नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
‘मुनाफे के हिसाब से यात्री ट्रेनें चलाना हमें मुफीद साबित नहीं होता बावजूद इसके हम बिना किराया बढ़ाए इन्हें चला रहे हैं’, कार्पोरेट सेक्टर की टेस्ट वाला ये भाषण है रेल राज्य मंत्री रावसाहब दानवे का जो उन्होंने 25 सितंबर 2022 को जामनेर में आकर दिया था। मंत्री जी ने अपनी कही बात सच कर दिखाने के लिए जामनेर पाचोरा ब्रॉड गेज निर्माण के लिए 955 करोड़ रुपए मंजूर करने की घोषणा के साथ ईमानदारी से यह भी बताया था कि उनको मात्र एक हजार करोड़ रुपये तक के टेंडर निकालने के अधिकार है। अब इस रूट को बोदवड तक बिछाने के लिए रेल विभाग की ओर से सर्वे शुरू किया गया है। DRM श्री एस एस केडिया ने मार्ग का औचक निरीक्षण किया। इस रूट पर पटरी बिछाने के लिए हजारों हेक्टेयर निजी जमीन आवंटित करना पड़ेगी। भौगोलिक रूप से ये रूट काफी जटिलताओं से भरा है। DRM के दौरे के बाद बोदवड ब्लॉक में जमीन खरीद बिक्री से जुड़े तमाम तत्व क्रियाशील हो गए हैं। कौड़ियों के दाम जमीन लेना उसे मोतियों के दाम बेचना इसमें नेताओं के वफादारों की जी तोड़ मेहनत ईमानदारी की नजीर पेश करेगी। खैर इसकी अपनी एक अलग कहानी है। इस विस्तारित प्रोजेक्ट का बजट लगभग 2 हजार करोड़ रुपए से अधिक का हो सकता है जो रेल मंत्रालय के लिए एक महंगा सौदा साबित होगा। अगर बन भी गया तो इसका परिचालन निजी हाथों में सौंपा जाना तय है। इस रूट पर गुड्स ट्रेनें अधिक चलेंगी तो यात्री गण विभिन्न योजनाओं के तहत सरकारी बस से यात्रा कर सकते हैं जैसा कि आज कर रहे हैं। बीजेपी को आशा है कि इस जॉइंट प्रोजेक्ट के प्रचार प्रसार से पार्टी को पाचोरा, जामनेर, मुक्ताईनगर, मलकापुर की चार विधानसभा और बुलढाणा, जलगांव की दो लोकसभा सीटों पर लाभ होगा। शिंदे फडणवीस सरकार की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट मे खींचते चले जा रहे मामले की व्यस्तता के कारण राज्य की सरकार अनूठे लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चलाई जा रही हैं। केंद्र में मोदी जी की सरकार बनकर 8 साल बीत जाने के बाद 2024 में होने वाले आम चुनावों के मद्देनजर गर्दिश में छाई एक एक सीट को संजोने के लिए बीजेपी ने उक्त रेल योजना का जामनेर पाचोरा सिंगल फेज लॉन्च कर दिया है। लॉन्चिंग का मार्केटिंग करने का जिम्मा संभालने वाले लोकल मीडिया सोर्सेस पार्टी अजेंडे को बेचने का औजार बन चुके हैं। किसी जमाने में चुनाव के मुहाने सांसद आते थे सवारी गाड़ी की यात्रा कर हालचाल पूछकर फोटो खिंचवाकर चले जाते थे। 1919 में शुरू की गई नेरोगेज सवारी गाड़ी जो हर महीने 14 लाख रुपया मुनाफा कमाया करती थी वह नए प्रोजेक्ट के इंतजार में बंद करवा दी है। बहरहाल फेज 1 की मंजूरी के बाद फेज 2 को लेकर धरातल की वास्तविकता को दरकिनार करते हुए इस रेल को चुनावी डब्बे लगाकर इसे सूचना कम और प्रचार अधिक की शक्ल में बुलेट ट्रेन से तेज़ दौड़ाया जा रहा है।
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