अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:
6 मई से भारत के रमजान माह की शुरुआत होने के साथ उसी दिन पहला रोजा शुरु होने के दिन ही भारत के आम लोकसभा चुनाव के चोथे चरण का मतदान होना है। उसके बाद भी मतदान के अन्य चरण भी रोजे के दिन होने हैं। खास बात यह है कि चुनाव कब और किस दिन होने हैं यह सब तय करने का भारतीय चुनाव आयोग का विशेषाधिकार होता है। इस तरह की अड़चने व सुविधाओं को देखना चुनाव विभाग का अपना काम होता है लेकिन इस तरह के फिजूल के मुद्दे में भारत के कुछ सियासी लोग मुस्लिम समुदाय को उलझा कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश कर रहे हैं जिसको किसी भी स्तर पर कतई अहमियत नही देनी चाहिये। इस तरह के मुद्दे पर मुस्लिम धार्मिक लीडरान को भी उलझने से बचते हुये हर मतदाता के मताधिकार का उपयोग करने को तय करने में अपने असर को काम में लेने पर विचार करना चाहिये।
भारतीय मुस्लिम समुदाय की अब तक एक विडम्बना रही है कि वो दूसरों के बुने जाल मे हरदम हर पल फंसने को तैयार रहते आये हैं। जबकि उनको अब इस तरह के बुने जाल में फंसने से बाज आना चाहिये। समुदाय को केवल टारगेट बेस राजनीति करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिये। जब तपती धूप मे कड़ी मेहनत करते हुये रोजे की हालत में हलाल रोजी कमाने में किसी तरह की कसर नहीं छोड़ी जाती है तो फिर पांच साल बाद आने वाले लोकतांत्रिक पर्व मे महत्वपूर्ण हिस्सेदारी निभाने के लिये रोजेदार की हालत में और अधिक ताकत के साथ तैयार रहना होगा। वतन की मजबूती के लिये अच्छे से अच्छे उम्मीदवार को जीतने के लिये हर एक मतदाता को अपने मत का उपयोग करना तय करना चाहिये।
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