फराज़ अंसारी, ब्यूरो चीफ बहराइच (यूपी), NIT:
बहराइच शहर में आग लगने की घटनाएं बढऩे लगी हैं लेकिन इसके बाद भी फायर डिपार्टमेंट अपनी कार्यप्रणाली को दुरुस्त करने में कोई रुचि नहीं दिखा रहा है। आपको बताते चलें कि 14 अप्रैल को अग्निशमन दिवस (फायर डे) मनाया जाता है और 14 अप्रैल से 20 अप्रैल तक अग्निशमन दल द्वारा अग्नि सुरक्षा सप्ताह मनाया जाता है। अग्नि सुरक्षा सप्ताह अंतर्गत अग्निशमन दल द्वारा नागरिकों को अग्नि से बचाव और सावधानी बरतने के सम्बंध में जागृत करने के लिए अग्निशमन दल द्वारा भिन्न-भिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। अग्नि सुरक्षा सप्ताह का उद्देश्य नागरिकों को अग्निकांडों से होने वाली क्षति के प्रति जागरुक करना और अग्निकांडों को रोकने एवं अग्नि से बचाव के उपायों के संबंध में शिक्षित करना है। इसके साथ ही सुरक्षित मार्ग की व्यवस्था, अग्निशामक उपकरणों का प्रयोग, आग की स्थिति में बचाव के उपाय, उद्योगों में अग्नि सुरक्षा व सावधानियां, विद्युत अग्नि सुरक्षा व सावधानी, बहुमंजिले भवनों में अग्नि सुरक्षा, विकलांग व्यक्तियों के लिए अग्नि सुरक्षा आदि से आमजन को रूबरू करवाया जाता है। लेकिन इसके बाद सब भूले बिसरे गीत से ही हो जाता है। जी हां शहर के मुख्य बाजार से लेकर शहर के दूर-दराज क्षेत्रों की मिष्ठान दूकानों से लेकर होटलों, रेस्टोरेंट्स और लॉज में ज़्यादातर जगह ऐसी हैं जहां अग्निशमन यंत्र मौजूद ही नहीं है और यदि कहीं है भी तो वह काम कर रहा है या नहीं इसकी न तो किसी को कोई खबर है और न ही किसी को इसकी कोई परवाह। खास बात तो यह है कि दमकल विभाग के पास भी इसे जांचने के समय नहीं हैं। सीएफओ साहब तो बस अप्रैल में ही अपने दल-बल के साथ निकलेंगे फायर सप्ताह के दौरान तब के के लिये शहर में प्रतिष्ठानों को लापरवाही बरतने की साहब की खुली छूट है। सूत्रों की माने टी शहर के कई प्रतिष्ठित इमारतों से सालों से फायर सिलेण्डरों की न तो हूई है री-फिलिंग और न ही हुआ है रिनीवल।
शहर की ज़्यादातर शिक्षण संस्थाएं, व्यावसायिक व सरकारी प्रतिष्ठानों के अलावा सरकारी दफ्तरों में भी अग्नि सुरक्षा के कोई उपाय नहीं हैं। फायर सिलेंडर खाली पड़े हैं। उनकी री-फिलिंग के नाम पर खानापूर्ति ही की जाती है। ऐसे में अगर आगलगी की घटनाएं हो जाएं तो आश्चर्य नहीं कि लाखों की संपत्ति के साथ कई जानें भेंट चढ़ जाएंगी। शहर के चौक चौराहों से लगे प्रतिष्ठानों से लेकर गली कूचे में चल रही दूकानों में नियमों और मानकों को ताक पर रखते हुए घरेलू गैस सिलेंडरों का उपयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। दुकानों, होटलों और ढाबों पर घरेलू गैस सिलेंडर बेधड़क कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। सब कुछ जानते हुए भी विभाग बेपरवाह बना हुआ है। इन प्रतिष्ठानो में जहां एक तरफ भट्ठी धधक रही थी तो दूसरी तरफ घरेलू सिलेंडर लगा है। और यहां अग्निशमन यंत्र का दूर-दूर तक नामो-निशान नही है इसकी वजह से कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। ऐसे हालात कमोबेश शहर में हर तरफ देखने को मिलता है। लेकिन हमारे जांबाज़ और अपनी जिम्मेदारी का पूरी जिम्मेदारी से पालन करने वाले दमकल विभाग को इन सब की खबर तक नहीं है शायद या फिर इसे देखने और जांचने की उन्हें ज़रूरत नहीं है।
जिले में इन दिनों बहराइच सीएफओ की बड़ी लापरवाही देखने को मिल रही है जो महेज़ कमरे में बैठकर नौकरी करते नज़र आ रहे हैं। फील्ड में कभी होटल की चेकिंग तक करने की जिम्मेदारी उठाना गवारा नहीं समझते हैं सीएफओ साहब। आश्चर्य की बात तो यह है कि कई भवनों को कागजों पर दी गयी एनओसी लेकिन मौके पर उपकरण ही नहीं हैं मौजूद। सिर्फ आग बुझाने का ही काम कर रही दमकल विभाग। फायर उपकरणों के लिए कोई अभियान नहीं चला रहे हैं जिम्मेदार। शहर में ऐसे न जाने कितने मिष्ठान भण्डार की दुकानें, होटल, धर्मशालाएं, गेस्ट हाउस और लॉज हैं, जहां आग से सुरक्षा के मुकम्मल उपाय नहीं हैं। इनमें से कुछ हाल तो यह है कि यदि यहां आग लग जाए तो दमकल की गाड़ियों का पहुंच पाना असंभव ही नहीं नामुमकिन है। इसके बावजूद इनके खिलाफ कार्यवाही के नाम पर दमकल विभाग सिर्फ नोटिस देने तक ही सीमित रहता है तो पुलिस और प्रशासन के अधिकारी इस सम्बन्ध में पूरी तरह से चुप्पी साधे रहते हैं और हादसों के होने पर कागजी कवायदों में जुट जाते हैं। शहर के भीड़भाड़ वाली कई व्यवसायिक और आवासीय इमारतों में आग लगने की घटनायें सामने आ चुकी हैं बावजूद इसके जिम्मेदार मौन धारण किये बैठे हैं। ऐसे लगता है कि जिले के चीफ फायर आफ़िसर साहब और उनके विभाग को आमजन की ज़िन्दगियों की कोई परवाह नहीं हैं। ऐसा लगता है कि उनकी जिम्मेदारी महेज़ फायर सप्ताह तक ही सीमित है जिसमे वह कुछ झहों पर मॉकड्रिल कर फोटोशूट करा कर अपने कर्तव्यों और दायित्वों का निर्वहन कर लेते हैं। आम चर्चा है कि प्रतिष्ठानों से मोटे मुनाफे की एवज में सीएफओ साहब व उनके विभाग ने अपनी आंखें मूंद रखी हैं। सवाल यह उठता है कि क्या चन्द कागज़ के टुकड़ों के आगे इनसानी ज़िन्दगियों का कोई मोल नहीं?
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