लोकसभा चुनावों की आमद के साथ फिर एक बार पत्रकार सुरक्षा कानून की आस हुई धूमिल | New India Times

महलक़ा इक़बाल अंसारी/जमशेद आलम, भोपाल (मप्र), NIT:

इस माह के अंत तक देश में लोकसभा चुनावों की बिगुल बज जाएगा और सत्ताधारी पार्टी भाजपा सहित अन्य राजनैतिक दल इस चुनावी समर में कूद जाएंगे। मध्य प्रदेश में 2003 से भाजपा सत्ताधारी पार्टी के रूप में 18/19 साल तक एक छत्र शासन करती आ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा अपने 17/18 साल प्रदेश में अपनी सत्ता कायम रखी, लेकिन उनके इस शासनकाल में उनके द्वारा महिलाओं, बालिकाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों के बाद यदि किसी के साथ छल किया तो वह है प्रदेश का पत्रकार समाज, पत्रकार बिरादरी। प्रदेश में 19 साल के भाजपा शासन में तीन मुख्यमंत्री विराजमान रहे लेकिन न तो पत्रकार सुरक्षा कानून लागू हुआ और न ही राजधानी भोपाल में मीडिया हाउस की स्थापना हुई। महज झूठे आश्वासन के सिवा पत्रकार बिरादरी को सरकार से कुछ भी हासिल नहीं हुआ।प्रदेश में लगातार पत्रकारों और निष्पक्ष पत्रकारिता पर हो रहे हमलों से आज सारा प्रदेश भली भांति परिचित है। सत्ता और संगठन की आड़ में माफिया, राजनेता और नौकरशाहों के निशाने पर आए निष्पक्ष पत्रकार विगत कई वर्षों से पीड़ा भोग रहे हैं। निष्पक्ष पत्रकारिता पर हमलों की आंच सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई। जहां से कई बार तीखे तेवरों के बावजूद सरकार और राजनेता और नौकरशाहों ने अपने व्यवहार में कोई सुधार नहीं किया है।

विज्ञापन

गत वर्षों लगातार भारतीय पत्रकारिता की अस्मिता पर भी सवाल उठे। यह सवाल उसकी नैतिकता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर हावी होते रहे हैं। इसके बावजूद निष्पक्ष पत्रकारिता पर सरकारी हस्तक्षेप भी चिंता का विषय है। सरकार के लगातार मीडिया पर अघोषित नियंत्रण का ही परिणाम है कि देश में पत्रकारिता पर हमले पर न्यायपालिका तक को चिंता जाहिर करना पड़ रहा है। सरकार की पत्रकारिता पर हमले बाज़ी  पर कुछ माह पूर्व भी सर्वोच्च न्यायालय ने तल्ख़ टिप्पणी की थी।  सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि ‘किसी लोकतांत्रिक गणराज्य के सुचारु रूप से चलते रहने के लिए स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है। लोकतांत्रिक समाज में उसकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह राज्य (देश) के कामकाज पर रोशनी डालती है। एक स्वतंत्र प्रेस हमारे लोकतांत्रिक समाज में एक आवश्यक भूमिका निभाता है जैसे -सरकारों को जवाबदेह ठहराना, भ्रष्टाचार, अन्याय और सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करना, समाज को सूचित करना और उन्हें प्रभावित करने वाले निर्णयों और नीतियों में शामिल होना।

विदित हो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1 )( क) के वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अर्थात प्रेस की आजादी, जो कि मौलिक अधिकार के अर्न्तगत आते हैं। जिसका वर्तमान संदर्भ में मध्यप्रदेश की पुलिस द्वारा उपयोग नहीं किया जा रहा है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा कई बार अधिसूचनाओं को जारी कर पत्रकारों की सुरक्षा के निर्देश दिये गए हैं, परन्तु उसके बावजूद मध्यप्रदेश के पत्रकार असुरक्षा की भावना के साथ अपने कर्त्तव्यों का निर्वाहन कर रहे हैं।

भारत सरकार गृह मंत्रालय एडवाजरी दिनॉक 01/04/2010 सहित भारत सरकार गृह मंत्रालय परिपत्र क्रमांक 24013/46एमआईएससी 2013 सीआरसी 3 नई दिल्ली दिनांक 20/10/2017 द्वारा समस्त राज्यों सहित केन्द्र शासित प्रदेशों को एडवाजरी के माध्यम से पत्रकार सुरक्षा का प्रावधान किया गया है। लेकिन प्रदेश में पुलिस प्रशासन द्वारा खुलकर इस एडवाजरी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। जिसके कारण निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले पत्रकार हमेशा माफिया, पुलिस प्रशासन के निशाने पर रहते हैं। प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स द्वारा मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार से मांग की जाती है कि लोकसभा चुनाव के बाद पत्रकार सुरक्षा कानून लागू कराने की पहल सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर करें तथा पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा बनाई गई पत्रकार सुरक्षा कानून संबंधी समिति की अनुशंसाओं को स्वीकार कर समुचित कानून बनाया जाए।

विज्ञापन

Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

By nit

This website uses cookies. By continuing to use this site, you accept our use of cookies. 

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading