नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

2014 में गिरीश महाजन के मंत्री बनने के बाद जामनेर में “नो लाभार्थी” नाम से बैनर होर्डिग्स लगाए गए थे। गांव-गांव कि ग्राम पंचायत चुनावों में बीजेपी बनाम बीजेपी पैनल आपस में लड़े नतीजे में एक बीजेपी जीती दूसरी हारी। जीते हुए पैनल के लोग ठेकेदार बना दिए गए और हारे हुए कार्यकर्ता बीजेपी से दूर जा कर खड़े हो गए। इस पैटर्न का असर अब विधानसभा चुनाव मे दिखने लगा है। बीजेपी से NCP(SP ) में आए MVA प्रत्याशी दिलीप खोड़पे सर को बीजेपी के इसी वोटर को अपने पाले में लाना है यह वोटर संगठित होता दिखाई दे रहा है।

शरद पवार ने पूर्व मंत्री एकनाथ खडसे राजू बोहरा पारस ललवाणी के माध्यम से खोड़पे सर के लिए मुफीद मैदान की रचना कर दी है। कपास सोयाबीन के गिरते दामों के कारण किसानो का मूड ख़राब है। जामनेर सीट पर राइट विंग द्वारा अपनाया जाने वाला मराठा बनाम गैर मराठा ध्रुवीकरण का फार्मूला इस बार पूर्ण रूप से फेल है। तीस साल फिर भी निर्वाचन क्षेत्र बदहाल विपक्ष के इस आरोप का भाजपा के पास कोई ठोस जवाब नहीं है। मराठा समाज के वोटो के विकल्प के तौर पर ओबीसी वोटों के ध्रुवीकरण के लिए महाराष्ट्र बीजेपी ने अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर वोट जिहाद का नेरेटिव सेट करने का प्रयास किया।
लेकिन एक सच यह भी है कि MDA फार्मूले से डरे हुए प्रदेश भाजपा के तमाम मंत्री मुस्लिम समुदाय के बीच जा जा कर वोट मांग रहे है। महंगाई बेरोजगारी खेती किसानी जैसे असली मुद्दो से जनता का ध्यान भटकाने के लिए धर्म को हथियार बनाया जा रहा है। महायुति के किसी भी मंत्री के लिए मुंबई का रास्ता अब आसान नहीं है। सर्वे के अनुसार डेढ़ दर्जन यानी 12-18 मंत्री चुनाव हारने जा रहे है। खुले प्रचार के लिए अब आखिरी दो दिन बचे है जलगांव की सभी 11 सीटों पर मुकाबला कड़ा होता जा रहा है। जलगांव की सात सीटों पर MVA काफ़ी मजबूत स्थिती में है और एक पर निर्दलीय चुनकर आ सकता है।
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