नरेंद्र कुमार, जामनेर/जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
“जब तक पानी नही उतरेगा तब तक पुल नही बनेगा” 1जून 2022 को NIT में प्रकाशित इस खबर के बाद हड़बड़ाकर जाग उठे वाघुर सिंचाई विभाग की ओर से की गई हलचल के कारण ठेकेदार ने पुल का निर्माण कार्य आरंभ कर दिया है. हाल ही में जब NIT ने मौके पर जाकर पड़ताल की तो इस बात का खुलासा हुआ कि वाघुर नदी के गोद में भूरी मिट्टी का भराव डालकर मशीनरिस सेट कर अधर में लटकाए गए ब्रिज के उत्तरी छोर के आखिरी ज़ीरो को मिलाने की कवायद तेज रफ्तार से शुरू कर दी गई है. विकासक का यह प्रयास दिखाई पड़ रहा है कि मानसून की धुँवाधार बारिश से पहले ब्रिज के ज़ीरो को मिलाकर पिलर्स का काम पूरा कर लिया जाए उसके बाद ब्रिज पर स्लैब डालना इतना आसान तो नहीं पर मुश्किल भी न होगा. आज भी ब्रिज के नीचे नदी में डैम का डेढ़ मीटर वाटर लेवल बरकरार है, अगर मूसलाधार बारिश शुरू हो गई तो पानी का लेवल 3 मीटर तक बढ़कर जारी काम ठप हो सकता है.
बीते साल मार्च से अप्रैल के बीच ब्रिज का काम आरंभ किया गया था अगर ठीक उसी तरह से उस बार भी नियोजन किया जाता तो शायद पिलर्स पूरे होकर स्लैब की ओर बढ़ा जा सकता था. वाघुर पुनर्वास अंतर्गत बनने वाले इस ब्रिज की लागत कुछ 3 करोड़ से अधिक बताई जा रही है. आखिर क्या वजह थी कि एक ब्रिज के निर्माण के लिए दो साल तक का समय लग रहा है. रही बात पानी के लेवल की तो इस समस्या को तकनीकी प्रबंधन से सुलझाया जा सकता था. इसमें अधिकरियों की ओर से कहीं सरकारी तिजोरी से अतिरिक्त निर्माण लागत फंड की मंजूरी का तो कोई खेल नहीं है? सूत्रों के हवाले से तो यह सूचना मिल रही है कि इस ठेके में सिंचाई विभाग के किसी अधिकारी की भागीदारी सुनिश्चित की गई है. अगर इस सूचना में जरा भी तथ्य है तो फाइल वर्क में ठेकेदार नपा गया है या नहीं ये देखना रोचक होगा. वाटर लेवल का कारण बताकर खटाई में धकेले गए इस ब्रिज के निर्माण और अन्य पुनर्वास के सभी कामों को लेकर व्यापक जांच की मांग की जा रही है.
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