नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

मराठा आंदोलन के नेता मनोज जरांगे ने देवेन्द्र फडणवीस सरकार को हैदराबाद सातारा गैजेट को लागू करने के लिए मजबूर कर दिया। हैदराबाद गैजेट के मुताबिक मराठा कुनबी , कुनबी मराठा एक है और दोनों ओबीसी के सामाजिक आरक्षण के लिए पात्र है। इसी गैजेट के हवाले से महाराष्ट्र का बंजारा समाज मांग कर रहा है कि बंजारों को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाए। भारत के संविधान के 341 वें अनुच्छेद में पहचान सुनिश्चित किए गए आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की सूची में संवैधानिक तरीके से जगह मिली है। बंजारा समाज द्वारा अनुसूचित जनजाति में घुसपैठ के प्रयासों के ख़िलाफ़ मूल आदिवासी मुखर होकर आंदोलन कर रहे हैं। जलगांव के जामनेर में सुधाकर सोनवने की अपील पर प्रकृति पूजक आदिवासी समाज के बच्चे बूढ़े औरते युवक अपनी आदिवासी पहचान को प्रखरता से रेखांकित करने के लिए सड़क पर उमड़ पड़े।

महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की तस्वीर से सजा लाल झंडा , देश का तिरंगा और डॉ बाबा भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा के साथ कदमताल करता हुजूम सरकार से छठी अनुसूची की मांग कर रहा था। राजस्व दफ़्तर के दरवाजे के सामने वक्ताओं ने आदिवासी समुदाय को मार्गदर्शन किया। हम इंसानों के पूर्वजों ने बंजारा समाज की मांग को समर्थन देने वाले तमाम नेताओं के ख़िलाफ़ नारेबाजी की। ज्ञापन में सरकार को सूचित किया गया कि सरकार की ओर से बंजारा समाज को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की हिमाकत न की जाए। घुमंतू जनजातियों की ओर से अनुसूचित जनजाति में लिस्ट करने की मांग काफ़ी पुरानी है।

महाराष्ट्र में NT/VJNT/DNT के 11% आरक्षण में शामिल जातियों के वर्गीकरण में कुछ जाती विशेष का खास खयाल रखा गया है। अनुसूचित जनजातियों की प्रथा परंपरा , रीति रिवाज , खानपान , विवाह संस्था , धार्मिक आचरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट-हाइ कोर्टस के कई फैसले हैं जो अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के मामले में अधिक स्पष्टता लाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक शानदार फैसले को आज भी कानून की दुनिया मे याद किया जाता है कोर्ट ने साफ़ शब्दों में कहा है कि “आदिवासी का कोई धर्म नहीं होता है”।
