रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:
माहे रमजान का पवित्र महीना शुरू हो गया है चांद के दीदार होते ही चेहरों पर रोनक माहे रमज़ान का पहला रोज़ा कल 12 तारीख को रमजान माह की आमद को लेकर कई शहर कस्बों में तैयारियां जोरों से शुरू हो गई थी मस्जिदों में साफ सफाई के साथ सेहरी और इफ्तारी के लिए लोग इंतजाम में लग गए हैं। माहे रमजान से पहले सभी शहर कस्बों में माहौल एक अच्छा नज़र आने लगा, खाने पीने की सामग्री की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ बढ़ गई है। ज्यादा वे चीजों की बिक्री हुई जो सेहरी और इफ्तार में काम आती हैं। मेघनगर के आलिम जुनैद ने बताया की पूरे माह रोजों का एहतमाम किया जाता है। रोजे के मायने भूखे प्यासे रहना नहीं है बल्कि गुनाहों से खुद का बचाव भी है। नूरे मोहम्मदी मस्जिद, के हाफिज जनाब रिजवान सहाब मरकज़ मस्ज़िद मेघनगर हाफिज जनाब मोसीन पटेल सहाब जनाब हाफीज सलमान सहाब एवं प्रबंधकों ने बताया की माहे रमजान में मस्जिदों में भीड़ उमड़ने लगती है।
लोग इबादतों की खासतौर पर पाबंदी करते हैं। जिसके चलते बिजली पानी से लेकर साफ सफाई और रंग रोगन के लिए मस्जिदों में लगातार काम चल रहा था। ताकि रोजेदारों को परेशानी न हो।
चांद देखने का एहतमाम किया गया
चांद नजर आते ही रमजान में होने वाली विशेष तरावीह की नमाज शुरू हो चुकी है
यह नमाज केवल रमजान माह में ही होती है।
अगले दिन यानि मंगलवार 12 तारीख को पहला रोजा रखा जाएगा।
नबी स.अ.वसल्लम ने शाबान की आख़िर ता. में सहाबा को वाज़ फ़र्माया।
हज़रत सलमान (रजि०) कहते हैं की नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शाबान की आख़िर तारीख में हम लोगों को वाज़ फ़र्माया’ की तुम्हारे लिए अल्लाह से तौबा करने का एक महीना आ रहा है, जो बहुत बड़ा महीना है, बहुत मुबारक महीना है। इस में एक रात है (शबे क़द्र), जो हजारों महीनों से बढ़कर है। अल्लाह तआला ने उसके रोज़े को फ़र्ज फ़र्माया और उस रात के कियाम (यानी तरावीह) को सवाब की चीज बनाया है।
जो शख़्स इस महीने में किसी नेकी के साथ अल्लाह का कुर्ब हासिल करे, ऐसा है, जैसा की गैर रमज़ान में फ़र्ज अदा किया और जो शख्श इस महीने में किसी फ़र्ज को अदा करें, वह ऐसा है जैसा की गैर रमजान में सत्तर फ़र्ज अदा करें। यह महीना सब्र का महीना है। और सब्र का बदला जन्नत है और यह महीना लोगों के साथ ग़म ख़्वारी करने का है। इस महीने में मोमिन का रिज़्क बढ़ा दिया जाता है। जो शख़्स किसी रोजेदार का रोजा इफ्तार कराए, उस शख्स के सारे गुनाहों को माफ़ होने और आग से खलासी का सबब होगा और रोजेदार के सवाब की मानिंद उसको सवाब मिलेगा, मगर इस रोजेदार के सवाब से कुछ कम नहीं किया जाएगा। सहाबा रज़ि० ने अर्ज किया की या रसूलल्लाह! हम में से हर शख़्स तो इतनी वुसअत’ नहीं रखता की रोज़ेदार को इफ़्तार कराये ? तो आप सल्ल॰ ने फ़र्माया कि (पेट भर खिलाने पर मौकूफ़ नहीं) यह सवाब तो अल्लाह जल्ल शानुहू एक खजूर से कोई इफ़्तार करा दे, या एक छूट पानी पिला दे, या एक घूंट लस्सी पिला दे, उस पर भी मरहमत’ फ़र्मा देते हैं। आगे इर्शाद है की अल्लाह ने इसके रोजे को फ़र्ज किया है साथ ही इसके क़ियाम यानी तरावीह को सुन्नत किया।
विशेष नमाज़ तरावीह का पड़ना सुन्नत है
तरावीह के मामले में अक्सर लोगों को ख़्याल होता है कि जल्दी से किसी मस्जिद में आठ-दस दिन में कलाम मजीद सुन लें, फिर छुट्टी। यह ख़्याल रखने की बात है कि ये दो सुन्नतें अलग-अलग हैं। तमाम कलामुल्लाह शरीफ़ का तरावीह में पढ़ना या सुनना यह मुस्तकिल सुन्नत है और पूरे रमजान शरीफ़ की तरावीह मुस्तकिल सुन्नत है। पस इस सूरत में एक सुन्नत पर अमल हुआ और दूसरी रह गयी। अलबत्ता जिन लोगों को रमजानुल मुबारक में सफ़र वगैरह या और किसी वजह से एक जगह रोजाना तरावीह पढ़नी मुश्किल . हो, उनके लिए मुनासिब है की अव्वल कुरआन शरीफ़ चन्द रोज में सुन लें ताकि कुरआन शरीफ़ नाकिस न रहे। फिर जहां वक़्त मिला और मौका हुआ वहां तरावीह पढ़ ली की कुरआन शरीफ भी इस सूरत में नाकिस नहीं होगा और अपने काम का भी हर्ज न होगा।
रमज़ान में चार चीज़ों की कसरत रखे
नबी सल्ल. ने फरमाया कि चार चीज़ों की इसमें कसरत रखा करो, जिन में से दो चीजें अल्लाह तआला की रजा के वास्ते और दो चीजें ऐसी हैं की जिन से तुम्हें चारा-ए-कार नहीं। पहली दो चीजें जिन से तुम अपने रब को राजी करो, वह कलमा-ए-तय्यिबा और इस्तफ़ार की कसरत है।
और दूसरी दो चीजें यह हैं की जन्नत की तलब करो और आग से पनाह मांगो। जो शख़्स किसी रोजेदार को पानी पिलाए, हक तआला (कियामत के दिन) मेरी हौज़ से उस को ऐसा पानी पिलायेंगे जिस के बाद जन्नत में दाखिल होने तक प्यास नहीं लगेगी।
लैलतुल क़द्र को रमजान के आखिरी अशरे की ताक रातों में तलाश किया करो
हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से नकल फ़र्माती हैं कि लैलतुल क़द्र को रमजान के अख़ीर अशरे की ताक रातों में तलाश किया करो। जम्हूर उलमा के नजदीक अख़ीर अशरा इक्कीसवीं रात से शुरू होता है। आम है महीना 29 का हो या 30 का, इस0 हिसाब से हदीसे बाला के मुताबिक शबे क़द्र की तलाश 21, 23, 25, 27, 29 की रातों में करना चाहिए। अगर महीना 29 का हो तब भी अख़ीर अशरा यही कहलाता है। माहे रमाजान का आगाज मुस्लिम समाज इबादतों में मशगूल।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts sent to your email.