राजस्थान में स्टेट कांग्रेस लीडरशिप को उभारना होगा , वरना 2018 के परिणाम विपरित आ सकते हैं: अशफाक कायमखानी | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर ( राजस्थान ), NIT; राजस्थान में स्टेट कांग्रेस लीडरशिप को उभारना होगा , वरना 2018 के परिणाम विपरित आ सकते हैं: अशफाक कायमखानी | New India Times​राजस्थान में लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले मोहनलाल सुखाड़िया की तरह अब कांग्रेस हाईकमान को प्रदेश में अशोक गहलोत जैसी मजबूत किसी एक लीडरशिप को पूरी छूट व सभी सहूलियतें देकर समय रहते उभारना होगा वरना 2018 के आखिर में होने वाले आम विधान चुनाव के 6 महिने पहले कांग्रेस में ऐसी भगदड़ मचेगी कि एक-एक करके अनेक कांग्रेसी नेता अपने दल को टाटा कहते हुये भाजपा का दामन एक एक करके इस तरह थामेंगे कि सभी अचरज करने लगेगे।
पिछले दिनों जयपुर के एक अखबार में दिल्ली नुमाइंदे की एक स्टोरी इस आशय की प्रकाशित हुई कि भाजपा ने कांग्रेस के अनेक नेताओं से सम्पर्क करके भाजपा जॉइन करने पर उन्हें अलग अलग पदों से नवाजने के जिक्र में पीसीसी चीफ सचिन पायलेट को भी मंत्री बनाने का आफर करने की खबर छपने के बाद आजतक इस न्यूज पर पायलेट की तरफ से किसी भी तरह का खण्डन तक नहीं किया गया है।

 राजस्थान में आजादी के समय से लेकर 1970 तक कांग्रेस की स्टेट लीडरशिप काफी मजबूत व जनता की नब्ज पहचाने की माहिर हुवा करती थी। तब वो लीडरशिप केन्द्रीय नेतृत्व की भावना को नजर में तो पुरा रखती थी लेकिन वो इतनी मजबूत व दमदार होती थी कि उनके फैसले में केन्द्र एक सीमा तक ही दखल दे पाता था। वहीं स्टेट में एक मजबूत लीडरशिप होती थी जो स्थानीय सभी तरह के लीडरस में लगातार सामंजस्य बनाकर रखने की कला के खिलाड़ी होते थे। लेकिन अब कांग्रेस के दिखने में चाहे कुछेक लीडर ही नजर आये पर टिकट बंटवारे के समय बडी तादात में जोशी, भवंर, मीणा, गहलोत, पायलेट, व्यास——— पोल दिखने में आते हैं जिनके चलते टिकटों की बंदरबाट का नतीजा अक्सर हर चुनाव में भुगत रहे हैं।

पिछले लोकसभा चुनाव के समय हरियाणा के विरेन्द्र चौधरी व राजस्थान के कर्नल सोनाराम जैसे अनेक वो नेता जिनको कांग्रेस ने पहचान देकर एक मुकाम तक पह़चाया था और जब कांग्रेस को उनकी जरुरत थी तो वो उसे लात मारकर भाजपा का दामन थामने में नहीं चूके। वहीं पिछले कुछ महीनों पहले भारतीय स्तर पर रीता बहुगुणा व एम एम क्रष्णा जैसै काफी दिग्गज नेता जो कांग्रेस को मां समान माना व कहा करते थे वो भी उसे छोड़कर भाजपा का दामन थामने में दो मिनट भी नहीं लगाई थी। राजस्थान में भी सोनाराम, विरेन्द्र चौधरी, रीता बहुगणा व क्रष्णा के पथ पर चलने को आतूर अनेक नेता बताते हैं जो समय आने पर सत्ता में हिस्सेदारी की चाहत के लिये भाजपा का दामन थाम सकते हैं। अशोक गहलोत सरकार में शेखावाटी क्षेत्र के रहे एक मजबूत पुर्व मंत्री व एक विधायक का तो भाजपा का दामन अपनी विचारधारा के मुताबिक थामने का तय माना जा रहा है। वहीं अनेक नेतागण अपने-अपने माध्यमों के मार्फत भाजपा में जाने की फिराक में बताते हैं।

कुल मिलाकर यह है कि जब से राहुल गांधी ने यूथ कांग्रेस व NSUI में चुनाव सिस्टम लागू किया है तब से वर्कस तैयार करने की फैक्ट्री में ताले से लग गये हैं। अब माफिया व पैसे वालों के लिये यह रास्ता बडा सुगम बन गया है कि वो यहां विपरीत विचारधारा होने के बावजूद धन व लठ्ठ के बल पर मालिक बन सकते है। जबकि कांग्रेस विचारधारा वाला वर्कर धक्के खाते घूमता फिरता रहता है। समय रहते हाईकमान ने उचित निर्णय नहीं लिया तो 2018 में उसकी हालत प्रदेश में यूपी की तरह हो सकती है।


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