मदरसा बोर्ड को संवैधानिक दर्जा देने का प्रस्ताव पास करना समस्याओं का हल नहीं बल्कि मदरसों व मदरसा पैरा टीचर्स की स्थिति में बदलाव लाना है सरकार की नीयत पर निर्भर | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:

मदरसा बोर्ड को संवैधानिक दर्जा देने का प्रस्ताव पास करना समस्याओं का हल नहीं बल्कि मदरसों व मदरसा पैरा टीचर्स की स्थिति में बदलाव लाना है सरकार की नीयत पर निर्भर | New India Times
फ़ाइल फोटो

तत्तकालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा वक्फबोर्ड के मार्फत मदरसों को आधुनिक तालीम से जोड़ने के लिये मदरसों के स्टुडेंट्स को निःशुल्क पाठ्यपुस्तक व आधी दर पर नोटबुक उपलब्ध करवाने के साथ साथ तत्तकालीन वक्फबोर्ड चैयरमैन शोकत अंसारी की कोशिशों से मदरसों में पैरा टीचर्स लगाने की शुरुआत करने के बाद राजस्थान के अधिकांश मदरसे जदीद तालीम से तत्तकालीन समय में जुड़ने लगे थे। उस समय मदरसों की मैनेजमेंट कमेटी सरकारी दखल से अपने आपको काफी दूर रखने पर अड़ी हुई थी लेकिन उसी समय वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष अब्दुल कय्यूम अख्तर ने राजस्थान मदरसा बोर्ड संस्थान नामक एक सहकारी संस्था का गठन करके उसको बाकायदा रजिस्टर कराके तत्तकालीन वक्फ बोर्ड चेयरमैन शोकत अंसारी के साथ मिलकर दोनों ने अनेक धार्मिक व सामाजिक लीडर्स को साथ लेकर प्रदेश के प्रत्येक मदरसों का दौरा करके उनकी प्रबंध समितियों से वार्ता करके उनको सरकारी मदद से टीचर्स लेने के अलावा सरकारी पाठयक्रम निशुल्क लेकर मदरसो मे आधुनिक तालीम पढाने के लिये तैयार किया था।
तत्तकालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत के नेतृत्व वाली सरकार के बाद 1998 मे जब अशोक गहलोत के नेतृत्व मे प्रदेश मे कांग्रेस सरकार गठित होने पर निशुल्क पाठ्यपुस्तक देने का क्रम तो वक्फ बोर्ड के मार्फत जारी रखा लेकिन आदी दर पर नोटबुक उपलब्ध करवाने की योजना पर ताला लगा दिया था जिसपर आज भी ताला लगा हुवा है। अब्दुल कय्यूम अख्तर वाली मदरसा बोर्ड संस्थान जब मे लोकप्रियता मे आसमान छूने लगी तो तत्तकालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अलग से सरकारी स्तर पर सन् 2000 मे राजस्थान मदरसा बोर्ड का गठन किया। सन 2000 से लेकर 2020 तक प्रत्येक सरकार ने बोर्ड को संवेधानिक दर्जा देने के दावे करती रही है। आखिरकार 24-अगस्त-2020 को विधानसभा मे बोर्ड को संवेधानिक दर्जा देने का प्रस्ताव तो पास किया है। अगर छ महिने मे प्रस्ताव को कानूनी शक्ल देकर ऐक्ट का रुप नही दिया तो भैंस पानी मे जा सकती है। संवेधानिक दर्जा मिलने से बोर्ड पर कोई खास असर नही पड़ेगा मात्र बोर्ड संवैधानिक बोडी बन जायेगा। मदरसों व मदरसा पैरा टीचर्स की हालात व उनके मानदेय वृद्धि व उनके नियमतिकरण करने पर संवैधानिक दर्जा मिलने का रत्ती भर भी प्रभाव नहीं पड़ेगा। बोर्ड व पैराटीचर्स की स्थिति में बदलाव सरकारी की नीयत पर निर्भर करता है व करेगा। अगर सरकार की नीयत बदलाव लाने की है तो वो पहले भी बदलाव ला सकती थी एवं अब भी आगे चलकर कभी भी बदलाव ला सकती है।
मदरसा पैराटीचर्स के मानदेय में हर सरकार ने बढ़ोतरी तो की है लेकिन वो बढ़ोतरी हमेशा ऊंट के मुहं में जीरा समान ही की जाती रही है। मदरसा पैराटीचर्स का नियमतिकरण मात्र एक दफा वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली 2003-2008 भाजपा सरकार में ही हुआ है। उसके पहले व उसके बाद अभी तक किसी भी सरकार ने नियमतिकरण नहीं किया है। तत्तकालीन मुख्यमंत्री राजे के समय नियमतिकरण पाने वाले पैराटीचर्स आज सरकारी शिक्षक बनकर अच्छी सेलेरी पाकर अपना अच्छा जीवन यापन कर रहे हैं। कांग्रेस सरकार ने आज तक मदरसा पैराटीचर्स का स्थायीकरण नहीं किया और ना ही सही तरीके से कोशिश की है बल्कि इसके विपरीत मदरसा पैरा टीचर्स व कम्पयूटर पैरा टीचर्स के भर्ती परिणाम सालों से पेंडिंग पड़े हैं और तक जारी नहीं किये है ना ही नई भर्ती जारी कर रहे हैं।
आज के समय राजस्थान मदरसा बोर्ड एवं जिला अल्पसंख्यक कल्याण कार्यलय में सभी कार्मिक डेपुटेशन पर लगे हुये हैं। संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद सरकार की नीयत सकरात्मक रहे तो बोर्ड के कार्मिकों का अलग से केडर बनाया जा सकता है। विधानसभा में पारित प्रस्ताव को पूरा पढ़ने के बाद लगता है कि सरकार ने बहुत जल्दबाजी में तैयार करके प्रस्ताव को पास किया है। इसमें बहुत कुछ जोड़ा जाना आवश्यक था जो जोड़ा नहीं गया है।
कुल मिलाकर यह है कि बोर्ड को संवैधानिक दर्जा देने का प्रस्ताव 24 अगस्त 2020 को पास होने के बाद व सभी फोरमलटीज पूरी होकर दर्जा मिलने की सम्भावना के बाद भी बोर्ड व मदरसा पैरा टीचर्स की समस्याओं का समाधान होना आसान नहीं लगता है। यह सब कुछ सरकार की नीयत पर निर्भर करता व करत ररेगा कि वो किस हद तक समस्याओं का समाधान करना चाहती है। विधानसभा में केवल मात्र प्रस्ताव पास होने से उत्साहित होने की अभी इतनी जरूरत नहीं है।


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