अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:
भारत में लोकसभा क्षेत्रों का नये रुप में पहला परिसीमन 1971 की जनसंख्या का आधार मानकर 1977 के लोकसभा चुनाव में व उसके बाद 2001 की जनगणना को आधार मानकर किये गये परिसीमन के मुताबिक 2008 के लोकसभा चुनाव होने के बाद संसद से 2025 तक नये तौर पर परिसीमन नहीं होने की लगी हुई रोक को हटाने व लोकसभा के सांसदों की तादाद बढ़ाकर एक हजार करने की वकालत पिछले दिनों साबिक राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी द्वारा एक समारोह में करने के बाद देश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
1977 में भारत में जब 1971 की जनगणना को आधार मानकर लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन किया गया था जब भारत की आबादी 55 करोड़ थी जो अब बढ़कर दुगनी से अधिक हो गई है एवं 2001 की आबादी को आधार मानकर किये गये परिसीमन के 2008 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रत्येक क्षेत्र में 8 से 9 लाख मतदाता होते थे जो अब बढ़कर 16 से 18 लाख मतदाताओं वाले लोकसभा क्षेत्र हो गये हैं यानि आबादी को आधार मानें तो लोकसभा की सीटों में कम से कम दुगना इजाफा तो होना चाहिए और उसी के अनुपात में राज्यसभा की सीटों में भी इजाफा किया जा सकता है।
भारत के 29 राज्य व 7 केंद्र शासित प्रदेशों की लोकसभा में दो मनोनीत सांसदों को छोड़कर कुल 545 में से 543 निर्वाचित सांसदों की तादाद के अलावा राज्य सभा की 245 सांसदों की तादाद में इजाफा होने की रोक अगर संसद अब हटा लेती है तो अगले चुनाव नये परिसीमन के आधार से करवाये जा सकते हैं। अगर संसद 2025 तक रोक नहीं हटाती है तो 2021 की जनसंख्या को आधार मानकर नये परिसीमन की कार्यवाही 2026 में शुरू होगी जिसके मुकम्मल होने पर 2030 के चुनाव नये परिसीमन व सांसदों की नई तय होने वाली तादाद के अनुसार हो पायेंगे।
हालांकि नियमों के मुताबिक परिसीमन में किसी भी दल को कोई फायदा होने की बात चाहे कोई नहीं स्वीकारें लेकिन यह तय है कि सत्ताधारी दल को नये परिसीमन को अपने मुताबिक करने व करवाने में काफी फायदा मिलता है। पूर्व राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी की एक समारोह में सांसदों की तादाद बढाने व नये तौर पर परिसीमन करने के लिये संसद की रोक हटाने की अपील को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। इस अपील के बाद सांसदों की तादाद बढ़ने व समय के पहले परिसीमन होने के लिये संसद की रोक हटने की सम्भावना जोर पकड़ती जरूर नजर आ रही है।
अब कभी भी भारतीय संसद के सदस्यों की तादाद में इजाफा होगा तो उसमें राज्य की जनसंख्या को आधार मानकर सदस्यों की तादाद तय की जायेगी। इस फारमूले को मध्य रखकर सोचें तो जनसंख्या कंट्रोल करने वाले दक्षिणी राज्यों को मुकाबले हिन्दी भाषी व अन्य पश्चिमी राज्यों में सदस्यों की तादाद अधिक बढेगी। जिसको लेकर दक्षिणी भारत के राज्यों में असंतोष पैदा हो सकता है।
कुल मिलाकर यह है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी के एक समारोह में संसद सदस्यों की तादाद एक हजार करने के साथ संसद द्वारा 2025 तक नये परिसीमन व सदस्यों की संख्या बढाने पर लगी रोक को हटाने की अपील करने को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। सदस्यों की तादाद व नये तोर पर लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन होने की सम्भावना काफी बढ़ चुकी है।
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