रहीम शेरानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:
आदिवासी बाहुल्य जिला झाबुआ आज भी गुलामी भुखमरी अशिक्षा और इलाज के अभाव में झाड फुक कर अपना जिवन जीने पर मजबुर हैं जबकि नेता, अधिकारी आदिवासियों के नाम योजना बनाकर खुद लाभ ले रहे हैं। भोले – भाले आदिवासी दूरदराज राज्यों में जाकर 2 जून की रोटी कमा कर ला रहा है। जिले के अधिकारी इनकी रोटी खाकर अपनी भूख मिटा रहे हैं ! सरकार द्वारा दी जाने वाली तनख्वा ( सैलेरी ) को तिजोरी में बंद कर खुद पूंजीपति बन रहे हैं और बेचारा आदिवासी ना तो अपनी भूखमरी खत्म कर पा रहा है और ना ही सरकार की योजनाओं का लाभ ले पा रहा है और ना ही सरकारी दवाखाने में अपना इलाज करवा पा रहा है मगर सरकारी धन जरूर उनके नाम पर खर्च हो रहा है ! ऐसा ही मामला सरकारी दवाखाने मे देखने को मिल रहा है मामला है झाबुआ जिले के पेटलावद सहित जिले के अन्य गांवों कस्बों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भगवान भरोसे चल रहा है। यहां पर दूरदराज से आने वाले भोले – भाले आदिवासी मरीज प्रतिदिन परेशान हो रहे हैं दवाखाने में पदस्थ डॉक्टर उन्हें अपने घर बुलाकर इलाज कर रहे हैं झाबुआ जिले की स्वस्थय व्यवस्था चरमरा रही है ! मध्य प्रदेश के ओजस्वी मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ सरकार की मंशा अनुसार कार्य नहीं करते हुए सरकार को बदनाम करने में लगे हुए हैं ! मरीज अस्पतालो के चक्कर लगा रहे हैं और डॉक्टर निजी प्रैक्टिस में मस्त होकर भोले – भाले मरीजों का आर्थिक शोषण करते हुए अपनी तिजोरीयो की साइज बड़ी करवा रहे हैं। झाबुआ जिले के पेटलावद मेघनगर थांदला राणापुर में इन दिनों डॉक्टरों और कर्मचारियों की हिटलर शाही मनमानी की वजह से मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार बदनाम हो रही है ! मरीजो के कोष भजन का शिकार सरकार को होना पढ़ रहा है ! और जिले के आला अधिकारी एयर कंडीशन रुम मे सरकारी रीवाईनिंग चेयर पर आराम फरमा रहे हैं और हमारे जिले के भोले – भाले आदिवासी मरीज परेशान हो रहे हैं। जनप्रतिनिधि जान कर अंजान क्यों बने हुए हैं।
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