ देश भर से नारीवादीयों ने जताई एकजुटता | New India Times

अंकित तिवारी, ब्यूरो चीफ, प्रयागराज (यूपी), NIT:

लद्दाख को छठी अनुसूची और राज्य का दर्जा प्राप्त करने के लिए चल रहे स्थानीय आंदोलन के साथ देश भर से नारीवादीयों ने जताई एकजुटता | New India Times

लद्दाख के विभिन्न संगठनों की छह महिला प्रतिनिधि, जो क्षेत्र को राज्य का दर्जा और 6 वीं अनुसूची के लिए चल रहे संघर्ष का हिस्से हैं, के दस दिवसीय उपवास समाप्त होने के बाद, 6 अप्रैल को एक ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस और नारीवादी एकजुटता बैठक को संबोधित किया। लद्दाख के लोगों के शांतिपूर्ण आन्दोलन की नाज़रंदाज़ी और 7 अप्रैल को घोषित पश्मीना मार्च को रोकने के प्रशासन के प्रयास का खंडन करते हुए प्रेस वार्ता की शुरुआत सहआयोजक संगठनों – विकल्प संगम, पीयूसीएल और एनएपीएम – द्वारा की गई।

प्रेस वार्ता के दौरान लोकल फ्यूचर्स ककी कुन्जांग डीचेन ने क्षेत्र की सांस्कृतिक और पारिस्थितिक सुरक्षा के लिए छठी अनुसूची की मांग को महत्वपूर्ण बताते हुए लोगों के शांतिपूर्ण आंदोलन को ‘राजनीतिक’ करार देने के प्रयासों को भी खारिज किया। उन्होंने कहा, ‘हमारी बस इस हिमालयी क्षेत्र के लिए स्थानीय परिस्थितियों पर आधारित नीति की मांग है।’ अंजुमन-ए-मोइन-उल-इस्लाम की अध्यक्ष आयशा मालो, जो 10 दिन के उपवास पर थीं, ने कहा, ‘2019 में हमें बहुत खुशी हुई जब इस क्षेत्र को केंद्र द्वारा UT घोषित किया गया, जो लद्दाख के लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांग थी। लेकिन पिछले पांच वर्षों में हमने देखा है कि विधायी शक्ति के बिना UT का दर्जा काफी नहीं है।’ युवा कलाकार और गीतकार पद्मा लाडोल ने लद्दाखी आंदोलन और मांगों को कवरेज देने में विफल रहने के लिए मुख्यधारा मीडिया की तीखी आलोचना की, जबकि यह अंबानी के विवाह पूर्व समारोहों को दिखाने में व्यस्त था। अंजुमन इमामिया की अध्यक्ष नसरीन मरियम ने कहा, ‘जब भी सीमा पर तनाव हुआ है तो हम लद्दाख की महिलाओं ने सेना और सैनिकों का समर्थन किया है। हमने देश की सुरक्षा के लिए अपने बच्चों का बलिदान दिया है लेकिन अब जब हमें देश की जरूरत है तो हमारी बात नहीं सुनी जा रही है?’ एपेक्स बॉडी यूथ विंग के यांगचान डोल्कर ने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि आन्दोलन में महिलाएं सोशल मीडिया में सबसे आगे नहीं हैं, लेकिन पहले दिन से विरोध स्थल पर महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक रही है। महिलाओं ने ही व्रतियों और अनशनकारियों की सेवा की है। क्रिश्चियन एसोसिएशन महिला विंग की अध्यक्ष सुमिता धाना ने अपना कैमरा घुमाकर उन पहाड़ों को दिखाया जहां हर साल बर्फबारी कम होती जा रही है। ‘हमें अपनी पारिस्थितिकी को सिर्फ आज के लिए नहीं बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने की जरूरत है और हमारे लिए विकास का मतलब खनन करना नहीं है। हम युवाओं के लिए बेहतर रोज़गार की संभावनाएं चाहते हैं, लेकिन मौजूदा व्यवस्था में अग्निवीर जैसे कार्यक्रम भी कोई आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा और स्थिरता प्रदान नहीं करते हैं’,

