मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, बुरहानपुर/भोपाल (मप्र), NIT:
राजधानी भोपाल में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हो के दो वर्ष गुज़र चुके हैं, बढ़ते मानवाधिकार विरोधी मामलों सहित निरंकुश पुलिस अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ पिछले माह 12 फरवरी को दिए गए ज्ञापन पर पुलिस कमिश्नर भोपाल द्वारा कोई कार्यवाही नहीं करने का आरोप आज आल इण्डिया ह्यूमन राइट्स एंड सोशल जस्टिस कौंसिल ने लगाया है।
संगठन के संस्थापक अध्यक्ष डॉक्टर सैयद खालिद कैस एडवोकेट भोपाल ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से बताया कि भोपाल पुलिस कमिश्नर श्री हरिचरण चारी मिश्रा को 12 फरवरी उनके द्वारा विभिन्न मसलों के निराकरण के लिए ज्ञापन सौंपा था लेकिन दुर्भाग्य का विषय है कि एक माह गुजर जाने के बाद भी ज्ञापन में उठाए गए बिंदुओं पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है। जिसके कारण आमजन सहित अधिवक्ता वर्ग को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। पुलिस कमिश्नर प्रणाली में की गई शिकायतों पर गंभीरतापूर्वक विचार नहीं होना इस बात का प्रमाण है कि पुलिस के निरंकुश व्यवहार पर कोई लगाम नहीं लगाना चाहता जिसके कारण आमजन के मानव अधिकारों की तिलांजलि दी जा रही है। भ्रष्ट और निरंकुश पुलिस कर्मचारी, अधिकारी पुलिस कमिश्नर प्रणाली की आड़ में खुले आम मानव अधिकारों की होली जला रहे हैं।
पुलिस कमिश्नर को दिए गए ज्ञापन के बिंदु
भोपाल में उपायुक्त सहित सहायक आयुक्त न्यायलयों में पदस्थ कुछ अधिकारी/कर्मचारी भ्रष्ट आचरण अपना रहे हैं। 2 वर्षों से अधिक समय में एक ही स्थान पर जमे कर्मचारी अधिवक्ताओं व पक्षकारों के साथ सदभाविक व्यवहार नहीं अपनाते। अधिवक्ताओं व पक्षकारों को प्रताड़ित करते हैं। दुर्व्यवहार करते हैं। विशेषकर कोतवाली संभाग के कर्मचारियों का व्यवहार अधिवक्ताओं व पक्षकारों के साथ अपमानजनक दृष्टिगत हो रहा है।
नगरीय पुलिस व्यवस्था को लागू हुए 02 वर्ष से अधिक समय गुजर जाने के वाबजूद किसी भी उपायुक्त या सहायक आयुक्त न्यायलयों में आज दिनाँक तक अधिवक्ताओं को बैठने की कोई व्यवस्था नहीं होना दृष्टिगत हो रहा है। अधिवक्ताओं व पक्षकारों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा है। पीने के पानी शौचालय तक की उपलब्धता नहीं होना गंभीर मामला है। अधिवक्ताओं के लिये बैठने की व्यवस्था तथा मूल भूत सुविधाओं की व्यवस्था सुनिश्चित कराई जाए।
नगरीय पुलिस व्यवस्था में सहायक पुलिस आयुक्त उपायुक्त न्यायालयों में प्रतिबंधात्मक धारा प्रकरणों में अलग अलग राशि व समय के लिये बंधपत्र का निष्पादन कराया जा रहा है। समान राशि एवं समान अवधि के लिये बंधपत्र निष्पादन की व्यवस्था कराई जाए।
उपायुक्त अथवा सहायक आयुक्त न्यायालयों में पदस्थ पीठासीन अधिकारी कार्यपालक दण्डाधिकारी के स्थान पर न्यायिक दण्डाधिकारी जैसा व्यवहार करते हैं। तथा अधिवक्ताओं व पक्षकारों के प्रति उनका व्यवहार कठौर व अपमानजनक दृष्टिगत हो रहा है। अन्य महत्वपूर्ण बिंदुओं से भी पुलिस कमिश्नर को व्यक्तिगत रूप से अवगत कराने के एक माह बाद भी निराकरण नहीं होना अनियमित आचरण का प्रमाण है।
एक माह बाद पुलिस कमिश्नर कार्यालय में मूल ज्ञापन नदारद
आवेदक डॉक्टर सैयद खालिद कैस एडवोकेट ने बताया कि 13/03/2024 को पुलिस कमिश्नर कार्यालय में दिनांक 13/02/2024 को उनके द्वारा दिए गए आवेदन की जानकारी चाही तो विभाग में उक्त ज्ञापन नहीं मिला। आवक-जावक शाखा सहित जनशिकायत शाखा के रिकॉर्ड में उक्त ज्ञापन का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। संबंधित शाखाओं के जिम्मेदारों ने काफी मशक्कत की लेकिन कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई।
यह इस बात का प्रमाण है कि पुलिस शिकायत, ज्ञापन के प्रति कितने उदासीन हैं। ज्ञापन स्वयं पुलिस कमिश्नर को देने के बाद उसका कोई रिकॉर्ड विभाग के पास नहीं होना अनियमितता उजागर करता है। पुलिस विभाग के कर्मचारियों, अधिकारियों के खिलाफ की गई शिकायत हो या ज्ञापन विभाग किस तरह का व्यवहार करता है? ऐसे में भ्रष्ट आचरण अपनाने वाले पुलिस विभाग के कर्मचारियों, अधिकारियों के हौसले बुलंद होना स्वाभाविक है।
आल इण्डिया ह्यूमन राइट्स एंड सोशल जस्टिस कौंसिल के संस्थापक अध्यक्ष डॉक्टर सैयद खालिद कैस एडवोकेट ने पुलिस महानिदेशक को भी इस संबंध में जानकारी प्रदान की थी लेकिन वहां से भी खामोशी अख्तियार करना न्यायसंगत प्रतीत नहीं हो रहा है। कौंसिल के संस्थापक अध्यक्ष डॉक्टर सैयद खालिद कैस एडवोकेट ने मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री डॉक्टर मोहन यादव से इस ओर ध्यानाकर्षित करने की मांग की है।
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