रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:
बहुत चर्चित नगर परिषद के चुनाव सम्पन्न हो गए है।एक बार फिर जनादेश भाजपा के पक्ष में रहा तो भाजपा ने भी जनता की आवाज को शिरोधार्य कर अप्रत्यक्ष प्रणाली से नगर विकास की बागडोर राष्ट्रीय स्वयं सेवक से जुड़े जमीनी कार्यकर्ता सुनील की धर्मपत्नी लक्ष्मी को अध्यक्ष व युवा पंकज जागीरदार को उपाध्यक्ष बनाकर सौंप दी।
हालांकि नगर में एक बार फिर जनता के विश्वास को जीत कर आये वरिष्ठ पार्षदों के भी इस दौड़ में शामिल होने से यह राह बहुत कठिन मानी जा रही थी लेकिन फिर भी भाजपा ने इस पर विजय प्राप्त कर ही ली।
जीत का श्रेय वैसे तो पूरी पार्टी के हर कार्यकर्ताओं को जाता है लेकिन फिर भी कुशल रणनीतिकार व नगर के भाजपा समर्पित कार्यकर्ता की भूमिका इसमें महत्वपूर्ण हो जाती है।
कैलाश विजयवर्गीय के करीबी माने जाने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता हरिनारायण यादव की जिन्हें जिलें का प्रभारी बनाया गया था यही कारण रहा कि उन्होनें ज़िलें के सभी स्थानों पर भाजपा को सत्ता दिलाई।
थांदला में स्थानीय प्रभारी सत्येंद्र यादव की भूमिका का आकलन उनके द्वारा लिए गए फैसलों से पता चलता है, कि उन्होनें जिलाध्यक्ष लक्ष्मणसिंह नायक व जिला मंत्री भूपेश भानपुरिया के साथ स्थानीय नेताओं के बीच सेतु बनते हुए हर फैसलें को गम्भीरता से लिया व अनेक बाधाओं को सरलता से दूर कर भाजपा का परचम लहराया।
बात जब थांदला की हो रही है तो इस बार थांदला में राजनीति के एक ही चाणक्य दिखाई दिए वह थे अनिल भंसाली। अनिल ने अपनी कुशल रणनीति उसी समय स्पष्ट कर दी जब टिकट का विभाजन हुआ।
पिछली बार तो उन्होनें अध्यक्ष को जिताने के लिए मेहनत की थी लेकिन इस बार वे हर वार्ड में भाजपा को जिताने के लिए भरसक मेहनत का परिणाम जब रूपांतरित हुआ उसी समय सुनियोजित तरीके से भाजपा के निर्वाचित पार्षदों को धार्मिक यात्रा पर भेज देना व जनादेश के अनुसार उन्हें तैयार करना निश्चित उनकी कुशाग्र बुद्धि का परिणाम है।
अध्यक्ष – उपाध्यक्ष के नाम निर्देशन के लिए पर्यवेक्षक बनकर भजपा के तेज तर्रार अनुभवी वरिष्ठ नेता रमेशचन्द्र धारीवाल के आने पर उन्हें यहाँ भाजपा का जनादेश तो मिला लेकिन उनके सामने नगर परिषद की सत्ता किसे दे यह बड़ी चुनौती थी।
जनता, पार्षद व सत्ता के पदाधिकारियों की रायशुमारी जब अलग अलग हो तो मामला और गम्भीर हो जाता है एक गलत निर्णय सत्ता से बेदखल करवा सकता है लेकिन अपने 53 वर्षों के लंबें राजनीतिक जीवन के अनुभव का लाभ उठाकर उन्होनें सभी के बीच अपनी बात रखी व भाजपा के बागी जीते हुए पार्षदों से भी सामंजस्य स्थापित किया जिसका परिणाम सबके सामने है।
इस पूरे राजनीतिक खेल में कलसिंह भाबर, कमलेश जैन दायजी जैसे भाजपा के अनेक वरिष्ठ नेता व प्रदेश स्तर के स्थानीय पदाधिकारियों व वार्ड प्रभारियों ने अपने प्रत्याशी की जीत के लिए भरसक मेहनत की इसमें कोई दो राय नही। चुनाव जीतने के बाद लीला नाना डामोर, धापू गौरसिंह वसुनिया, माया सचिन सौलंकी, समर्थ गोलू उपाध्याय, जितेंद्र कन्नू मोरिया व जगदीश प्रजापत के त्याग व समर्पण के साथ भूमिका आशीष सोनी व ज्योति जितेंद्र राठौड़ की भी प्रसंशा करना होगी, जिन्होनें नगर विकास के लिए जनता की आवाज को शिरोधार्य किया व मिलकर काम करने की अपनी मंशा भी जाहिर कर दी।
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