डॉ रामशंकर चंचल की 'अकेला होना और काळी रचना' सोशल मीडिया पर है सुर्खियों में | New India Times

रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:

डॉ रामशंकर चंचल की 'अकेला होना और काळी रचना' सोशल मीडिया पर है सुर्खियों में | New India Times

झाबुआ के विश्व पटल के ख्याति प्राप्त साहित्य साधक के रूप में बेहद चर्चित होता हुआ एक सहज सरल नाम, डॉ रामशंकर चंचल जो
आज किसी भी साहित्य प्रेमियों के लिए अपनी अलग पहचान बनाएं हुए हैं ओर अनजान भी नहीं हैं, आज उनकी मात्र दो रचना ही, एक लाख साहित्य प्रेमियों द्वारा सुन कर बेहद  सराही गई है सचमुच अद्भुत है यह, झाबुआ जिले एवं प्रदेश और देश के लिए की, देश के पिछड़े इलाके के एक साहित्य साधक ने अपने जीवन को साहित्य सेवा, और हिन्दी भाषा की सेवा में लगा कर आज सम्पूर्ण विश्व पटल पर हिन्दी भाषा का अद्भुत गोरव बढ़ाया है और यादगार योगदान देते हुए आने वाले कल को, युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने का बेहद सार्थक कार्य किया है जो सचमुच वन्दनीय है।

शोशल मीडिया पर उनकी सैकड़ों रचना प्रतिदिन हजारों लोगों द्वारा सुनी जा रही हैं, उन में उनकी, अकेला होना उन्हीं के स्वर में ८५ हजारों द्वारा अभी तक सुनी और बेहद सराही गई है वही उनकी नेशनल अवॉर्ड फिल्म काळी की कथा अंग्रजी में, डॉ पुलकिता आनन्द द्वारा अनुवाद कर, डॉ आनन्द द्वारा ही स्वर दे सभी को, प्रभावित करती यह कथा भी अंग्रेजी मै अभी तक १५ हजारों लोगों द्वारा सुनी और बहुत ही सराही गई है मात्र दो रचना को ही आज एक लाख साहित्य प्रेमी विश्व स्तर पर सुन चुके है ऐसी सैकड़ों रचनाएँ, डॉ चंचल की प्रतिदिन हजारों में फेसबुक पर, सुनी और सराही जा रही है।

झाबुआ जैसे आदिवासी पिछड़े अन्चल का, साहित्य जैसे गहन, गम्भीर विषय पर, अद्भुत योगदान, चौकाने वाला विषय है, यह सब डॉ चंचल की सालों की अथक परिश्रम और साधना का सुखद परिणाम है, जो आज झाबुआ के लिए इतिहास बन गया है जो, सदियों आने वाला कल याद कर प्रेरित होकर साहित्य में अलख जगाने का सार्थक कार्य करेगा, प्रणाम झाबुआ की देव भूमि को, प्रणाम साहित्य साधक डॉ राम शंकर चंचल की सालों की साधना को, जिस पर पूरे देश को गर्व होना स्वाभाविक है।


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By nit

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