मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:

आज के बदलते सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक संदर्भ एवं परिवेश में, जहां मुस्लिम समाज की बेटियां पुरानी परंपरागत रूढ़िवादिता की ज़ंजीरों को तोड़ कर इस्लामी परंपराओं और मान्यताओं के साथ शिक्षा सहित हर क्षेत्र में नए नए आयाम स्थापित कर रही हैं। आज की बेटियों की अपनी समर्पण भावना और अथक प्रयास से साबित कर दिया है, कि वे बेटों से कम नहीं हैं, बल्कि उससे भी आगे बढ़ चुकी हैं। वर्तमान समय में मुस्लिम समाज की बेटियां न केवल अपने कैरियर में आगे बढ़ रही हैं, बल्कि मां-बाप की सेवा चाकरी करने के साथ-साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों में भी उत्कृष्ट योगदान दे रही हैं। वे अपने माता-पिता की सेवा चाकरी को अपना परम सुख और परम कर्तव्य मानते हुए उनके प्रति अपने प्रेम व श्रद्धा को प्रगाढ़ करती हैं।
इसी भावना और जज़्बात का एक प्रतिबिंब मुंबई के कुर्ला की एक बेटी मसीरा अंसारी जमाल अहमद ने अपने पिता की 29 /11/2023 को मृत्यु के संदर्भ में अपनी भावना को कविता के रुप में क़लमबंद कर पेश की है। अपने पिता के निधन के बाद क़लमबंद की गई यह कविता (नज़्म ) न केवल एक बेटी के दर्द को अभिव्यक्त करती है, बल्कि समाज में बेटियों के बढ़ते महत्व और उनके योगदान को भी उजागर करती है। यह कविता आज के दौर की उस सशक्त छवि को प्रस्तुत करती है जहां बेटियां समाज में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। प्रस्तुत है खानवादा ए मोहसिन उम्मीदी अज़हर इक़बाल मोहसिन उम्मीदी के हवाले से प्राप्त मसीरा अंसारी जमाल अहमद निवासी कुर्ला मुंबई की यह कविता।
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