ब्रह्माकुमारीज संस्थान की संयुक्त मुख्य प्रशासिका डॉ. निर्मला दीदी का 88 वर्ष की उम्र में हुआ निधन | New India Times

गुलशन परूथी, आबू रोड (राजस्थान), NIT:

ब्रह्माकुमारीज संस्थान की संयुक्त मुख्य प्रशासिका डॉ. निर्मला दीदी का 88 वर्ष की उम्र में हुआ निधन | New India Times

ब्रह्माकुमारीज संस्थान की संयुक्त मुख्य प्रशासिका डॉ. निर्मला दीदी का 88 वर्ष की उम्र में देवलोकगमन हो गया। उन्होंने अहमदाबाद के हॉस्पिटल में शुक्रवार सुबह 11 बजे अंतिम सांस ली। वे कुछ समय से बीमार चल रहीं थीं। आप मात्र 27 वर्ष की आयु में ब्रह्माकुमारीज से जुड़ीं और पूरा जीवन समाज कल्याण में समर्पित कर दिया। ब्रह्माकुमारीज की कोर कमेटी मेंबर होने के साथ आपने संस्थान के संस्थापक ब्रह्मा बाबा से ज्ञान प्राप्त किया। सरलता, विनम्रता और उदारता की प्रतिमूर्ति डॉ. निर्मला दीदी के जीवन से प्रेरणा लेकर हजारों लोगों ने अपना जीवन आनंदमय बनाया। शनिवार शाम 4 बजे माउंट आबू के मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया जाएगा।

ब्रह्माकुमारीज संस्थान की संयुक्त मुख्य प्रशासिका डॉ. निर्मला दीदी का 88 वर्ष की उम्र में हुआ निधन | New India Times

वर्ष 1935 में मुंबई में हुआ था जन्म:- मुंबई के प्रसिद्ध व्यापारी परिवार में वर्ष 1935 में जन्मी डॉ. निर्मला दीदी बचपन से ही प्रतिभावान रहीं। आप बचपन में खेलकूद के साथ पढ़ाई में विशेष रुचि रखती थीं। वर्ष 1962 में आपने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। इसी वर्ष आप ब्रह्माकुमारीज के संपर्क में आईं। मुंबई में आपने 1962 में प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती (मम्मा) से ज्ञान प्राप्त कर और आपके जीवन से प्रभावित होकर अध्यात्म के प्रति विशेष रुचि बढ़ गई। मम्मा के प्रवचन सुनकर और पवित्र जीवन ने प्रभावित किया। आपको बचपन से ही समाजसेवा का शौक था।

1964 में पहली बार ब्रह्मा बाबा से मिलीं:- वर्ष 1962 में संस्थान से राजयोग मेडिटेशन की शिक्षा लेने के बाद आप पहली बार वर्ष 1964 में माउंट आबू पहुंचीं, जहां ब्रह्मा बाबा से मुलाकात के बाद आपने समर्पित रूप से सेवाएं देने का संकल्प किया। वर्ष 1966 से आप संपूर्ण समर्पित रूप से अपनी सेवाएं दे रहीं थीं। सेवा साधना के इस पथ पर चलने के आपके संकल्प में माता-पिता ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी। यह वह समय था जब महिलाओं का विश्वसेवा में तपस्या की राह पर चलते हुए अपना जीवन समर्पित करना साहसपूर्ण निर्णय होता था।
लंदन से शुरू हुआ राजयोग संदेश, 70 देशों में पहुंचाया
उच्च शिक्षित होने के कारण तत्कालीन मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि ने डॉ. निर्मला दीदी को विदेश सेवाओं की ज़िम्मेदारी सौंपी। वर्ष 1971 में आप पहली बार लंदन पहुंचीं, जहां दादी जानकी के साथ कुछ समय सेवाएं देने के बाद आपने अफ्रीका, मॉरीशस, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर सहित 70 देशों में लोगों में अध्यात्म और राजयोग मेडिटेशन की अलख जगाई।

ऑस्ट्रेलिया अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा:- अध्यात्म के क्षेत्र में आपकी विशेष सेवाओं को देखते हुए सरकार ने आपको ऑस्ट्रेलिया अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा। करीब 12 साल से आप संस्थान के माउंट आबू स्थित ज्ञान सरोवर परिसर की निदेशिका और तीन साल से संयुक्त मुख्य प्रशासिका की जिम्मेदारी संभाल रहीं थीं।

पश्चिमी संस्कृति में डूबे लोगों को भारतीय संस्कृति से जोड़ा:- दृढ़ इच्छा शक्ति, आत्मबल, उच्च कोटि का चरित्र बल का परिणाम है कि आपने चंद वर्षों में हजारों लोगों को राजयोग के माध्यम से पश्चिमी संस्कृति से निकालकर भारतीय संस्कृति से जोड़कर उनके जीवन का सकारात्मक परिवर्तन किया।

पूरा जीवन विश्व कल्याण में लगा दिया:- डॉ. निर्मला बहन ने अपना पूरी जीवन विश्व के कल्याण में लगा दिया। आपने वर्षों तक विदेश में रहकर ईश्वरीय सेवाएं की। आपके ज्ञान और जीवन से प्रभावित होकर हजारों लोगों को आध्यात्मिक पथ पर चलने की प्रेरणा मिली। आपका सरल और विनम्र स्वभाव सभी को प्रभावित करता था। ऐसी आध्यात्मिक जगत की महान आत्मा को भावपूर्ण श्रद्धांजली।

By nit

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

%d bloggers like this: