फराज़ अंसारी, बहराइच (यूपी), NIT:
मरीजों को एंबुलेंस उपलब्ध कराने के लिए भले ही प्रदेश सरकार की ओर से पूरा प्रयास किया जा रहा है लेकिन, इसका लाभ मरीजों को उतना नहीं मिल पा रहा है जितना मिलना चाहिए। 108 एम्बुलेन्स सेवाएं इन दिनों मरीजों और तीमारदारों को धोखा ही दे रही हैं। यदि ऐसा कहा जाये तो शायद यह गलत नहीं होगा। 108 एम्बुलेन्स सेवा पर कॉल करने पर कई बार तो नंबर नहीं लगता, जब नंबर लगता है तो जवाब के तौर पर हमेशा एंबुलेंस सड़क पर दौड़ रही है, यह बात कह कर फोन काट दी जाती है। बीती रात जिला अस्पताल की इमरजेन्सी वार्ड में सड़क दुर्घटना में गम्भीर रूप से घायल हुए शहर निवासी युवक पहुंचा, उसकी गम्भीर हालत को देखते हुए जिला अस्पताल की इमरजेंसी में तैनात डॉक्टर साहब ने उसे लखनऊ ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया। जिसके बाद से घायल के परिजनों का 108 एम्बुलेन्स सेवा प्राप्ति के लिये शुरू हुआ फरियादों और मिन्नतों का दौर। 108 एम्बुलेन्स के लिये काल कर सिर्फ परिजनों ने हो नहीं बल्कि इमरजेन्सी सेवा में तैनात डॉक्टर साहब ने भी परिजनों के कॉल पर एम्बुलेन्स सेंटर से बात कर युवक की गम्भीर अवस्था से अवगत कराते हुए उसे तत्काल ट्रामा सेंटर भर्ती कराने की बात कही लेकिन जिम्मेदारों ने मानों एम्बुलेन्स न भेजने की ठान ही ली थी। आधा घण्टे से ज़्यादा बीतने के बावजूद भी 108 एम्बुलेन्स नहीं पहुंची।
स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाल स्थिति किसी से छुपी नहींहै। जिले का सरकारी अस्पताल डॉक्टरों की कमी और बेहतर सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण रेफर सेंटर बन गया है। आपातकाल के दौरान मरीजों की सेवा में लगायी गयी 108 के पहिए भी थम से गये हैं। 108 सेवा की व्यवस्था खस्ताहाल होने केे कारण मरीजों को लाने और ले जाना भी अब लगभग बन्द सा होता जा रहा है। आलम यह है कि आपातकाल की स्थिति में यदि आप की 108 एम्बुलेन्स सेवा के लिए फोन कॉल लग भी जाये तब भी आपको 108 एम्बुलेन्स सेवा उपलब्ध हो जाये तो समझिये आपने ज़िन्दगी की जंग जीत ली है। बताते चलें कि पिछली अखिलेश सरकार में शुरू की गयी 108 एम्बुलेन्स सेवा की रफ्तार अब समय बीतने के साथ साथ धीमी पड़ती जा रही है। जिसकी एक बानगी बीती रात देखने की तो मिली ही थी आज भी 108 इमरजेन्सी एम्बुलेन्स सेवा की असल हकीकी सबके सामने आ गयी जब फोन करने के घण्टों बीतने के बाद भी एम्बुलेन्स नहीं पहुंची तो परिजन पीड़ित को ठेले पर ही लाद जिला अस्पताल पहुंच गये और हैरत की बात तो यह है कि इलाज के बाद भी पीड़ितों को अपने मरीज को पुनः फिर एम्बुलेन्स सेवा का लाभ नहीं मिल सका तब परिजन अपने मरीज ठेले पर ही लाद कर अपने घर को रवाना होने को मजबूर दिखे। मामला मीडिया में आने कब बाद से जिला अस्पताल प्रशासन लीपा-पोती में जुट गया है।
कहने को तो डॉक्टर भगवान का रूप होते हों जिला अस्पताल जीवन देने वाला केन्द्र लेकिन उसी जीवन देने वाले केन्द्र में शायद अब इनसानी ज़िन्दगियों का कोई मोल नहीं। बीती रात जिला अस्पताल के इमरजेंसी में एम्बुलेन्स के लिये मची अफरा-तफरी की भनक जब हम लगी तो हम भी मौके पर पहुंच गये। युवक की हालत देख हमारे भी होश उड़ गये और हमने तत्काल सीएमई डी0के0 सिंह को फोन लगा दिया लेकिन उन्होंने लगातार हमारे फोन मिलाने के बावजूद भी फोन उठाना गवारा नहीं समझा इसके बाद सीएमओ साहब से लगातार वार्ता करने बाद पीड़ितों को 108 एम्बुलेन्स मिल सकी। सवाल यह उठता है कि क्या इनसानी ज़िन्दगियों और मौतों से जिम्मेदारों का कोई लेना देना नहीं है। आखिर बदहाल हो चुकी स्वास्थ्य सेवा का क्या कल्प कब हो सकेगा यह आने वाला समय ही बतायेगा।
घण्टी बजती रही लेकिन सीएमएस साहब ने फोन तक उठाना नहीं समझा ज़रूरी
सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति को ट्रामा सेंटर रेफर करने के बाद से एम्बुलेन्स के लिये मिन्नतें कर रहे परिजनों की तड़प देख कर जब हमने मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर डी. के. सिंह के दूरभाष पर फोन मिलाया तो लगातार रिंग बजने के बाद भी उन्होंने फोन उठाने की जहमत उठाना गवारा नहीं समझा। सवाल यह उठता है कि समूचे जिला अस्पताल की कमान अपने कांधों पर उठाने और स्थिति सुधारने का दावा करने वाले सीएमएस साहब को शायद किसी की जिंगदगी और मौत से कोई फर्क नहीं पड़ता।
सीएमओ से की गुजारिश तब मिल सकी 108 एम्बुलेंस
दुर्घटना में घायल शहर निवासी की तड़प देख लगातार सीएमएम साहब को फोन करने और उनके फोन न उठाने पर जब हमने सीएमओ से दूरभाष पर बात की और लगातार उनसे पीड़ित को एम्बुलेन्स उपलब्ध कराने की गुज़ारिश की तब जाकर घायल को 108 एम्बुलेन्स मयस्सर हो सकीं।
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