फराज़ अंसारी, मिहींपुरवा/बहराइच (यूपी), NIT:
कर्तनिया घाट व दुधवा टाइगर रिज़र्व के फील्ड डायरेक्टर रमेश पांडेय के नेतृत्व में पिछले कुछ माह से वन विभाग की टीम ने अभियान चला कई वन माफियाअों व बड़े शिकारियों को मौके पर ही गिरफ्तार किया है किंतु इन आपरेशन के पीछे जमीनी स्तर पर वन कर्मियों को कितनी मशक्कत करनी पड़ती है इस संदर्भ में वन अधिकारी कुछ नहीं बोलते।
वन टीम के आपरेशन की सफलता पर वन विभाग के बड़े अधिकारी एफडी, डीएफअो व एसडीअो हमेशा आगे बढ़कर मीडिया के सामने अपनी पीठ थपथपाते हुये वन्य जीव सम्पदा की सुरक्षा की बात तो करते हैं लेकिन उच्च अधिकारियों ने कभी यह नहीं बताया कि जमीनी स्तर पर काम करने वाले वन कर्मियों को विभाग आखिर साधन व संसाधन उपलब्ध क्यों नहीं करवाता।
कर्तनिया वन्य जीव क्षेत्र अंर्तगत सात वन्यजीव क्षेत्र मोतीपुर, ककरहा, मुर्तिहा, धर्मापुर, निशानगाड़ा, कर्तनिया व सुजौली रेंज आते हैं, इन वन्य जीव क्षेत्रों में एक रेंजर व एक डिप्टी रेंजर व बीट के हिसाब से फारेस्टर तथा वन दरोगाअों की तैनाती की जाती है लेकिन कर्तनिया जैसे प्राकृतिक संसाधनों से भरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिये रेंज कार्यालयों में वन विभाग अभी तक पदों के सापेक्ष नियुक्तियां तक नहीं की जा सकी है अौर मौजूदा समय में जो भी वन कर्मचारी कर्तनिया प्रभाग में तैनात है उनमें से 70 प्रतिशत वनकर्मी 55 वर्ष की आयु पूरे कर चुके हैं, ऐसे में इन उम्रदराज कर्मचारियों के भरोसे लकड़ी चोरी कैसे रोकी जा सकती है?
कर्तनिया वन्य जीव प्रभाग के अंतर्गत पड़ने वाले सात रेंज कार्यालयों में से चार रेंज मोतीपुर, ककरहा, धर्मापुर, मुर्तिहा व सुजौली वन्य जीव क्षेत्रो में तो वन क्षेत्राधिकारी तक तैनात नहीं हैं, इन रेंजों में क्षेत्राधिकारी का चार्ज डिप्टी रेंजर के हाथों में है।
मोतीपुर वन्य क्षेत्र का चार्ज डिप्टी रेंजर शत्रुहन लाल देख रहे हैं, इस क्षेत्र में 4 वन दरोगा होने चाहिये जबकि पूरी रेंज को सिर्फ 2 वन दरोगा ही देख रहे हैं। मोतीपुर की 8 वन बीटों की सुरक्षा सिर्फ 4 फारेस्टर के जिम्मे है जबकि यहां 8 फारेस्टर होने चाहिये।
ककरहा वन्य जीव प्रभाग भी डिप्टी रेंजर महेंद्र मौर्या के भरोसे है। यहां भी 4 वन दरोगा के पदों पर सिर्फ 2 ही वन दरोगा तैनात हैं। ककरहा में भी वनों की सुरक्षा हेतु 8 फारेस्टर के बजाय 4 फारेस्टर ही तैनात किये गये हैं।
धर्मापुर व मुर्तिहा वन क्षेत्रों की स्थिति तो अौर भी बदतर है, इन दोनो रेंज में कोई रेंजर नहीं है, इन दोनो रेंज का प्रभार डिप्टी रेंजर रामशंकर के पास है जो 29 जनवरी को सेवानिवृत्त हो रहे है।
मुर्तिहा में 3 वनदरोगा के सापेक्ष मात्र 1 वन दरोगा ही रेंज की सुरक्षा में नियुक्त है मुर्तिहा में 5 वन बीटो की सुरक्षा हेतु 5 फारेस्टर के बजाय मात्र 1 फारेस्टर ही तैनात किया गया है।
धर्मापुर रेंज में 2 वनदरोगा व 4 फारेस्टर होने चाहिये जबकि यहां मात्र 1 वनदरोगा व 2 फारेस्टर ही जंगल की सुरक्षा कर रहे है।
इसी प्रकार सुजौली वन्य क्षेत्र में भी कोई रेंज अधिकारी नही है रेंज का प्रभार डिप्टी रेंजर प्रमोद श्रीवास्तव के पास है।
निशानगाड़ा वन क्षेत्र मे वनक्षेत्राधिकारी दयाशंकर सिंह की तैनाती है व कर्तनिया वन क्षेत्र में रेंज अधिकारी पियूष मोहन मौजूद है इसके बाद भी सुजौली , निशानगाड़ा व कर्तनिया जैसी दो बड़ी रेंज कार्यालयो में भी सिर्फ आधे ही पदो पर वन कर्मी तैनात है।
वन विभाग के उच्च अधिकारी किसी भी सर्च आपरेशन के बाद जिस तरह मीडिया के सामने आकर अपना बयान देते है। उसी तरह उन अधिकारियों को आगे आकर लोगों को यह भी बताना चाहिए की यदि वह वन व वन्य जीवों की सुरक्षा को लेकर वाकई गम्भीर है तो फिर वह कर्तनिया के इस हरे सोने की सुरक्षा हेतु रिक्त पदो पर वन कर्मियो की तैनाती क्यों नहीं कर रहे हैं।
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