धाना ने कहा: देश भर से नारीवादियों ने एक स्वर में लद्दाख की महिलाओं और लोकतंत्र तथा सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए उनके संघर्ष के साथ एकजुटता व्यक्त की, जबकि लद्दाख जैसे क्षेत्रों में जीवन और आजीविका को खतरे में डालने वाले पूंजीवादी विकास मॉडल की निंदा की। हिमालयी राज्यों से मानशी आशर (हिमाचल प्रदेश), मलिका विरदी (उत्तराखंड), जार्जुम एटे (अरुणाचल) और आभा भैया (हिमाचल प्रदेश) पूरे पहाड़ी क्षेत्र जो धीरे-धीरे एक आपदा-ग्रस्त क्षेत्र में बदल रहा है के सामने आने वाली चुनौतियों की ओर इशारा किया, और साथ में ये भी बताया की विभिन्न स्थानीय समुदायों खासकर महिलाओं ने के आंदोलनों ने ही अनियंत्रित विकास के प्रभावों और खतरों के प्रति सरकारों को बार बार आगाह किया है।

आदिवासी नेत्रि सोनी सोरी ने पिछले दो दशकों में बस्तर और अन्य आदिवासी क्षेत्रों में वन भूमि के अधिग्रहण का विरोध करते समुदायों पर दमन और विशेषकर महिलाओं के खिलाफ असहनीय हिंसा की बात राखी। ताशी, तेलंगाना से एक बौद्ध, ट्रांसजेंडर और मानवाधिकार कार्यकर्ता ने कहा, ‘पितृसत्ता का आधार ही हर चीज़ को काबू में लाना रहा है – चाहे वह महिलाओं का शारीर हो या संसाधन, या हमारे संस्थान और निर्णय प्रक्रियाएं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब हम हिमालय को देखते हैं, तो यह हमेशा बाहरी लोगों के नज़रिए से उपभोग के लिए देखा जाता है, और हम कभी भी वहां बस लोगों और उनकी पीड़ा को नहीं देखते हैं।’ जागृत आदिवासी दलित संगठन, मध्य प्रदेश की माधुरी ने कहा, ‘यह एक तरह से साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष है। हमने दोबारा ऐसा दिन देखने के लिए अंग्रेज़ शासन से आजादी के लिए लड़ाई नहीं लड़ी थी।’

मुंबई स्थित वकील लारा जेसानी ने मानवाधिकारों और पर्यावरण उल्लंघनों को संबोधित करने में कानून और न्यायपालिका की विफलता और प्रत्यक्ष लोकतंत्र के महत्व के बारे में बात की। नारीवादी और पर्यावरणविद् ललिता रामदास ने इस बात पर जोर दिया कि हमें समझदारी से मतदान करने की जरूरत है ताकि हम सरकार में ऐसे लोगों को शामिल कर सकें जिनसे हम जवाबदेही की मांग कर सकें। एनएपीएम की मीरा संघमित्रा और विकल्प संगम की सृष्टि बाजपेयी ने बैठक का संचालन करते हुए दोहराया कि लालच और लूट आधारित विकास के विरोध में और टिकाऊ और न्यायसंगत विकल्पों के लिए चल रहे देश भर के संघर्ष लद्दाखी लोगों के साथ खड़े हैं।

नारीवादी एकजुटता वक्ताओं में शामिल थे: 1. वकील लारा जेसानी, पीयूसीएल मुंबई 2. मांशी आशर, पीपल फॉर हिमालय कैंपेन 3. ताशी, बौद्ध, ट्रांसजेंडर और मानवाधिकार कार्यकर्ता, तेलंगाना 4. तीस्ता सीतलवाड, सिटीजन्स फॉर जस्टिस पीस। 5. मलिका विरदी, उत्तराखंड महिला मंच। 6. एंजेला रंगड सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, मेघालय 7. ललिता रामदास, नारीवादी, पर्यावरण कार्यकर्ता 8. जारजुम एटे, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, अरुणाचल प्रदेश 9.माधुरी, जागृत आदिवासी दलित संगठन, मध्य प्रदेश 10. सोनी सोरी, आदिवासी एवं मानवाधिकार रक्षक, छत्तीसगढ़ 11. अमिता बुच, कार्यकर्ता और पत्रकार, गुजरात 12. एडवोकेट अल्बर्टिना अल्मेडा, नारीवादी वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता 13. कविता सारिवास्तव, पीयूसीएल 14. आभा भैया, नारीवादी, हिमाचल प्रदेश 15. डॉ. गैब्रिएल डिट्रिच, पेन उरीमे इयक्कम, अलीफा-एनएपीएम।

सेशन की रिकोर्डिंग यहाँ देखें: https://youtube.com/@vikalpsangam5243

Contact: 9351562965, 9198775666, 7337478993
Co-organizers:  Vikalp Sangam, PUCL & ALIFA-NAPM


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By nit

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