रहीम शेरानी हिदुस्तानी, अलीराजपुर (मप्र), NIT:
साहस की स्याही से शौर्य की शब्दावली रचने वाले सूर्यक्रान्ति धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की 121 वीं शहादत दिवस पर स्थानीय टंट्या भील मामा चौराहे पर आदिवासी समाज जिला कोर कमेटी ने श्रद्धांजलि अर्पित कर उनके द्वारा बताये गये मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।
अजाक्स जिला उपाध्यक्ष एवं कमेटी के सदस्य रतनसिंह रावत ने कहा कि बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तों में की जाती है। भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे नायक थे जिन्होंने भारत के झारखंड में अपने क्रांतिकारी चिंतन से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया। काले कानूनों को चुनौती देकर बर्बर ब्रिटिश साम्राज्य को सांसत में डाल दिया।
भंगुसिंह तोमर आकास जिला महासचिव एवं कोर कमेटी सदस्य ने संबोधित करते हुए कहा कि 15 नवंबर 1875 को झारखंड के आदिवासी दम्पति सुगना और करमी के घर जन्मे सूर्यक्रान्ति महानायक धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा ने साहस की स्याही से पुरुषार्थ के पृष्ठों पर शौर्य की शब्दावली रची। उन्होंने हिन्दू धर्म और ईसाई धर्म का बारीकी से अध्ययन किया तथा इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आदिवासी समाज को अपने अधिकारों एवं हक के लिए उन्होंने आदिवासी समाज के लोगों को अपनी मूल पारम्परिक आदिवासी धार्मिक रूढ़िगत व्यवास्था ,संस्कृति एवं परम्परा के निर्वहन के साथ ही उसे जीवंत रखने की प्रेरणा समाज को दी है।
आज आदिवासी समाज का जो भी अस्तित्व एवं अस्मिता बची हुई है, तो उनमें उनका ही योगदान हैं, ऐसे महापुरुष की शहादत दिवस पर उनके बताये गये मार्ग पर चलने की आवश्यकता है।
मुकेश रावत जयस राज्य प्रभारी ने कहा कि बिरसा मुंडा ने महसूस किया कि आचरण के धरातल पर आदिवासी समाज अंधविश्वासों की आंधियों में तिनके-सा उड़ रहा है तथा आस्था के मामले में भटका हुआ है।
उन्होंने यह भी अनुभव किया कि सामाजिक कुरीतियों के कोहरे ने आदिवासी समाज को ज्ञान के प्रकाश से वंचित कर दिया है। धर्म के बिंदु पर आदिवासी कभी मिशनरियों के प्रलोभन में आ जाते हैं,तो कभी ढकोसलों को ही ईश्वर मान लेते हैं, उसीभृम को दूर करने के लिए उन्होंने आदिवासीयत को जगाने का काम किया है और जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ी.
विक्रम सिंह चौहान जयस जिला अध्यक्ष ने कहा कि भारतीय जमींदारों और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था। बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को शोषण की नाटकीय यातना से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें तीन स्तरों पर संगठित करना आवश्यक समझा।
पहला- तो सामाजिक स्तर पर ताकि आदिवासी-समाज अंधविश्वासों और ढकोसलों के चंगुल से छूट कर पाखंड के पिंजरे से बाहर आ सके। इसके लिए उन्होंने ने आदिवासियों को स्वच्छता का संस्कार सिखाया। शिक्षा का महत्व समझाया। सहयोग और सरकार का रास्ता दिखाया।
सामाजिक स्तर पर आदिवासियों के इस जागरण से जमींदार-जागीरदार और तत्कालीन ब्रिटिश शासन तो बौखलाया ही, पाखंडी झाड़-फूंक करने वालों की दुकानदारी भी ठप हो गई। यह सब बिरसा मुंडा के खिलाफ हो गए। उन्होंने बिरसा को साजिश रचकर फंसाने की काली करतूतें प्रारंभ की। यह था सामाजिक स्तर पर बिरसा का प्रभाव।
दूसरा- था आर्थिक स्तर पर सुधार ताकि आदिवासी समाज को जमींदारों और जागीरदारों क आर्थिक शोषण से मुक्त किया जा सके। बिरसा मुंडा ने जब सामाजिक स्तर पर आदिवासी समाज में चेतना पैदा कर दी तो आर्थिक स्तर पर सारे आदिवासी शोषण के विरुद्ध स्वयं ही संगठित होने लगे।
बिरसा मुंडा ने उनके नेतृत्व की कमान संभाली। आदिवासियों ने ‘बेगारी प्रथा’ के विरुद्ध जबर्दस्त आंदोलन किया। परिणामस्वरूप जमींदारों और जागीरदारों के घरों तथा खेतों और वन की भूमि पर कार्य रूक गया।
तीसरा- था राजनीतिक स्तर पर आदिवासियों को संगठित करना। चूंकि उन्होंने सामाजिक और आर्थिक स्तर पर आदिवासियों में चेतना की चिंगारी सुलगा दी थी, अतः राजनीतिक स्तर पर इसे आग बनने में देर नहीं लगी। आदिवासी अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति सजग हुए।
अरविंद कनेश जयस जिला उपाध्यक्ष ने कहा कि बिरसा मुंडा सही मायने में पराक्रम और सामाजिक जागरण के धरातल पर तत्कालीन युग के एकलव्य और आदिवासी के महान नेता थे। ब्रिटिश हुकूमत ने इसे खतरे का संकेत समझकर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। वहां अंग्रेजों ने उन्हें धीमा जहर दिया था।
जिस कारण वे 9 जून 1900 को शहीद हो गए। इस अवसर पर बापू कनेश, दिनेश चौहान,जितेंद्र सोलंकी, तेरला चौहान,सर्विसिंग डावर ल,हतरिया, लक्ष्मण डावर सहित आदिवासी समाज के विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी एवं सदस्य उपस्थित रहे हैं।
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