रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:
![शब ए बरात यानी इबादत की रात 2 शब ए बरात यानी इबादत की रात | New India Times](https://usercontent.one/wp/www.newindiatimes.net/wp-content/uploads/2023/03/IMG-20230307-WA0007-1024x559.jpg?media=1720687763)
मेघनगर सहित पूरे झाबुआ जिले में असर की नमाज़ के बाद सभी मुस्लिम हज़रात कब्रस्तान गए और घर पर फातेहा पढ़ी व तबर्रुक तकसीम किया गया। पूरी रात नमाज पढ़ने व रात में कब्रिस्तान जाने का सीलसिला पूरी रात जारी रहेगा व सारी रात इबादत कर सुबह सहरी नोश फरमाकर रोज़ा का एहतमाम किया जाएगा।
शब ए बरात के बारे में तफ्सील लगभग हर मजहब में कोई न कोई ऐसी खास रात होती है जो इबादत या आराधना के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण रहती है जैसे सनातन धर्म में नवरात्र और बौद्ध धर्म में बुद्ध पूर्णिमा की रात। ठीक वैसे ही इस्लाम धर्म में शब-ए-बारात, इस्लाम धर्म के अनुयायी शब-ए-बारात को पूरी रात अल्लाह यानी निराकार ईश्वर की इबादत करते हैं।
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इसीलिए कहा जाता है कि शब-ए-बारात यानी इबादत की रात, शब-ए-बारात दो लफ्जों से मिलकर बना है। वे दो लफ्ज हैं-शब और बारात। शब का मतलब होता है रात। बारात का मतलब होता है बरी होना। एक और अर्थ भी बारात का होता है, वह है बरआत अर्थात पूर्ण होना यानी अल्लाह से क्षमा के लिए प्रार्थना करना और गिड़गिड़ाकर यानी सच्चे दिल से प्रार्थना करते हुए जाने-अनजाने में हुए गुनाहों को माफ करने की याचना करते हुए तौबा या प्रायश्चित करना और भविष्य में गलती न करने का अहद करना। अल्लाह को शुद्ध मन और पवित्र भावना से इबादत करते हुए अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगना ही शब-ए-बारात है।
उल्लेखनीय है कि इस्लामी कैलेण्डर के अनुसार यह रात शाबान महीने की चौदहवीं तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है। इसे अरब में लैलतुल बराह या लैलतुल निस्फे मीन शाबान के नाम से जाना जाता है।
हमारे देश भारत और भारत के पड़ोसी देशों में इसे शब-ए-बारात के नाम से पहचाना जाता है।
तात्पर्य यह है कि शब-ए-बारात यानी शाबान महीने की वह रात जिसमें इस्लाम धर्म के अनुयायी रात भर जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं और माफी मांगते हुए अपने गुनाहों की तौबा करते हैं।
शब-ए-बारात से इमाम मेहंदी का भी सिलसिला जुड़ता है। इस रात में पितरों या पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए भी प्रार्थना की जाती है। कब्रिस्तान जाकर फातेहा पवित्र कुरान की आयतें पढ़ी जाती हैं। कुछ लोग हलवा बनाकर तबर्रुक (प्रसाद) भी वितरण करते हैं।
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