नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

धनगर आरक्षण को लेकर हमारा कोई विरोध नहीं लेकिन जिस धनगर समाज को पहले ही साढ़ेतीन फीसद आरक्षण दिया गया है उसे अनुसूचित जनजाति में आरक्षण देने के हम विरोध में हैं इस प्रकार की मंशा से आदिवासी समुदाय के सामाजिक संगठनों ने आरक्षण को लेकर अपनी भूमिका साफ़ कर दी है। जलगांव में संपन्न बैठक के बाद आदिवासी एकता परिषद भारत ने ब्लॉक स्तर पर ज्ञापन और विरोध प्रदर्शन तेज़ कर दिए है। एकता परिषद ने आनेवाले 20 अक्टूबर को जलगांव कलेक्ट्रेट पर विशाल रैली का आयोजन कराया है जिसमें हज़ारों की तादात में हम इंसानों के पूर्वज आदिवासी समुदाय के लोग शामिल होंगे। संगठन के प्रमुख सुधाकर सोनवने ने बताया कि आदिवासी एकता परिषद की ओर से जामनेर मे 12 अक्टूबर को भव्य मोर्चा निकाला जाएगा। पुलिस विभाग को सौंपे मांग पत्र में कहा गया है कि जिला परिषद की स्कूलों का निजीकरण नहीं किया जाए।

देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरी संहिता) लागू न करें। भूमिहीन आदिवासियों को गांव में निवासी जमीन पट्टे दिए जाए। महाराष्ट्र के प्रत्येक गांव मे आदिवासी वनहक्क समिति स्थापन की जाए। आदिवासी सबलीकरण योजना के तहत पांच एकड़ कृषि भूमि मुहैया कराई जाए। आदिवासियों के लिए बनाए गए कब्रस्थान उनके नाम पर पंजीकृत करवाएं। ज्ञात हो कि एकलव्य संघटना की ओर से कुछ दिन पहले धनगर आरक्षण को लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को निवेदन भेजा जा चुका है। NIT ने एक रिपोर्ट में बताया था कि महाराष्ट्र में अनारक्षित और ओबीसी की 50 विधानसभा सीटे ऐसी है जिनपर आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में है। विदर्भ, उत्तर महाराष्ट्र, कोंकण की 10 लोकसभा सीट के नतीजों का फैसला बगैर आदिवासी मतदाताओं के संभव नहीं। महाराष्ट्र में मराठा, धनगर, लिंगायत बिरादरी के सामाजिक आरक्षण का मसला काफ़ी पुराना है। सत्ता में आने के बाद भाजपा को इन सब विषयों को भूल जाती है और विरोध में बैठने पर आरक्षण के मामलों को हवा देने की राजनीति करती है।