आदिवासी एकता परिषद की बैठक में मणिपुर को लेकर चिंतन, आनेवाले सभी चुनाव लड़ेगा संगठन, कलेक्ट्रेट पर महामोर्चा का आयोजन | New India Times

नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

बीते छह महीने से केंद्र सरकार की नाकामी के कारण मणिपुर में आदिवासी समुदाय के लोगों की हो रही हत्याएं, अत्याचार, महिलाओं के साथ किया जा रहा दुर्व्यवहार इन तमाम मुद्दों पर मुखरता से चिंतन करने के लिए आदिवासी एकता परिषद की ओर से बैठक का आयोजन किया गया। जलगांव में आयोजित इस बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमे संकल्प किया गया की आने वाले तमाम चुनाव संगठन अपने बल पर लड़ेगा। चोपड़ा विधानसभा क्षेत्र जो जनजातिय सीट है वहां परिषद की ओर से आदिवासी प्रत्याशी को मैदान में उतारा जाएगा। धनगर आरक्षण को लेकर सरकार की ओर से जनजातिय आरक्षण को लेकर जो प्रोपेगंडा चलाया जा रहा है उसके विरोध में अपनी संवैधानिक भूमिका स्पष्ट कर संगठन आदिवासियों की लड़ाई लड़ेगा।

आदिवासियों से जुड़े सामाजिक मुद्दों को उठाने के लिए आने वाली 20 अक्टूबर को जलगांव कलेक्ट्रेट कार्यालय पर महामोर्चा का आयोजन किया गया है। बैठक मे सुनील गायकवाड़, सुधाकर सोनवाने, भगवान मोरे, मुकेश वाघ, रामा ठाकरे, दिलीप सोनवाने, शुभांगी पवार, लहू मोरे, राजू गायकवाड़ समेत सभी ब्लॉक पदाधिकारी मौजूद रहे। विदित हो कि सिल्लोड में आदिवासी परिषद की ओर से सरकार के खिलाफ़ चेतावनी आंदोलन किया गया था जिसमे बड़ी संख्या मे महिलाएं शामिल हुई।

सामाजिक अत्याचारों से पनप रहा असंतोष:- मणिपुर में शुरू हुई हिंसा के बाद कुकी समुदाय पर हो रहे अन्याय के विरोध में पूरे देश के अलग अलग राज्यों में बिखरा हुआ आदिवासी समुदाय एक मुश्त हो कर सड़कों पर उतर आया और अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए संघर्षशील बनता गया। केंद्र सरकार ने मणिपुर को अशांत क्षेत्र घोषित कर वहा छह महीने के लिए में अफस्पा कानून लागू कर अपने नकारापन पर पर्दा डाल दिया है। पुलिस की सहायता से उपद्रवियों द्वारा सरकारी शत्रागारो से लूटे गए पांच हजार ऑटोमैटिक हथियार और 6 लाख बुलेट्स (गोलियां) जब तक रिकवर नहीं किए जाते तब तक मणिपुर मे शांति बहाली मुश्किल है। अखबारों और टीवी ने मणिपुर को भारत का हिस्सा मानने से इनकार कर दिया है इसलिए वहां का सारा का सारा कवरेज बंद है।

मणिपुर में जारी हिंसा के चलते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने G20 समिट में प्रेस को कोई कॉन्फ्रेंस नहीं करने दी। राजनीतिक जानकारो के मुताबिक आदिवासियों के प्रति सरकार की जो सोच है उसका परिणाम भाजपा को मध्य प्रदेश चुनाव में भुगतना पड़ेगा। मप्र में विधानसभा की 230 सीटों में कांग्रेस 150 सीटे जीतकर शानदार जीत दर्ज करने की ओर बढ़ रही है। यहां भाजपा के केंद्रीय मंत्री और सांसद चुनाव हार रहे हैं। यह देख कर महाराष्ट्र के मंत्री डर के मारे उनको मिलने वाला लोकसभा का टिकट कटवाने के लिए दिल्ली के चक्कर काट रहे हैं। दुनिया की नंबर एक कही जाने वाली पार्टी के भीतर का यह हाल है। महाराष्ट्र के 288 विधानसभा क्षेत्रों में अनारक्षित और OBC की 50 सीटें ऐसी है जो सीधे आदिवासी मतदाताओं के प्रभाव में है।


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