मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:
देश के इतिहास में 2014 से पूर्व न्यायपालिका पर इतने हमले दिखाई नहीं दिए, जितने 2014 के बाद भारतीय परिदृश्य में सामने आ रहे हैं। देश के इतिहास में पहली बार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पर विवश हुए। पहली बार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश पर गंभीर आरोप लगे। पहली बार सर्वोच्च न्यायालय की विश्वनीयता पर प्रहार हुए।
पिछले दिनों यह देखने को मिला है कि कई बार सर्वोच्च अदालत (सुप्रीम कोर्ट) के न्यायाधीशों की ईमानदारी और क्षमता पर सवाल खड़े किए गए। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे में यह हमारे देश की न्यायपालिका की छवि को धूमिल करने का एक खतरनाक और कुत्सित प्रयास है। जबकि, देश की अदालतें हमेशा कानून के शासन को लेकर अड़ी और खड़ी रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट पर यह हमले गत दिनों तबसे और बढ़ गए जबसे न्यायालय ने इलेक्ट्रोल बॉउंड मुद्दे पर राजनीतिक दलों को आइने दिखाने का साहस कर जनता के विश्वास को मज़बूत किया है। सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से बार-बार इस बात को कहा गया है कि कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है। न्यायपालिका पार्टियों की स्थिति और क़द की परवाह किए बिना कानूनों को लागू करने और व्याख्या करने के लिए प्रतिबद्ध है।
न्यायपालिका को हर समय संविधान की मूल भावना, संवैधानिक मानदंडों और नैतिक प्रथाओं का पालन करना होता है। ऐसे में जब सर्वोच्च न्यायालय का इतिहास लिखा जाएगा तो इस बात पर प्रकाश डाला जाएगा कि न्यायालय ने हमेशा क़ानून के शासन के संरक्षक के रूप में कार्य किया है। हालांकि, वर्तमान में न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने और इसके संचालन में हस्तक्षेप करने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
भारत में न्यायपालिका ने हर समय सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को सुरक्षित करने के लिए लगातार प्रयास किया है और इसे मज़बूत किया है। उस सबके बावजूद न्यायपालिका पर हो रहे प्रहारों से इंकार नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि इस गंभीर मुद्दे को देखते हुए गत दिनों सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 21 पूर्व जजों ने माननीय सीजेआई (श्री चंद्रचूड़ जी) को चिट्ठी लिखकर न्यायपालिका पर बढ़ते दबाव का ज़िक्र किया गया है।
उनके द्वारा चिंता जताई गई कि कुछ लोग अपने फायदे के लिए ज्यूडीशियरी पर दबाव बना रहे।
गौर तलब हो कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को लिखी चिट्ठी में पूर्व जजों ने कहा है कि न्याय पालिका को अनुचित दबावों से बचाए जाने की ज़रूरत है। चिट्ठी में कहा गया है कि राजनीतिक हितों और निजी लाभ से प्रेरित कुछ तत्व हमारी न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को खत्म कर रहे हैं।
इनके तरीके काफी भ्रामक हैं, जो हमारी अदालतों और जजों की सत्यनिष्ठा पर आरोप लगाकर न्यायिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने का स्पष्ट प्रयास हैं। इस तरह की गतिविधियों से न सिर्फ न्यायपालिका की शुचिता का असम्मान होता है बल्कि जजों की निष्पक्षता के सिद्धांतों के सामने चुनौती भी है। इन समूहों द्वारा अपनाई जा रही स्ट्रैटेजी काफी परेशान करने वाली भी है, जो न्यायपालिका की छवि धूमिल करने के लिए आधारहीन थ्योरी गढ़ती है और अदालती फैसलों को प्रभावित करने के भी प्रयास करती है।
यह पहली बार नही हुआ जब न्यायपालिका पर प्रहार पर चिंता ना जताई गई हो। इससे पूर्व विगत 26 मार्च 2024 को देश के 600 से ज्यादा वकीलों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ को एक चिट्ठी लिखी है। इसमें कहा गया है कि न्यायपालिका पर एक ‘खास ग्रुप’ अपना प्रभाव डालने की कोशिश कर रहा है, जिसे लेकर वे चिंतित हैं. चिट्ठी लिखने वालों में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, पिंकी आनंद, मनन कुमार मिश्रा, हितेश जैन जैसे नामचीन वकील शामिल हैं।
चिट्ठी में कहा गया कि न्यायपालिका की संप्रभुता और स्वायत्तता पर हमले की कोशिश की जा रही है। चिट्ठी में कहा गया कि यह खास ग्रुप न्यायिक व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है और अपने घिसे-पिटे राजनीतिक एजेंडे के तहत उथले आरोप लगाकर अदालतों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है। उनकी इन हरकतों से न्यायपालिका की पहचान बताने वाला सौहार्द्र और विश्वास का वातावरण खराब हो रहा है। राजनीतिक मामलों में दबाव के हथकंडे आम बात हैं। खास तौर से उन केसेस में जिनमें कोई राजनेता भ्रष्टाचार के आरोप में घिरा है।
ये हथकंडे हमारी अदालतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं और लोकतांत्रिक ढांचे के लिए खतरा हैं। ये विशेष समूह कई तरीके से काम करता है। ये हमारी अदालतों के स्वर्णिम अतीत का हवाला देते हैं और आज की घटनाओं से तुलना करते हैं।
26 मार्च 2024 को देश के 600 से ज्यादा वकीलों के बाद अब सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 21 पूर्व जजों द्वारा सीजेआई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखकर जिस प्रकार न्यायपालिका पर हो रहे प्रहार सहित राजनीतिक हितों और निजी लाभ से प्रेरित कुछ तत्व द्वारा हमारी न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को खत्म करने की बात को लेकर चिंता जताना वर्तमान संदर्भ में एक ज्वलंतशील मुद्दा है, जो राजनीति के गिरते स्तर को उजागर करता है। ऐसे मे हमारी जनता का नैतिक दायित्व बनता है कि देश की न्यायपालिका पर प्रहार करने और उसकी गरिमा को आशंकित करने वाली शक्तियों को समझे और लोकतंत्र के महाकुंभ मे अपने मताधिकार का सही उपयोग कर देश की अस्मिता पर हो रहे हमलों पर अंकुश लगाएं। जय हिंद, जय भारत, जय स्वराज।
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